बकस्वाहा में हीरे और जंगल में जंग की तैयारी।
सर्वे 20 साल पहले शुरू हुआ, अब यहां सवा दो लाख पेड़ काटे जाने वाले हैं।

अशोक कुमार कौशिक 

हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. लोगों में पर्यावरण जागरूकता को जगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित विश्व पर्यावरण दिवस दुनिया का सबसे बड़ा वार्षिक आयोजन है। इसका मुख्य उद्देश्य हमारी प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाना और दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों को देखना है ।यह कार्यक्रम इस पृथ्वी की सुन्दरता को बनाए रखने के लिए कुछ सकारात्मक गतिविधियों के लिए एकसाथ कार्य करने की एक पहल है। हमें पूरे सालभर कार्यक्रम के उद्देश्यों को अपने ध्यान में रखना चाहिए और उन्हें वृक्षारोपण के माध्यम से आसपास के वातावरण को सुन्दर बनाने और साफ-सफाई, पानी की बचत, बिजली का कम प्रयोग, जैविक और स्थानीय खाद्य पदार्थों का उपयोग, जंगली जीवन की सुरक्षा आदि बहुत सी गतिविधियों को कार्यरुप में बदलना चाहिए । जीवन के लिए हमारे पास एकमात्र यही ग्रह है, यह हमारा घर है और हम सभी इसकी प्राकृतिक सुन्दरता को सदैव के लिए बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है । हमारे इस सुंदर ग्रह पृथ्वी के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव हमें खुद आगे होकर करना ही पड़ेगा। आइए संकल्प ले की अपने आस पास के पेड़ पोधो का रख रखाव तो करेंगे ही अधिक से अधिक पोधे लगा कर आने वाली पीढ़ी का भी भविष्य सुखद करे।

बकस्वाहा में हीरे और जंगल में जंग की तैयारी बकस्वाहा का जंगल जो छतरपुर जिले की अमानत है पर जैसे ही आदित्य बिड़ला ग्रुप को यहां हीरा खनन का ठेका मिलने की घोषणा हुई समस्त पर्यावरण प्रेमियों के कान खड़े हो गए क्योंकि इससे पहले इस स्थान का सर्वे सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया की कंपनी रियो टिंटो ने शुरू किया था और कंपनी ने उस दौर में बिना अनुमति 800 से ज्यादा पेड़ काट डाले थे। गौरतलब है कि बंदर डायमंड प्रोजेक्ट के तहत इस स्थान का सर्वे 20 साल पहले शुरू हुआ था। अब यहां सवा दो लाख पेड़ काटे जाने वाले हैं।

खनिज विभाग ने पूर्व में यह खदान  2008 में ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया की साझेदारी वाली रियो टिंटो कंपनी को लीज पर आवंटित की थी। जिसमें नीरव मोदी की पार्टनरशिप थी तब शर्त ये थी कि रियो टिंटो खदान से निकलने वाले हीरे निर्यात नहीं करेगी और हीरे की कटिंग और पॉलिशिंग मध्य प्रदेश में ही करेगी। कंपनी को इसमें मुनाफा नहीं दिखा तो वो यह प्रोजेक्ट सन् 2016 में छोड़ दी। तब यह भी कहा जाता है कि यह कंपनी बड़ी मात्रा में हीरे लेकर जा चुकी थी, जबकि कुछ ही हीरे राज्य सरकार के खजाने में जमा करके गई है।

