चौटाला

हरियाणा के पूर्व सीएम और इनैलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला जेल से आधिकारिक तौर पर रिहा हो गए हैं। उनकी जेल से रिहाई क्या इनैलो के लिए संजीवनी साबित हो पाएगी? चौटाला के जेल से बाहर आने को इनैलो के उत्साहित लोग स्वाभाविक तौर पर उनको एक ऐसे अचूक अस्त्र के तौर पर प्रचारित कर रहे हैं, जिसका विरोधी दलों के पास जवाब नहीं। ये भी कहा जा रहा है कि चुनाव आयोग उन पर छह बरस के लिए चुनाव लड़ने की बंदिश खत्म कर सकता है। अगर सचमुच ऐसा हो भी गया तो वो ऐलनाबाद उपचुनाव लड़ सकते हैं। जीत भी सकते हैं। इस सीट पर उनकी पार्टी का जबरदस्त असर है। इस विधानसभा चुनाव में इनैलो ने एकमात्र ऐलनाबाद सीट पर ही जीत हासिल की थी। प्रत्यक्ष तौर पर ये लगता है कि इनैलो चौटाला के आने से पहले से ज्यादा मजबूत हो सकती है। इनैलो का जो वोट बैंक जजपा की तरफ मुड़ गया था उसके बड़े हिस्से का फिर से इनैलो की तरफ झुकने-मुड़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

इनैलो आखिरी दफा सत्ता में वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में देखी गई थी। इन बाद के बरसों में बहुत से बच्चे पैदा हुए जो अब बालिग हो गए हैं,और जो इनैलो के राज के समय बच्चे थे वो भीअब वोटर हो गए हैं। ऐसा बताया जाता है कि इस युवा वर्ग की इनैलो के प्रति खास आस्था नहीं है। एक समय इनैलो के प्रभाव क्षेत्र वाले इलाके रहे बरौदा के हालिया उपचुनाव में भी पार्टी को महज तीन हजार वोट ही आ पाए थे। और वो भी तब जब इस उपचुनाव में इनैलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने गांव गांव जाकर चुनाव प्रचार में पसीना बहाया था। इसके बावजूद इनैलो प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई थी। ऐसे में अभी से पक्के तौर पर ये कहना उचित नहीं होगा कि चौटाला के आने से चमत्कार हो ही जाएगा। विधानसभा चुनाव में अभी काफी समय है। चौटाला और उनकी पार्टी इनैलो का सियासी भविष्य काफी कुछ इस पर निर्भर करेगा कि विपक्ष के नेता भूपेंद्र हुडडा को कांग्रेस पार्टी आगामी चुनाव में उनको सीएम के कैंडिडेट के तौर पर प्रौजेक्ट करती है या नहीं?

क्या चुनाव तक हुडडा अपनी अलग पार्टी तो नहीं बना जाएंगे? ऐसे में अभी हरियाणा की राजनीति उस मुहाने पर खड़ी कि.. तेल देखो-तेल की धार देखो। 87 बसंत देख चुके चौटाला की इसके लिए तो दाद दी ही जानी चाहिए कि वो कई रोगों के ग्रस्त होने के बावजूद मानसिक और शारीरिक तौर पर काफी सक्रिय हैं। अब सवाल ये है कि क्या वो फिर से इनैलो को बुलंदी पर ले जा पाएंगे? पार्टी के अच्छे दिन वापस ला पाएंगे?

राज्यपाल

ऐसा लगता है कि हरियाणा के राज्यपालों का त्रिपुरा से पुराने जन्म का कुछ नाता रहा है। हरियाणा के राज्यपाल रहे सत्यदेव नारायण आर्य का अब त्रिपुरा में तबादला कर दिया गया है। आर्य से पहले हरियाणा के राज्यपाल रहे कप्तान सिंह सोलंकी का भी त्रिपुरा ही तबादला किया गया था। ऐसा माना जाता है कि आर्य को हरियाणा से बाहर भेजने में प्रदेश के एक बड़े नेता की अहम भूमिका ही रही है। इन्हीं नेता की भूमिका सोलंकी के तबादले में भी बताई गई है। राज्यपाल आर्य के परिजन भी राजभवन में काफी सक्रिय बताए गए थे। इस माहौल पर कहा जा सकता है:
रहना ही था एक रोज मेरे शब्दों से रूबरू
मेरी तन्हाइयों को सरेआम होना था
वो भी ना रहा जिसके लिए दुश्मनी अपनों से ली
या मौला मुझे ऐसे भी नाकाम होना था

