पंचकूला 10 जून- हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन ने केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के उस बयान को बेतुका बताया गया है, जिसमें उन्होंने किसानों की बुद्धिमत्ता और समझ पर ही सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि तोमर आज जिस पद पर आसीन हैं। यह सब इन  किसानों की ही देन है और इनके बल पर ही यहां तक पहुंचें हैं। किसानों ने मोदी सरकार के सन् 2022 तक फसलों के दाम दौगुना करने के वायदे पर विश्वास किया और सत्ता में आने पर आज उन्हीं किसानों को झांसा दिया  जा रहा है।       

 उन्होंने कहा कि कृषि मंत्री का यह ब्यान , किसानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है, जिसमें कृषि मंत्री ने कहा है कि सरकार किसानों से बातचीत के लिए तैयार हैं, अगर किसान तीन नए कृषि कानूनों के बारे में नए तर्क संगत सुझावों के साथ आएंगे। जो अन्नदाता किसान अपनी मेहनत से देश के लोगों का  पेट पालता है और जिसने अनाज के मोर्चे पर देश को आत्मनिर्भर बना दिया है, उनके विवेक पर ही आज  कृषि मंत्री सवाल खड़ा कर रहे हैं। इससे बड़ी विडम्बना कोई भी नहीं हो सकती है।                           

चन्द्र मोहन ने कहा कि इसी प्रकार का असंवेदनहीन ब्यान कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सरसों के तेल की बढ़ रही कीमतों के बारे में दिया है, उन्होंने कहा है कि सरसों के तेल की कीमतें इस लिए बढ़ी है क्योंकि सरकार ने मिलावट खोरी बंद कर दी है। उन्होंने कृषि मंत्री से सवाल किया कि क्या भारत की जनता को पिछले 7 सालों से भारतीय जनता पार्टी की सरकार सरसों का मिलावटी तेल ही खिला रही थी। उन्होंने केन्द्रीय मंत्री के इस कुतर्क को बेतुका बताते हुए कहा कि,यह ब्यान बढ़ती महंगाई को रोकने में असफल रहने पर अपनी नाकामी को छिपाने के लिए ही दिया गया  है। इस के लिए उन्होंने देश से माफी मांगनी चाहिए।                 ‌           

चन्द्र मोहन ने कहा कि किसानों की समस्याओं का एक मात्र समाधान तीनों काले कृषि कानूनों की वापसी होने से ही सम्भव है। किसान अपना अस्तित्व बचाने के लिए पिछले 6 महीने से अधिक समय से देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं और शान्ति पूर्ण और अहिंसात्मक तरीके से आन्दोलन कर रहे हैं और इस दौरान 500 से अधिक किसान को अपने प्राणों से भी हाथ धोना पड़ा है और आज भी किसान अपने अधिकारों की रक्षा के लिए बड़ी बहादुरी के साथ केन्द्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ रहा है और इस  संघर्ष विराम का एक ही रास्ता है कि केन्द्र सरकार इन तीनों काले कृषि कानूनों को वापस ले और किसानों के हितों के लिए केन्द्र सरकार स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को अक्षरशः लागू करके लोकसभा चुनाव के दौरान किसानों से किया गया अपना वायदा पूरा करे।                       

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