–कमलेश भारतीय पर्यावरण के लिए काम करने वाले और देश विदेश में जाने जाने वाले सुंदर लाल बहुगुणा नहीं रहे । कोरोना की दूसरी लहर उन्हें अपने साथ बहा ले गयी । ऋषिकेश के एम्ज में कुछ दिनों से इलाज के लिए भर्ती थे लेकिन घर सकुशल लौट नहीं सके और वहीं से महाप्रयाण यात्रा पर निकल गये । जैसे शताब्दियों पहले गुरु जम्भेश्वर के अनुयायियों ने पेड़ों की बचाने के लिए मुहिम चलाई थी , उसी का नया रूप सुंदर लाल बहुगुणा का चिपको आंदोलन माना जा सकता है । मिट्टी , पानी और बयार को बचाने का आह्वान करते करते वे लम्बे आंदोलन चलाते रहे और जेल यात्रायें भी कीं । इनकी तरह समाज की चिंता करने वालों में मेधा पाटकर, राजेंद्र जौहड़ बाबा और बलवीर सिंह सींचेवाल ही इस समय ध्यान में आ रहे हैं जो अपने अपने क्षेत्र में काम कर रहे हैं । पर्वतों के साये में पले बढ़े और इन्हीं पर्वतों की चिंता करते करते चले गये। अपने पेड़, अपनी मिट्टी और शुद्ध हवा के लिए आंदोलन चलाते रहे । बेशक आज प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और हमारे अन्य बड़े नेता दुखी हैं लेकिन सच्ची श्रद्धांजलि तो यह होगी कि पेड़ों की रक्षा के लिए फिर किसी को इतने लम्बे आंदोलन चलाने की जरूरत न रहे । उत्तराखंड में बनने वाली बिजली परियोजना पर सुंदर लाल बहुगुणा ने कितने सवाल उठाये , सरकार को जगाने की कोशिश की लेकिन सरकार अपने हठ और ऐंठ में रही और आखिर उनकी भविष्यवाणी कहिये या चेतावनी सच साबित होकर रही । वे अपनी मिट्टी को अच्छी तरह समझते थे और इसे बचाने के प्रयास करते रहते थे । क्या अब कोई दूसरा सुंदर लाल बहुगुणा बन पायेगा ? विनम्र श्रद्धांजलि बाबा को । क्या फिर कोई मेधा पाटकर बनेगी ? या कोई राजेंद्र सिंह जौहड़ बाबा बनेगा ? या फिर बलवीर सिंह सींचेवाल आएगा नदियों को फिर से सींचने ? शुद्ध करने ? हम लोग तो चार पेड़ लगवा कर वृक्ष मित्र कहलाने फोटो लेकर अखबारों के दफ्तरों में पहुंच जाते हैं प्रचार पाने के लिए और नर्मदा किनारे आंदोलन करने वाली मेधा सिर्फ आंदोलन करती है । बाबा सुंदर लाल बहुगुणा आंदोलन करते रहे आजीवन और अखबार या मीडिया उनके पीछे रहे । यही काम , यही पूजा । यही जीवन मंत्र । प्रचार से हट कर काम करने का मं तार लें इनसे । जो इक घर बनाओ इक पेड़ लगा लेनापरिंदे सारे घर में चहचहायेंगे ,,, बाकी हमारा ओलम्पिक पहलवान सुशील कुमार अब इश्तिहारी मुज़रिम बन गया है । उस पर इनाम भी रख दिया गया । इससे ज्यादा पतन क्या होगा ? आत्मसमर्पण कर देना चाहिए । खेल में यह खूनी खेल ? Post navigation आखिर क्यों प्रधानमंत्री की ‘मीटिंग’ फिर बड़ी खबर नहीं बन पायी? पिछले 40 सालो से ज्यादा समय से चल रहे अस्थाई मान्यता प्राप्त स्कूलो को एकमुश्त स्थाई मान्यता की मांग :~नरेंद्र सेठी सर्व हरियाणा प्राइवेट स्कूल संघ प्रदेश अध्यक्ष