पत्रकार

पत्रकारों की दाद देनी चाहिए। ये कभी भी,कुछ भी पेल देते हैं। लोग इनकी इन उट पटांग खबरों को सच मान बहस कर रहे होते हैं। जैसे कि अंबाला से लोकसभा सांसद रत्नलाल कटारिया को मोदी मंत्रीपरिषद से हटाया गया तो कुछ पत्रकारों को दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ कि उनको अब किसी प्रदेश का राज्यपाल बनाया जाएगा। अगर इसे सच मान लिया जाए तो इसका मतलब ये होगा कि अंबाला लोकसभा का उपचुनाव होगा। क्या भाजपा बिना बात ही लोकसभा उपचनुाव का जोखिम उठाना चाहेगी? यही पत्रकार मनोहरलाल कैबिनेट का भी आए दिन विस्तार करवाने की खबरें पेल देते हैं। पहले तो ये होता था कि जब भी हफ्ते-दो हफ्ते में मुख्यमंत्री दिल्ली में भाजपा नेताओं से मिलने आते तभी ये खबरें प्रमुखता से छप-दिख जाती- हरियाणा में कैबिनेट विस्तार की तैयारी। ऐसा लोकप्रिय धारावाहिक अपने यहां कई बरसों से चल रहा है।

इन खबर छापने वालों की दाद देनी पड़ेगी कि हर दफा खबर गलत निकलने के बावजूद ये दोगुने उत्साह से फिर पहले से ऐसी ही बड़ी खबर पेल देते हैं। इसके बाद होता ये कि मुख्यमंत्री मनोहरलाल को इन मनघंड़त खबरों पर सफाई देनी पड़ती कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है। हम तो ये कहते हैं कि मुख्यमंत्री को सफाई देने के पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहिए। पत्रकारों को छापने दें ऐसी खबरों। वो क्योें इन खबरों का खंडन करते हैं? कम से कम जो मंत्री बनने के आकांक्षी लोग हैं उनका तो दिल लगा रहेगा। उनकी तो उम्मीद बंधी रहेगी। मुख्यमंत्री ने तो इन विधायकों का दिल बहलाना नहीं है। अगर सीएम का ये नेक काम पत्रकार कर रहे हैं तो उनको अपना ये कार्यक्रम जारी रखने देना चाहिए। इस तरह के हालात में पत्रकारों को भी काम मिला रहता है। वो अलग मामला है कि ऐसे प्रकरणों से ही पत्रकारों की विश्वसनीयता खत्म होती जा रही है। जिसकी सरकार-उसका अखबार, के जमाने में विश्वसनीयता की परवाह है भी किसे?

अंदर की खबर

हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे डा.अशोक तवंर को लगता है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा की भाजपा में काफी चलती है। ऐसा लगता है कि तवंर को कांग्रेस और भाजपा की अंदर की खबर रहती है। चंडीगढ में मीडिया से बतियाते हुए उन्होंने कहा कि हुड्डा ने हिसार से भाजपा सांसद बृजेंद्र सिंह को मोदी कैबिनेट में शामिल नहीं होने दिया। वो हुड्डा जिनके समर्थक उनके कांग्रेस में अपने पुराने दिन लाने-पाने को इन दिनों कांग्रेस आलाकमान में कदमताल कर रहे हैं। इन्हीं हुडडा का विरोधी पार्टी भाजपा में इतना जलवा है, ये तो शायद हुडडा को भी ना पता हो। ये तो ऐसा सा हो गया कि जब मेगास्टार अमिताभ को कोरोना हो गया तो उनको अपनी तबियत सुधरने-बिगड़ने का पता न्यूज चैनल के जरिए ही लगा।

सरकारी फैसला

हरियाणा सरकार ने अर्बन लोकल बोडीज में डैपुटेशन पर आए अधिकारियों और कर्मचारियों को उनके मूल विभागों में वापस भेजने के आदेश कर दिए। इसके चंद घंटे बाद ही सरकार ने अपने ये आदेश वापस भी ले लिए। आखिर ऐसा क्यंू हुआ? इसके अलग कारण बताए जा रहे हैं। एक तो ये कि जो डैपुटेशन पर थे उनमें से कई सरकार के करीबी लोग हैं और उन्होंने जल्द ही सरकार का हृदय परिवर्तन करवा दिया।

विधानसभा के चपरासी से लेकर विद्युत उत्पादन निगम के एक्सीईन तक इस अर्बन लोकल बोडीज महकमे में डैपुटेशन पर आकर गुड़गामा में पोस्टिंग पा जनसेवा के काम में तल्लीनता से जुट हुए हैं। इन आदेशों के रद्द होने का एक कारण ये बताया गया कि बहोत से लोग तो आते ही इस विभाग में डैपुटेशन पर हैं। जैसे कि रवैन्यू और प्रोसिक्यूशन डिपार्टमेंट। गलती से इन विभागों के लोगों को भी उनके मूल विभाग में भेज दिया गया था। बाद में विभाग ने किश्तों में कुछ आदेश जारी किए और कुछ लोगों को मूल विभाग में भेजने के विराट काम को अंजाम तक पहुंचाया।

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