भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष और संस्कृति के नक्षत्र थे डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी : जीएल शर्मा

— श्यामा प्रसाद के बलिदान दिवस पर भाजपाइयों ने उन्हें नमन किया

गुरुग्राम। भारतीय जनसंघ के संस्थापक एवं देश के प्रखर राष्ट्रवादी,  मुखर राजनीतिज्ञ व शिक्षाविद डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनके बलिदान दिवस पर भाजपाइयों ने अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए। भाजपा के शीतला मंडल की ओर से राजीव नगर में आयोजित बलिदान दिवस समारोह भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष जीएल शर्मा ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। सर्वप्रथम उन्होंने डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दी। उनके साथ शीतला मंडल के अध्यक्ष प्रियव्रत कटारिया, महिला मोर्चा मंडल अध्यक्ष कमलेश सैनी, युवा मोर्चा अध्यक्ष मनोज भाखर, महिला मोर्चा सुंदरी खत्री, पूर्व जिला उपाध्यक्ष हंसराज कसाना, विधु कालरा,  सरोज यादव,  सीताराम सिंघल,  अलका सचदेवा,  रेखा सैनी,  गिरीश सिंगला, शिवेश बबलू कटारिया, धीरज कौशिक,  प्रवीण गुप्ता,  महिपाल सहारण,  युधिष्ठिर कौशिक,  वंदना सिंगला,  अंजू महाजन,  सुनीता वर्मा,  दीपक राजपूत,  सचिन गुप्ता सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं ने डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष जीएल शर्मा ने कहा की डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी प्रखर राष्ट्रवादी समाज सुधारक चिंतक एवं राजनीति के मर्मज्ञ थे। 6 जुलाई, 1901 को कोलकाता  के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में जन्में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने ज्ञान और विचारों से तात्कालिक परिदृश्य की ज्वलंत परिस्थितियों का इतना सटीक विश्लेषण किया कि समाज के हर वर्ग और तबके के बुद्धिजीवियों को उनकी बुद्धि का कायल होना पड़ा। अपनी कुशाग्र बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए मात्र 33 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने  कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति का पदभार संभालने की जिम्मेदारी उठा ली। अपनी सूझबूझ और देश के ताजा हालातों को ध्यान में रखकर उन्होंने कई कार्य किए जिसकी वजह से उनकी देश में काफी अच्छी पहचान बन गई थी। एक राजनैतिक दल  की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति  के कारण जब बंगाल  की सत्ता मुस्लिम लीग की गोद में डाल दी गई और 1938 में आठ प्रदेशों में अपनी सत्ता छोड़ने की आत्मघाती और देश विरोधी नीति अपनाई गई तब डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने स्वेच्छा से देशप्रेम और राष्ट्रप्रेम का अलख जगाने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया।

डॉ मुखर्जी ने संसद में सदैव राष्ट्रीय एकता  की स्थापना को ही अपना प्रथम लक्ष्य रखा। संसद में दिए अपने भाषण में उन्होंने पुरजोर शब्दों में कहा था कि राष्ट्रीय एकता के धरातल पर ही सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा सकती है. उन्होंने आजादी के बाद 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की। इसी समय उन्होंने कश्मीर का दौरा किया और वहां से धारा 370 हटाने की मांग की। दरअसल उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झंडा था, अलग संविधान  था। वहां का मुख्यमंत्री  प्रधानमंत्री  कहलाता था. लेकिन डॉ मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने जोरदार नारा भी बुलंद किया कि  “एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान, एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगें।

” अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि “या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।” जम्मू कश्मीर में प्रवेश करने पर डॉ. मुखर्जी को 11 मई, 1953 को शेख अब्दुल्ला  के नेतृत्व वाली सरकार ने हिरासत में ले लिया था। 23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। वे भारत के लिए शहीद हो गए और भारत ने एक ऐसा व्यक्तित्व खो  दिया जो राजनीति को एक नई दिशा दे सकता था। आज उन्हीं का उगाया पौधा भारतीय जनता पार्टी के रूप में वट वृक्ष बनकर देश सेवा में जुटा है। भाजपा उन्हीं के संकपल्पों को आत्मसात कर राष्ट्र सर्वोपरि की अवधारणा पर आगे बढ़ रही है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास भाजपा का मूल मंत्र है। इसी मूल मंत्र को आधार बनाकर भाजपा केंद्र में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और प्रदेश में मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नेतृत्व में देश प्रदेश के चहुंमुखी विकास में जुटी है।

कार्यकर्ताओं को डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस से लेकर 7 जुलाई को उनके जन्मदिवस तक अधिक से अधिक पौधारोपण करने के लिए प्रेरित भी किया। उन्होंने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ के नेतृत्व में पार्टी कार्यकर्ता पांच लाख से अधिक पौधे लगाकर प्रदेश को हरा-भरा करने का संकल्प भी लें। इस मौके पर जीएल शर्मा और भाजपा पदाधिकारियों ने पांच पेड़ लगाकर उनके संरक्षण का संकल्प भी लिया।

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