एक छतरपुर जिले के बकस्वाहा की बंदर हीरा खदान 364 हेक्टेयर वनभूमि में है, जिसमें 34. 2 मिलियन कैरेट हीरा होने की संभावना है। इसकी कीमत करीब 55 हजार करोड़ रुपये है। इसके लिए पांच कंपनियों यानी भारत सरकार के उपक्रम नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉपोर्रेशन लिमिटेड, एस्सेल माइनिंग, रूंगटा माइंस लिमिटेड, अडानी ग्रुप की चेंदीपदा कलरी और वेदांता कंपनी ने तकनीकी निविदाएं जमा की थीं। आदित्य बिड़ला ग्रुप की कंपनी ने बंदर खदान को नीलामी के दौरान उच्चतम बोली 30.5 प्रतिशत लगाकर प्राप्त किया है। यह खदान एशिया महाद्वीप की सबसे उत्कृष्ट जैम क्वालिटी के हीरों की खदान है। नीलामी प्रक्रिया में देश की बड़ी कंपनियों में शुमार अडानी ग्रुप 30 प्रतिशत अधिकतम बोली लगाकर दूसरे स्थान पर रहा। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले की बंदर हीरा खदान पर आदित्य बिड़ला समूह जल्दी ही काम शुरू कर देगा, क्योंकि सरकार ने इसका आशय पत्र (एलओआई) समूह के अधिकारियों को सौंप दिया है। इससे राज्य सरकार को करीब 23 हजार करोड़ रुपए रायल्टी के रूप में मिलेंगे जो सरकारी बोली के राजस्व का चार गुना होगा। सरकार एक साल में यह राजस्व हासिल करने की कोशिश करेगी।

लेकिन हीरा खदान के लिए 62.64 हेक्टेयर जंगल चिह्नित है। नियम है कि 40 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र के खनन का प्रोजेक्ट है तो उसे केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय मंजूरी देता है। वन विभाग में लैंड मैनेजमेंट के अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक सुनील अग्रवाल का कहना है कि इस प्रपोजल को केंद्र सरकार में भेजा जा चुका है, अभी मंजूरी नहीं हुई है। इसीलिए पर्यावरण प्रेमी अपनी एकजुटता के साथ पर्यावरण दिवस से हीरा खदान के खनन के काम को रोकने अपने जंगल को बचाने पांच जून विभिन्न चरणों में आंदोलन करने जा रहे हैं जिसमें देश और विदेश से पर्यावरण संरक्षण करने वाले लोग आते रहेंगे। कोरोना कर्फ्यु के कारण इसमें विलंब हुआ है।

छतरपुर में बक्स्वाहा हीरा खदान के लिए काटे जाने वाले 2.15 पेड़ों को बचाने के लिए मप्र समेत देश भर के एक लाख 15 हजार लोग सामने आ गए हैं। कोरोना को देखते हुए इन सभी ने फिलहाल सोशल मीडिया पर ‘सेव बक्सवाहा फॉरेस्ट’ कैंपन चलाया है, जरूरत पड़ी तो पेड़ों से चिपकेंगे। गत 9 मई को देश भर की 50 संस्थाओं ने इसके लिए वेबिनार किया और रणनीति बना ली है। चिपको आंदोलन का प्रशिक्षण भी युवाओं को दिया जा रहा है।

इस बीच दिल्ली की नेहा सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की है, जिसे सुनने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर कर लिया है। बिहार में पीपल, तुलसी और नीम लगाने के देशव्यापी अभियान से जुड़े डॉ. धर्मेंद्र कुमार का कहना है कि कोरोना ने ऑक्सीजन की अहमियत बता दी है। राष्ट्रीय जंगल बचाओ अभियान से जुड़ी भोेपाल की करुणा रघुवंशी ने बताया कि कई राज्यों के लोग जुड़े हैं। डॉ. धर्मेंद्र कुमार ने भी आंदोलन को सहमति के तौर पर जुड़ने की इच्छा जाहिर की है।

