सात बरसों में पहली बार सर्वदलीय बैठक बुलाई जा रही है।
कश्मीर पर कोई फैसला लेने से पहले तो इनकी राय नहीं ली गई थी। नोटबंदी, जीएसटी, कोविड महामारी के कारण देश में लाखों लोग मरे,लॉकडाउन लगाने तब भी विपक्ष को नहीं पूछा गया।
अनुच्छेद370, क्या कांग्रेस पाकिस्तानपरस्त है ?

अशोक कुमार कौशिक

 दो दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह बैठक करते हैं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, गृह सचिव अजय भल्ला,  आईबी के निदेशक अरविंद कुमार, रॉ के प्रमुख सामंत कुमार गोयल, सीआरपीएफ के महानिदेशक कुलदीप सिंह और जम्मू कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह के साथ। कहा जाता है कि ये कश्मीर में हो रहे विकास की समीक्षा के लिए की गई बैठक थी। फिर अगले दिन खबर आती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू कश्मीर के विषय में 24 जून को सर्वदलीय बैठक करने जा रहे हैं जिसमें जम्मू कश्मीर में चुनाव, नये परिसीमन और जम्मू कश्मीर को पुनः राज्य का दर्जा दिये जाने पर बात हो सकती है। क्या यह सामान्य बात है। अभी अचानक कश्मीर क्यों चर्चा के केंद्र में आ गया?

नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत प्रशासित कश्मीर के 14 नेताओं को कश्मीर के मुद्दे पर बातचीत करने के लिए दिल्ली आने की दावत दी है। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती समेत कई नेताओं ने दावत मिलने की पुष्टि की है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में यह बैठक 24 जून को दिल्ली में होने वाली है।

अख़बार एक्सप्रेस ने इस ख़बर को भारत की हार क़रार देते हुए लिखा है कि ‘नरेंद्र मोदी ने घुटने टेक दिए हैं और कश्मीर की सभी पार्टियों की बैठक बुलाने का फ़ैसला किया है।’

अख़बार लिखता है, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीरियों के ठोस इरादे और दृढ़ निश्चय के आगे घुटने टेक दिए और विशेष राज्य की बहाली समेत दूसरी समस्याओं के हल के लिए कश्मीर की सभी पार्टियों के साथ बैठक करने का फ़ैसला किया है।”

अख़बार के अनुसार, ‘केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की लोकप्रियता तेज़ी से गिरती जा रही है और पाँच अगस्त 2019 को कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीनने के फ़ैसले में आगे-आगे रहने वाले अमित शाह अब भारत प्रशासित कश्मीर के बदलते हालात पर सिर जोड़ कर बैठ गए हैं। इस सिलसिले में गृहमंत्री ने कश्मीर के उप-राज्यपाल और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों के साथ लंबी बैठक की है।’

याद रहे कि सात बरसों में पहली बार सर्वदलीय बैठक बुलाई जा रही है। इससे पहले नोटबंदी के समय किसी विपक्षी से कुछ नहीं पूछा गया। जीएसटी लागू करने से पहले राज्यों की राय नहीं ली गई। कोविड महामारी के कारण देश में लाखों लोग मरे, तब भी विपक्ष को नहीं बुलाया गया। लॉकडाउन लगाने जैसे फैसले के साथ देश को ठप कर दिया गया और सर्वदलीय बैठक बुलाकर राय नहीं ली गई तो ऐसा कौनसा फैसला है जिसमें मोदी को विपक्ष की राय चाहिए? धारा 370 हटाने से पहले भी मोदी ने किसी से राय नहीं ली थी। कुछ अफसर थे और मोदी शाह ने मिलकर धारा 370 हटा दी थी।

अनुमान यह है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते कोई ऐसा फैसला मोदी को लेना पड़ रहा है जिससे भारतीय जनता पार्टी का पक्का वोटर नाराज हो सकता है। वो वोटर इसे लेकर बहुत गर्वित होता है कि मोदी ने जो वादा किया था, पूरा कर दिखाया और धारा 370 को एक झटके में हटा दिया। चुनाव और परिसीमन के सिवा जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने की बात भी उस बैठक में होगी। अगर वाकई जम्मू कश्मीर को फिर कोई सुविधा या कोई दर्जा लौटाया जाता है, तो यह उन पक्के वोटरों के लिए बहुत झटका देने वाला होगा, जो कश्मीरियों को सताए जाने में परपीड़ा का बीमार सुख प्राप्त करते हैं। इसलिए मोदी चाहते हैं कि इस तरह का जो भी फैसला हो, उसकी जिम्मेदारी उन पर ना आते हुए सभी दलों के नेताओं पर आए। एक तरह से मोदी अपयश में भागीदारी के लिए विपक्ष को बुला रहे हैं।

