…आखिर कहना क्या चाहते हो?

ऐसा लगता है कि हरियाणा सरकार कोरोना महामारी से निपटने के लिए जरूरत से ज्यादा ही सक्रिय है। इस क्रम में लगभग आए दिन क्रांतिकारी फैसले लिए जा रहे हैं। जैसे कि कई सीनियर आईएएस अफसरों को एक एक जिले का इंचार्ज बना दिया गया। प्रदेश इस फैसले से अभी उबर ही रहा था कि फिर मंत्रियों को भी इन जिलों के दायित्व से नवाज दिया गया। सरकार ने अफसरों को चार्ज इस उम्मीद में सौंपा होगा कि इनके लंबे प्रशासनिक अनुभव का लाभ इस बीमारी से निपटने में मिल सकेगा। इन सरकारी आदेशों में इन अफसरों को तुरंत प्रभाव से अपने जिलों की जिम्मेदारी का निर्वहन करने-जाने के लिए कहा गया।

सरकार शायद ऐसा मानती है कि इधर वो आदेश देगी और उधर इन आदेशों पर अम्ल हो जाएगा। ऐसे ही एक अधिकारी को जब ये डयूटी दी गई,लेकिन उनकी तो चुनावों में डयूटी लगी हुई थी। जाहिर है कि उन्होंने अपनी ये डयूटी निभानी थी। निभाई। वो चुनावी डयूटी पर चले गए। ऐसा भी नहीं कि चुनावी डयूटी से वापस लौटने के बाद वो अपने जिले में चले गए हों। कई दिन हो गए,लेकिन अपने जिले वालों को दिशा देने-मार्गदर्शन देने की जहमत उन्होंने नहीं उठाई है। इधर जिले वाले अफसर हैं कि इनकी ऐढी ठा ठा के इन साहब की बाट देख रहे हैं। ऐसे ही सरकार ने एक आदेश ये किया कि कई चिकित्सक बैकग्राउंड वाले अफसरों की डयूटी कोरोना से निपटने के लिए लगाई हुई है। ये तमाम अफसर अपनी ये डयूटी निभाने को व्याकुल हुए जा रहे हैं। लेकिन उनको ये बताने वाला कोई नहीं कि उनसे काम क्या लिया जाना है।

जिला उपायुक्त्तों की सहायता के लिए भी कुछ आईएएस और एचसीएस की डयूटी लगाई गई है। इनके आदेशों में कहा गया है कि जब और जहां, इनकी जरूरत हो, इनकी सेवाएं ली जाएं। अब कई डीसी इनकी सेवा लेने को खास इच्छुक नहीं है। लिहाजा इनको ये बताया नहीं जा रहा कि उनको कहां-क्या काम करना है। बेहतर होता कि सरकार इन अफसरों को स्पैसिफिक टारगेट देती। निश्चित काम देती। मुख्य सचिव या मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारी इन को दो टूक बताते कि सरकार उनसे क्या चाहती है-उम्मीद करती है? डूज एंड डोंट डूज पर छोटी सी ब्रीफिंग दे दी जाती। सामान्य प्रवृति-प्रकृति के आदेश करने से कई दफा उनका रिजल्ट सामान्य ही आता है। मैनेजमेंट का भी नियम है कि सबकी जिम्मेदारी मतलब किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं। इस हालात पर कहा जा सकता है:

ये बुत जो हमने दोबारा बना के रक्खा है
इसी ने हम को तमाशा बना के रक्खा है
वो किस तरह हमें ईनाम से नवाजेगा
वो जिस ने हाथों को कासा (भिक्षा पात्र) बना रक्खा है

सच्चे नायक

अब ऐसा भी नहीं कि सरकार में सारे अफसर एक ही तरह काम कर रहे हैं। कुछ अफसर शानदार काम कर रहे हैं। हरियाणा के एक आईएएस अधिकारी ने करीब 125 अमूल्य जिंदगियो को बचाने में अमूल्य योगदान दिया। ये लोग मेवात के नल्हड़ मैडीकल कालेज की आईसीयू में दाखिल थे। इसी दौरान वहां आक्सीजन खत्म होने की नौबत आ गई। मैडीकल एजुकेशन विभाग के डायरेक्टर डा.शालीन ने इस हस्पताल के लिए समय से आक्सीजन का प्रबंध करने में उल्लेखनीय योगदान दिया। यहां वहां, न जाने कहां कहां से आक्सीजन का प्रबंध करने में डा.शालीन ने अपनी जान लड़ा दी। आखिरकार समय पर आक्सीजन का प्रबंध होने से ये अमूल्य जिंदगियां बच सकी। डा.शालीन के इस अनुकरणीय कार्य के लिए मुख्य सचिव विजयवर्धन ने उनको एक प्रशस्ति पत्र लिख कर कहा है कि शहीद हसन खान मेवाती राजकीय मैडीकल कालेज,नल्हड़, नंूह में अनमोल जानों को बचाने के लिए उनके योगदान के लिए हम उनके कर्जदार रहेंगे। वो सही मायने में हम सबके सच्चे नायक हैं।

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