5 जून को पर्यावरण दिवस है इस अवसर पर पर्यावरण बचाओ अभियान के संस्थापक सदस्य, मार्गदर्शक एवं समाजसेवी बकस्वाहा जंगल बचाओ केम्पेन  के समर्थन में कृषि वैज्ञानिक  एवं समाज सेवी डॉ  सदाचारी सिंह तोमर उम्र 70 वर्ष जो आईसीएआर , पूसा, नई दिल्ली से सेवानिवृत्त और एकमात्र जीवित कृषि वैज्ञानिक हैं जिन्हें दो बार इंजीनियरिंग फील्ड में राष्ट्रपति सम्मान मिला है। पद्मश्री बाबूलाल दाहिया उम्र 85 वर्ष, सतना, जो जैविक खेती, विभिन्न प्रकार के बीज संग्रहण, संरक्षण में उल्लेखनीय योगदान है। शरद सिंह कुमरे  50 वर्ष संस्थापक पराक्रम जनसेवी संस्थान, पर्यावरण बचाओ अभियान, जागो भारत अभियान, भोपाल, कैप्टन राज द्विवेदी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भूतपूर्व सैनिक परिषद रीवा। श्री आनंद पटेल अध्यक्ष, पर्यावरण शिक्षा एवं संरक्षण समिति, भोपाल, ईश्वरचंद्र त्रिपाठी, उम्र 75 वर्ष, सतना वरिष्ठ समाज सेवी और भ्रष्टाचार हटाओ अभियान प्रमुख विवेक सक्सेना, पर्यावरण शिक्षा एवं संरक्षण समिति भोपाल, बकस्वाहा पहुंच कर एक दिन का उपवास /जंगल भ्रमण/पेड़ों से चिपक कर बकस्वाहा जंगल बचाने  के लिए चिपको आंदोलन का सांकेतिक शुरुवात/रक्षा सूत्र बांधकर  बकस्वाहा जंगल बचाने का संकल्प लेंगे।स्थानीय लोगों से भी संपर्क कर उन्हें पर्यावरण संरक्षण के हित में बकस्वाहा जंगल बचाने के लिए प्रेरित करेंगे । ग्रामवासियों के साथ पौधरोपण कर बकस्वाहा जंगल बचाने का संकल्प दिलवाएंगे।

इस आंदोलन की सबसे बड़ी ताकत होंगे भगतसिंह को अपना आदर्श मानने वाले बुंदेलखंड के क्रांतिकारी युवा योद्धा जो पूंजीवादी व्यवस्था के समूल नाश के लिए प्रतिबद्ध हैं वे जन जन में आक्सीजन की कमी से हुई मौतों के लिए जिम्मेदार सरकार से जंगल बचाने की गुहार कई से लगा रहे हैं जंगल क्षेत्र के लोगों का उनको साथ भी मिला हुआ है। लोग बुंदेली भाषा में लोकगीत और विभिन्न नारों के जरिए पहुंच बनाए हुए हैं, क्षेत्र की कई वीडियो प्रसारित हो रही हैं। महिलाओं और बच्चों में भी जंगल बचाने की जोत जल चुकी है।

सुख्यात पर्यावरणविद और प्रकृति उपासक चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदर लाल बहुगुणा की अचानक मौत ने पर्यावरण प्रेमियों को दूने उत्साह से इस अभियान में जोड़ा है। बहुगुणा जी के प्रति उनकी यह निष्ठा बक्सवाहा को ऐसा लगता टिहरी गढ़वाल बना देगी जहां लोग पेड़ो को अपने परिवार का सदस्य मानते हैं। उनके पदचिन्हों पर चलकर पूरा भरोसा है बुंदेलखंड के लोग हीरा के विरुद्ध अपने जंगल की जीत दर्ज़ करा लेंगे। प्रसिद्ध करीबी हीरा खनन क्षेत्र पन्ना की खदानों से लोगों को क्या मिला वे भी आंदोलन में शरीक होकर वहां की बदहाली से परिचित करा रहे हैं। लोग जाग गए हैं और उनसे उम्मीद की जा सकती है कि वे तब तक पीछे नहीं हटेंगे जब तक कामयाब नही होंगे। अंत में कैफ़ी आज़मी के ये लफ़्ज़ सबके लिए

सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो,कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी..

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