जो मोदी राहुल गांधी के बारे में यह कहते हों कि इनकी ट्यूबलाइट देर से जलती है, उस राहुल गांधी को या उसकी पार्टी के किसी आदमी को बुला कर मोदी क्या राय लेंगे? टीएमसी की ममता बैनर्जी से या आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल से मोदी राय लेंगे? मोदी क्या कम्युनिस्टों से राय लेंगे? मोदी क्या अखिलेश, मुलायम और मायावती से राय लेंगे? नरेंद्र मोदी क्या लालू यादव और तेजस्वी यादव से राय लेंगे? कश्मीर पर कोई फैसला लेने से पहले तो इनकी राय नहीं ली गई थी। सर्वदलीय बैठक में इनमें से कई लोग हो सकते हैं। मगर सबसे दिलचस्प यह देखना होगा कि कश्मीर के जिन नेताओं को धारा 370 लगाने के बाद जेल में डाल दिया गया था, वो भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठकर उन्हें कश्मीर के बारे में राय देंगे। फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और अन्य जिनका आजाद रहना कल तक मोदी शाह को सहन नहीं था, आज उन्हें बुलाकर उनकी राय ली जा रही है। पर्दे के पीछे कहीं तो कुछ चल रहा है। याद करने की बात यह है कि बाइडेन के राष्ट्रपति बनते ही कश्मीर को लेकर केंद्र का रुख बदल गया था। इंटरनेट सेवा भी बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद ही बहाल की गई थी। जो पानी की सतह के नीचे है, वो धीरे धीरे ऊपर आएगा। आज नहीं कल पता चलेगा कि अचानक शुरू हुई इस सारी कवायद के पीछे क्या है। मगर कुछ बड़ा है ज़रूर।

अनुच्छेद370, क्या कांग्रेस पाकिस्तान परस्त है ?

कांग्रेस के नेता दिग्विजयसिंह पर भाजपा के नेताओं का यों बरस पड़ना मेरी समझ में नहीं आ रहा है। दिग्विजय ने ऐसा क्या कह दिया है कि आप कांग्रेस को ही पाकिस्तानपरस्त पार्टी कहने लगे हैं। किसी संगोष्ठी में दिग्गी राजा ने यही तो कहा है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आ गई तो वह धारा 370 को लागू करने के बारे में पुनिर्विचार करेगी। उन्होंने यह तो नहीं कहा कि वह धारा 370 फिर से लागू कर देगी। यह भी उन्होंने कब कहा, जबकि एक पाकिस्तानी पत्रकार उनसे उस संगोष्ठी में यह सवाल पूछ रहा था। आजकल पाकिस्तानी राजनीति का यही भारत-विरोधी मूल मुद्दा है। यदि ऐसा गोलमाल जवाब देने पर कांग्रेस को आप पाकिस्तानी पार्टी कह देते हैं तो नरेंद्र मोदी और अमित शाह को क्या कहेंगे ? 

क्या आप उन्हें पाकिस्तान का प्रवक्ता कहने का दुस्साहस करेंगे, क्योंकि उन्होंने तो कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य बनाने की घोषणा कई बार की है। स्वयं गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में जब धारा 370 खत्म करने की घोषणा की थी, तब कहा था कि कश्मीर को केंद्र प्रशासित क्षेत्र से पूर्ण राज्य बनाने की कोशिशें शीघ्र की जाएगी। मैं स्वयं मानता हूं कि कश्मीर को भारत के अन्य प्रांतों की तरह ही होना चाहिए। धारा 370 इंदिरा गांधी के ज़माने में उसे खोखला कर दिया गया था। और अब जबकि वह औपचारिक रुप से खत्म हो चुकी है, उसके नए प्रावधानों के तहत अब तक कितने गैर-कश्मीरियों या तथाकथित राष्ट्रवादियों ने वहां जमीनें खरीदी है और वहां बसने का फैसला किया है। 

धारा 370 खत्म करने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि कश्मीर का प्रशासन जरा चुस्त हो गया है। उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा की देख-रेख में वहां भ्रष्टाचार रहित प्रशासन चल रहा है। नेताओं की दुकानदारी फीकी पड़ गई है। इस समय दिग्गी राजा ने कश्मीर के सवाल पर जैसा नरम और व्यावहारिक रवैया अपनाया है, वह भारत और पाकिस्तान की वर्तमान मनस्थिति के अनुकूल है। पाकिस्तान भारत के साथ बंद हुए व्यापार को दुबारा खोलना चाहता है और संयुक्तराष्ट्र में हमारे प्रतिनिधि ने द्विपक्षीय संबंध सुधारने पर जोर दिया है।

विदेश नीति के मामले बहुत नाजुक होते हैं। उन्हें अदरुनी राजनीति में घसीटना कभी-कभी नुकसानदेह साबित होता है। कांग्रेस क्या, भारत की कोई भी प्रतिष्ठित पार्टी किसी भी अन्य देश की हिमायती नहीं हो सकती। जिस पार्टी ने कश्मीर को भारत का अटूट-अंग बनाए रखा, पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए और जिसकी नेता इंदिरा गांधी के नाम से पड़ौसी नेताओं के पसीने छूटते थे, उसे पाकिस्तानपरस्त कहना कहां तक उचित है ? धारा 370 को हटाने के सवाल पर यदि कोई मतभेद रखता है तो उसे आप गलत कह दीजिए लेकिन उसे पाकिस्तानपरस्त (या देशद्रोही)  कहना तो समझ के परे है। अपने आप को हम राष्ट्रवादी कहें और राष्ट्रहित की रक्षा में अग्रणी रहें, यह तो प्रशंसनीय है लेकिन अपने प्रतिद्वंद्वियों के माथे पर देशद्रोही का बिल्ला चिपका देना तो सर्वथा अनुचित है। 

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