-कमलेश भारतीय बहुत सरल तरीके से शोमैन राजकपूर ने अपनी फिल्में बनाईं । एक जिस देश में गंगा बहती है और दूसरी बरसों बाद राम तेरी गंगा मैली हो गयी । दोनों फिल्मों के बीच काफी वर्षों का अंतराल था । पहली फिल्म एक भावनात्मक फिल्म थी और दूसरी फिल्म का नाम जैसे गंगा की बदलती हालत के साथ साथ नारी की तुलना । दोनों अपने अपने समय के सच । मुझे याद है जब बचपन में दादी हरिद्वार लेकर गयी थीं और हम तब दस दिन तक रहे थे । एक ऐसा मंदिर भी था जहां शेर के आने तक की आहट की बात कही जाती थी । तब सचमुच गंगा पावन और पवित्र थी । शाम को हरकी पौड़ी के घाट पर आरती का नज़ारा देखते ही बनता था । कुछ वर्ष बाद मैं अपने परिवार और नन्ही बच्चियों को उंगली पकड़े और कंधों पर उठाये हरिद्वार गया था । और एक बड़ा सा लेख लिखा था वहां फैल व पनप रहे आश्रमों को लेकर । गंगा हमारी एक नदी भर नहीं है । यह हमारी संस्कृति है और हम इसे अपनी मां कहते हैं। इसी गंगा के कारण हमारे प्रधानमंत्री इसके बुलावे का भुलावा लेकर वाराणसी से चुनाव लड़े और उन्हें आशीर्वाद भी मिला । यही नदी सचमुच आजकल राम तेरी गंगा मैली हो चुकी है । सिर्फ कूड़े कचरे के चलते नहीं बल्कि इसमें मिल रहे शवों के कारण । बहुत चर्चा चल रही है कि आखिर ये शव किसके हैं और कहां से आ रहे हैं ? मीडिया ही नहीं आम आदमी भी इसे कोरोना काल की एक भयावह तस्वीर मान रहा है । हमारे पास झूठे आंकड़े हैं कोरोना मृतकों के । हमसे छिपाये जा रहे हैं मृतकों के सही आंकड़े । गांव गांव ये आंकड़े इकट्ठे किये जायें तो तस्वीर और भी भयावह नज़र आने लगेगी । प्रयागराज यानी इलाहाबाद में भी गंगा किनारे यही हाल है । इतनी लाशों कि गिननी मुश्किल । हे राम , यह गंगा किनारे क्या हो रहा है ? मृत्यु के बाद अस्थियां विसर्जन कर मोक्ष मिलने की कामना तो हमारः समाज में है और अगर ऐसा न किया जाये तो कितने सारे डर दिखाये जाते हैं लेकिन अब तो पूरे के पूर्व ही गंगा में बहाये जा रहे हैं जिससे हंगामा मचा हुआ है । आखिर गंगा कितना बोझ ढोये मानवता का ? इसके बावजूद हमारे नेता कोरोना के प्रति जागरूक करने आते हैं और खुद बिना माॅस्क दिखाई देते हैं या फिर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते दिखाई नहीं देते । यह क्या ? औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत ? इधर हमारे दो दो बार के ओलम्पिक विजेता पहलवान सुशील कुमार आजकल पुलिस से छिपते फिर रहे हैं । एक युवा पहलवान की हत्या में इन पर संदेह है और ये तबसे फरार हैं । एक बात तो साफ है कि अब इनका ओलम्पिक नहीं बल्कि कोर्ट कचहरी जाना तय है । इतनी महत्त्वाकांक्षा? यह प्रतिस्पर्धा कहां ले गयी ले जायेगी खिलाड़ियों को ? चक दे इंडिया याद आ गयी ? सरेंडर करें सुशील कुमार यदि कुछ नहीं किया तो पर्दा कैसा ? Post navigation और बनाओ चाय वाले को प्रधानमंत्री, मोदी के तौर तरीकों से संघ में बेबस बेचैनी नारद जी खबर लाये हैं नारद स्टिंग की