उमेश जोशी

घमासान की आहट इनेलो और सत्ता में साझीदार जनता जननायक पार्टी (जेजेपी) में है लेकिन परेशान बीजेपी है। सत्ताधारी बीजेपी के नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हो रही हैं। ताऊ देवी लाल की प्रतिमा के शुद्धिकरण के बाद चौधरी साहब की विरासत हासिल करने की जंग में जो राजनीतिक तस्वीर भविष्य में उभरने वाली है उसे लेकर बीजेपी खासी परेशान है। राजनीति सम्भावनाओं का खेल है और उस खेल में हार जीत की आहट काफी पहले ही सुनाई देने लगती है।

परदादा की विरासत अपने खाते में डालने या यूं कहें कि दुष्यंत चौटाला से छीनने के लिए इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के करण चौटाला की मुहिम शुरू हो गई है; ओम प्रकाश चौटाला की जेल से रिहाई हो गई है और दुष्यंत चौटाला की छवि लगातार धूमिल हो रही है। इन कारणों से बीजेपी में खलबली है। इनेलो के मजबूत होने और जेजेपी के कमजोर होने का अर्थ है काँग्रेस को ताकत मिलना। सीधा सा गणित है कि कॉंग्रेस के मजबूत होने से बीजेपी कमजोर होगी। 

 इनेलो अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने के बाद जेजेपी को कड़ी टक्कर देने की स्थिति में आ जाएगी। जेजेपी किसान आंदोलन के बाद दयनीय हालत में है। उसका मतदाता निराश और हताश है। वह वापस इनेलो की ओर जा रहा है या फिर कॉंग्रेस की ओर रुख कर रहा है। कॉंग्रेस की तरफ मुड़ने वाला जाट मतदाता अभी ढुलमुल है। वो काँग्रेस के साथ सिर्फ उसी स्थिति में रहेगा जब भूपिंदर सिंह हुड्डा को पूरी बागडोर सौंपी जाएगी और पार्टी हाई कमान हुड्डा को अगला मुख्यमंत्री घोषित करेगा। 

  बीजेपी को फ़िलहाल यह डर सता रहा है कि चौटाला परिवार का परंपरागत वोट इनेलो और जेजेपी में बंट गया तो दोनों ही पार्टियाँ मजबूत स्थिति में नहीं होंगी और कॉंग्रेस को बिना किसी प्रयास लाभ मिल जाएगा। बीजेपी 2019 के चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद से ही बुझी हुई है। सारा उत्साह ठंडा पड़ा हुआ है। किसान आंदोलन  से जो समीकरण उभरें हैं उससे बीजेपी के नेताओं खासतौर से मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ की नींद उड़ी हुई है। राजनीत की मामूली समझ रखने वाला व्यक्ति भी जानता है कि अगले चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन 2019 के मुकाबले खराब रहेगा यानी उसे फिर किसी पार्टी से समझौता करना पड़ेगा। हो सकता है कि वोटों का बंटवारा होने के बाद इनेलो और जेजेपी में से कोई भी अकेले पार्टी सरकार बनवाने की स्थित में ना हो। दोनों एक साथ सरकार में शामिल नहीं हो सकतीं। ऐसी स्थिति में बीजेपी मुसीबत में फंस जाएगी। 

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी अब अभय चौटाला से अपनी दूरियाँ  कम करने की कोशिश करेगी। हो सकता है कि अगली बार इनेलो से मदद लेनी पड़ जाए। बीजेपी यह भी कोशिश करेगी कि जेजेपी का नाराज मतदाता सिर्फ इनेलो की ओर जाए; काँग्रेस से किनारा कर ले। इनेलो के लिए भी बीजेपी अछूत नहीं है। पहले भी दोनों मिल कर कई बार सरकार बना चुके हैं इसलिए दोनों का डीएनए मिलता है। 

उधर, 25 हजार करोड़ रुपए के मानेसर जमीन घोटाले में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर चुप्पी साधे हुए हैं। एफआईआर में दूसरे नंबर वाले रिटायर्ड आईएएस अधिकारी टीसी गुप्ता को राइट टू सर्विस आयोग का मुख्य आयुक्त बनाकर पुरस्कृत कर दिया है। भूपिंदर सिंह हुड्डा का नाम एफआईआर में पहले नंबर पर है, लेकिन अभी तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। वजह यह है कि कार्रवाई होते ही हुड्डा खुद को सरकार का सताया हुआ दिखा कर दीन हीन भाव से जनता के बीच जाएँगे और जनता की सहानुभूति बटोर लेंगे। सारे जाट मतदाता हुड्डा का सम्मान बचाने के लिए एकजुट हो सकते हैं। किसी जाट नेता के सम्मान को चोट पहुंचने पर जाट समुदाय किस तरह एकजुट होता है, यह बानगी राकेश टिकैत के मामले में पूरा देश देख चुका है। लिहाजा, बीजेपी हुड्डा पर हाथ डालने से पहले कई बार विचार करेगी। 

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