किसानों पर दायर झूठे मुकदमे बिना शर्त वापस ले सरकार – दीपेंद्र हुड्डा

·         भाजपा-जजपा सरकार ने फिर साबित कर दिया कि वो देश की सबसे बड़ी किसान विरोधी सरकार है. ·         ये कैसा प्रजातंत्र है कि सरकार बातचीत भी नहीं कर रही और लाठियां भी बरसा रही. ·         सरकार किसानों को डराने धमकाने से बाज आये, बातचीत शुरू करने का प्रस्ताव माने. ·         हिसार, उगालन के किसान रामचंद्र खरब को दी श्रद्धांजलि

चंडीगढ़, 24 मई। राज्य सभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने 350 से भी ज्यादा किसानों पर दायर झूठे मुकदमे बिना शर्त वापस लेने की मांग करते हुए हरियाणा सरकार के तानाशाही रवैये पर घोर निराशा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि पिछले करीब 6 महीने से किसान शांतिपूर्ण और प्रजातांत्रिक ढंग से तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन, 16 मई को सरकार ने जिस बर्बरता से बुजुर्ग किसानों एवं महिलाओं पर लाठियां बरसायी और फिर सैंकड़ों किसानों पर झूठे मुकदमे दर्ज करा दिए उसे प्रजातंत्र में बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि प्रदेश की भाजपा-जजपा सरकार ने फिर साबित कर दिया कि वो देश की सबसे बड़ी किसान विरोधी सरकार है। उसकी वादाखिलाफी, अहंकार व हठधर्मिता के बीच आज एक और अन्नदाता की जान क़ुर्बान हो गयी। सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने हिसार, उगालन के किसान रामचंद्र खरब को श्रद्धांजलि दी और परिजनों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की।

उन्होंने सवाल किया कि ये कैसा प्रजातंत्र है कि सरकार बातचीत भी नहीं कर रही और लाठियां भी बरसा रही है और पीड़ित किसानों पर ही झूठे मुकदमे भी दर्ज करा रही है। सैंकड़ों किसानों पर झूठे मुकदमें दर्ज कराना इस सरकार के अहंकार और तानाशाही का प्रतीक है। दीपेंद्र हुड्डा ने आगे कहा कि क्या क्रांति कभी जबरन थोपे गए झूठे मुकदमों से थमी है? या सच की आवाज कभी लाठियां दबा सकी हैं? हम किसानों के साथ हैं और सरकार को न्याय करना ही होगा। सरकार किसानों को डराने धमकाने से बाज आये, सरकार की लाठी, गोली से किसान डरने वाले नहीं। उन्होंने कहा कि महामारी के इस कठिन दौर में किसान आंदोलन का हल शांतिपूर्ण ढंग से बातचीत के माध्यम से निकालना चाहिए था, तब सरकार सत्ता के घमंड में बातचीत के सारे द्वार बंद कर बैठ गयी। जब किसानों ने अपनी तरफ से बातचीत फिर से शुरु करने की पहल की तो सरकार फिर से अपनी तानाशाही पर उतर गयी है।

उन्होंने कहा कि बीते करीब 6 महीने में 350 से ज्यादा किसानों ने अपनी जान कुर्बान कर दी। लेकिन सरकार किसानों की बात मानने की बजाय अड़ियल रवैया अपनाए रही। जिसके कारण अभी तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है। उन्होंने कहा कि किसी भी समस्या का हल आपसी बातचीत से ही हो सकता है, ऐसे में जरूरी है कि सरकार अपनी हठधर्मिता छोड़े और संयुक्त किसान मोर्चे के बातचीत के प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार करे, उनकी मांगों को मानकर इस गतिरोध को खत्म कराए। 

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