30 हजार की आबादी के लिए एक  पीएचसी
हरियाणा में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल

पंचकूला। आम आदमी पार्टी जिला अध्यक्ष सुरेंद्र राठी ने कहा कि हरियाणा में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। प्रदेश सरकार ने दिल्ली सरकार की तर्ज पर लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं देनी चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के मानकों अनुसार ग्रामीण इलाकों में हर नागरिक को संपूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए 5 हजार की आबादी पर एक उप स्वास्थ्य केंद्र, 30 हजार की आबादी के लिए एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और 80 हजार से 1 लाख 20 की आबादी पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) होना चाहिए।

  फिलहाल प्रदेश में 2667 उप स्वास्थ्य केंद्र, 532 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 128 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित हैं। जबकि वर्तमान आबादी की जरूरतों के हिसाब से हमारे पास 634 उपस्वास्थ्य केंद्रों, 81 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और 53 सामुदायिक केंद्रों की कमी बनी हुई है। यानि वर्तमान में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा जितना होना चाहिए, उतना नहीं है और जितना है, उनमें भी स्पेशलिस्ट डॉक्टरों, डॉक्टरों, स्टॉफ नर्सों, रेडियोग्राफरों, फार्मासिस्टों, लैब तकनीशियों और मल्टीपर्पज कैडर की भारी कमी बनी हुई है। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार एक सीएचसी में 6 विशेषज्ञ डॉक्टरों (एक सर्जन, एक स्त्री रोग, एक फिजिशियन, एक शिशु रोग, एक हड्डी रोग और एक बेहोशी देने वाला) होने चाहिए। इसके हिसाब से वर्तमान आबादी अनुसार 714 स्पेशलिस्ट डॉक्टर होने चाहिए। जबकि फिलहाल राज्य भर में केवल मात्र 27 स्पेशलिस्ट ही मौजूद हैं यानि 687 स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की भारी कमी बनी हुई है।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 491 डॉक्टर हैं जबकि होने 1064 चाहिए यानि आधे से ज्यादा में एक भी डॉक्टर नहीं है। हालात यह है कि विशेषज्ञ डाॅक्टरों के 90 प्रतिशत से ज्यादा पद रिक्त पड़े हैं। अस्पतालों में दवाओं का टोटा पड़ा रहता है। उधर रेडियोग्राफरों की 128 पोस्ट होनी चाहिए लेकिन कार्यरत केवल 38 हैं यानि 90 की कमी है। फार्मासिस्ट्स की संख्या करीब 770 होनी चाहिए लेकिन केवल 405 ही कार्यरत हैं यानि 365 की कमी है। नेत्र चिकित्सा सहायकों की संख्या भी 128 होनी चाहिए मगर कार्यरत 35 ही हैं। लैब टेक्नीशियन के 770 पदों के मुकाबले 400 लैब तकनीशियन ही कार्यरत हैं यानि 370 की कमी बनी हुई है। मल्टीपर्पज कैडर में एमपीएचडब्ल्यू (पुरूष और महिला) की संख्या करीब 3800 है, जबकि 10800 होने चाहिए। वहीं स्वास्थ्य निरीक्षक (पुरूष व महिला) के 1100 पदों के मुकाबले करीब 700 ही कार्यरत हैं यानि 400 पद खाली पड़े हैं।

उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर देखें तो वर्तमान आबादी के अनुपात में स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टरों के कुल स्वीकृत पदों में 90 प्रतिशत से ज्यादा विशेषज्ञ डॉक्टरों, 50 प्रतिशत से ज्यादा तथा पैरामेडीकल स्टॉफ के 40 प्रतिशत से ज्यादा पद रिक्त पड़े हैं। जबकि आबादी के अनुपात में नियमानुसार अकेले पेरामेडिकल स्टाफ के ही 25000 से ज्यादा नियमित पद स्वीकृत होने चाहिए। लेकिन सरकारों की निजीकरण, उदारीकरण और अमीरप्रस्त नीतियों के चलते अधिकतर सिविल हस्पतालों में भी न तो अल्ट्रासाउण्ड मशीनें हैं और न ही एक्स-रे मशीन व सी.टी. स्कैन। यदि कहीं पर ये मशीनें हैं भी तो उनके संचालक नहीं या ये अक्सर खराब रहती हैं। कुछ जिलों में पीपीपी मोड़ में अवश्य कुछ मशीनें हैं जिनकी अच्छी-खासी फीस अदा करनी पड़ती है।

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