आफ द रिकार्ड–यशवीर कादियान

गांव में जनाधार बढाने की चाहत

ऐसा लगता है कि अर्बन लोकल बोडीज महकमा हरियाणा सरकार के दिल के कुछ ज्यादा ही करीब है। ऐसा इसलिए कि ये विभाग ही शहरों में ज्यादातर विकास के कामों को अंजाम देता है और भाजपा को गांवों की तुलना से शहरों में ज्यादा वोट प्राप्त होते हैं। अपने वोट बैंक की चिंता करना-उसे बढाने का प्रयास करना हर सरकार का परम कर्तव्य होता है। इसके बावजूद इस विभाग में अफसरों, खास तौर पर निदेशक स्तर पर अतीत में कुछ ऐसे लोगों की तैनाती हुई जो ना खुद कोई काम सिरे चढाएं और ना किसी दूसरे को ही चढाने दें। अब ये जो मौजूदा विभागीय निदेशक अशोक मीणा यंंू तो भले और शरीफ आदमी हैं। अन्य अफसरों की तरह पैसे बनाने के बारे में भी इनकी शोहरत नहीं रही है। कानून के ये कुछ ज्यादा ही जानकार हैं। काम करते हुए कुछ ज्यादा ही सर्तक रहते हैं।

इनके बारे में ये है कि ये रूटीन की फाइलों में भी ऐसा ज्ञान उड़ेल देते हैं कि वो फाइल चक्कर ही काटती रहती है। भटकती ही रहती है। जैसे कि विकास कामों से जुड़ी एक टैंडर की फाइल पर इन्होंने लिख दिया कि अधीनस्थ अधिकारी ये एफिडेविट देकर ये प्रमाणित करे कि अगर दोबारा टैंडर होने पर अब दिए गए इन रेट से ज्यादा रेट नहीं आएंगे। अब इन्होंने ऐसा लिख तो दिया,लेकिन दोबारा टैंडर होने पर क्या रेट आएंगे ऐसा शपथ पत्र पहले से कौन दे? ऐसा शपथपत्र तो शायद अशोक मीणा खुद भी न दें पाएं। इसी तरह एक ऐसी ही फाइल पर उन्होंने लिख दिया कि टेंडर के लिए रेट बहुत कम आए हैं,इसलिए ये काम व्यवहारिक नहीं है। मतलब रेट कम आएं तब भी दिक्कत और ज्यादा आएं तब भी दिक्कत। आप ये तय कर लें कि कहना क्या चाहते हो? करना क्या चाहते हो? काम करना चाहते हो या सिर्फ टरकाना चाहते हो? अगर कहीं कोई किंतु-परंतु है भी तो उसे ठीक करने के अनेक रास्ते हैं। अफसर का काम फाइल को लटकाना नहीं,बल्कि काम को सिरे चढाना होता है।

बहुत सी रूटीन की फाइलों पर भी मीणा लीगल ओपिनियन के लिए लिख देते हैं। अब जिस तरह से मीणा इस विभाग को आगे ले जाने-और आगे ले जाने-चांद पर ले जाने, की शिददत से कोशिश कर रहे हैं तो उस से ये माना जा सकता है कि आने वाले समय में भाजपा की लोकप्रियता शहरों की तुलना में गांवों में काफी बढ जाएगी। ये भी तो हो सकता है कि गांव-देहात में पकड़ बनाने-पैठ बढाने के लिए ही भाजपा ने मीणा को छांट कर इस विभाग में लगाया हो।

काफिला बनाने की कोशिश

विपक्ष के पूर्व नेता और ऐलनाबाद से भावी विधायक होने को आतुर अभय सिंह चौटाला अपना काफिला बनाने के लिए इन दिनों काफी मेहनत कर रहे हैं। इनैलो के हाशिए पर आने के बाद और विधानसभा की सदस्यता से अभय के इस्तीफा देने के बाद अब इनकी पार्टी का हरियाणा में एक भी विधायक नहीं है। तीन कृषि कानूनों को किसानों से खिलाफ बता कर अभय चौटाला ने किसानों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है। इसी कड़ी में इन्होंने कुछ पूर्व विधायकों कोे भी अपनी पार्टी में भी शामिल करवाया। अब अभय के आवास पर धीरे धीरे लोग फिर से जुटने लगे हैं। जो लोग उनकी कड़क मिजाजी के कारण कभी उनसे किनारा कर गए थे, उनमें से कुछ अब फिर से उनके करीब होने लगे हैं।

अभय को वक्त ने काफी कुछ सिखाया है। एक समय बाप-दादा के नाम के सहारे ही अपनी सियासी नाव पार लगाते रहे, अभय अब अपनी मेहनत के दम पर इनैलो को आगे बढाने की कोशिशों में जुटे हैं। नए-पुराने लोगों को साथ जोड़ने में लगे हैं। अभय को लगता है कि अगले चुनाव में उनके पास बहोत से विधानसभा सीटों पर मजबूत उम्मीदवार होंगे। लगता तो उनको और भी बहुत कुछ है,लेकिन ये तय है कि भविष्य में अभय का ग्राफ पहले की तुलना में ऊंचा ही रहेगा। इस हालात पर कहा जा सकता है:

कोशिश भी कर,उम्मीद भी रख,रास्ता भी चुन
इसके बाद थोड़ा मुकददर तलाश कर

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