-कमलेश भारतीय पत्रकारिता में आज के समय में सबसे बड़ी चुनौती विश्वसनीयता बनाये रखने की है । विश्वसनीयता में आज के दिनों में कमी आई है। यूट्यूबर्ज ने विस्तार तो किया लेकिन प्रचार अधिक और विश्वास कम । यह कहना है, रामचंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति का , जिन्होंने अपने पिता के केस को लड़ और जीत कर एक विश्वास बनाया कि सच आखिर सच होता है । इसे आप दबा नहीं सकते ।न गोली से , न तलवार से और न किसी लोभ लालच से । मूल रूप से गांव दड़बी निवासी रामचंद्र छत्रपति सिरसा आ बसे थे और अंशुल की पढ़ाई लिखाई सिरसा में ही हुई। -पापा के बारे में क्या क्या ध्यान है?-पापा पहले दिल्ली आर्य समाज की पत्रिका के साथ थे और फिर लाॅ किया और सिरसा बार एसोसिएशन के सदस्य बन वकालत की । फिर सिरसा के समाचार पत्रों में स्तम्भ कार रहे व अनेक समाचार पत्रों से संवाददाता के तौर पर जुड़े रहे और आखिर सन् 2000में पूरा सच सांध्य दैनिक का प्रकाशन शुरू कर दिया । -क्या क्या संस्कार घुट्टी में मिले ?-हम भाई बहनों को संस्कार मिला कि जो भी काम करना है पूरी ईमानदारी से करना है । चाहे वकालत हो या पत्रकारिता। अपने पेशे से कभी कोई बेईमानी नहीं करनी । पत्रकारिता में सच को सच कहना । -जिस दिन वह लोमहर्षक कांड हुआ तब आप कितनी उम्र के थे ?-बाइस साल । -क्या पहले से ऐसे खतरे के बारे में कोई आशंका थी ?-पापा या हमें ही नहीं पूरे शहर को यह आशंका थी जो सच हुई । सभी दोस्तों मित्रों ने समझाया था कि इन लोगों के मुंह लगना ठीक नहीं । सबको डेरे की असलियत मालूम थी, घर में और दफ्तर में यही चर्चा चलती थी फिर भी पापा ने सन् 2002 में साध्वी का पत्र प्रकाशित किया । -इसके बाद क्या हुआ ?-दबाने व धमकाने का काम शुरू हो गया पर मैं समझता हूं कि पापा को दबाने का काम कर गलत नम्बर डायल कर लिया क्योंकि पापा डरते या दबते नहीं थे । -कब हुआ छत्रपति जी पर हमला ? सन् 2002 में 24 अक्तूबर को और निधन हुआ सन् 2002 के 21 नवम्बर को । -क्या कहोगे इस भयावह कांड के बारे में ?-यह वोट बैंक की राजनीति का कमाल कि इतने वर्ष डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम बाहर रहा । सभी राजनीतिक दलों और इसका रिश्ता किसी से छिपा नहीं ।राजनीति और यह तथाकथित संत एक दूसरे को यूज करते रहे । -अब आपने राम रहीम की पैरोल पर सवाल उठाया है । क्यों ?-इसकी गिरफ्तारी के समय इतनी बड़ी साजिश रची गयी और करोड़ों रुपये की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया गया । हाईकोर्ट को दखल देना पड़ा। तब जाकर इसे सलाखों के पीछे पहुंचाया जा सका । अगर ऐसे आदमी को पैरोल के नाम पर छूट मिलती है तो सरकार जवाबदेह होगी । यह तो खुशी की बात है कि मीडिया जागरूक है । इसका जेल से बाहर आना खतरे से खाली नहीं और अस्पताल की बजाय मानेसर के किसी फाॅर्म हाउस में क्यों ले जाया गया ? अभी तक आदित्य को पकड़ा क्यों नहीं गया? -आपने पापा के बाद पूरा सच कब तक चलाया ?-सन् 2015 तक । अब फिर से प्रकाशन का विचार है । -कितने बच्चे हैं ?-दो । एक बेटा । एक बेटी । -कोई सम्मान?-चंडीगढ़ प्रेस क्लब ने हमारे पूरे परिवार को सम्मानित किया था और दिल्ली की एक संस्था , आर्य समाज सहित और बहुत से लोगों ने भी सम्मानित किया । -आज की पत्रकारिता पर क्या कहोगे ?-सोशल मीडिया और यूट्यूबर्ज बढ़े हैं । इसके बावजूद सबसे बड़ी चुनौती इसकी विश्वसनीयता बनाये रखना है ।इसकी विश्वसनीयता दिनों दिन कम होती जा रही है । हमारी शुभकामनाएं अंशुल छत्रपति को । Post navigation लेखक माता पिता की बेटी बनी शिल्पकार : शंपा शाह मिट्टी, पानी और बयार का कौन पूछेगा अब हाल ?