-कमलेश भारतीय जो साहित्य मुझे अच्छा लगता है , उसे वीडियो और यूट्यूब के माध्यम से लोगों तक शेयर कर देती हूं क्योंकि अब साहित्य को फैलाने का यह बढ़िया माध्यम है । यह कहना है राजस्थान के श्रीगंगानगर की युवा रचनाकार ऋतु सिंह का जो गुम पन्नों की दास्तान यूट्यूब चैनल से श्रेष्ठ साहित्य सामने ला रही हैं । लगभग तीन साल पहले श्रीगंगानगर में मेरे पुराने मित्र डाॅ कृष्ण कुमार आशु ने आमंत्रित किया था व्याख्यान के लिए । उस व्याख्यान के बाद ऋतु सिंह अपनी जिज्ञासाओं के साथ मिली थी और तब से सम्पर्क बना हुआ है । मूल रूप से यूपी के मुजफ्फरनगर निवासी ऋतु सिंह का जन्म ही वहा हुआ उसके पांच माह बाद परिवार श्रीगंगानगर आ गया । यहीं एम एस सी फिजिक्स और एम फिल तक पढ़ाई की एम डी काॅलेज में और बी एड कर कभी अध्यापिका तो कभी प्राध्यापिका भी लगीं । -साहित्य के प्रति लगाव कब से और कैसे ?-मैं दसवीं में पढ़ रही थी कि राष्ट्रीय सहारा के रविवारीय में एक काॅलम आता था-अधूरी कहानी पूरी करो । एक सप्ताह मैंने वह अधूरी कहानी पूरी करके भेज दी और पंद्रह दिन बाद मेरी कहानी न केवल प्रथम आई बल्कि अढ़ाई सौ रुपये का चैक भी मिला । हालांकि साइंस की छात्रा थी फिर भी साहित्य के प्रति लगाव बन गया । यह सन् 1996 की बात रही होगी। -शादी किससे ?-डेंटिस्ट हैं सुभाष । दो बेटियां हैं । -वे कुछ नहीं कहते ?-मज़ेदार बात कि वे अपने क्लिनिक चले जाते हैं और उनके लौटने तक मैं अपने वीडियो बना चुकी होती हूं पर कहते कुछ नहीं। -कैसे मिले आप लोग?-हमारे पापा लोग परिचित थे । वे लड़की ढूंढ रहे थे और बात में बात बन गयी। -कहां कहां पढ़ाया?-स्कूल , काॅलेज और यहां तक कि इंजीनियरिंग काॅलेज में भी । जोधपुर में थे हम पति पत्नी एक ही संस्थान में । फिर सन् 2014 में पापा के निधन के बाद श्रीगंगानगर लौट आए हम लोग । अब ये अपना क्लिनिक चलाते हैं और मैं अपनी क्रिएपिविटी की भूख में गुम पन्नों की दास्तान चलाती हूं । सन् 2919 में फिर प्रकाशन शुरू हुआ-राजस्थान पत्रिका में कहानियां आईं तो लोगों ने पूछा कि मुझे कोई जानता है वहां ? मैं हैरान कि साहित्य में जान पहचान का क्या काम ? गुम पन्नों की दास्तान कैसे शुरू किया ?-अच्छी रचना पढ़ने के बाद मन करता था कि दूसरों तक पहुंचाऊं । बस । इसी के चलते पहला वीडियो बनाने शुरू किये और उनकी सफलता के बाद गुम पन्नों की दास्तान ही शुरू कर दी । -आपकी पसंद के रचनाकार ?-ममता कालिया , गौतम राजऋषि , विजय श्री तन्वीर और आप हैरान होंगे कि आप भी । आपकी कहानियां बहुत रोचक होती हैं । मुलाकात के बाद से आपकी हर किताब पढ़ी । -सृजन सेवा संस्थान से जुड़ी हो तो इन संस्थाओं का क्या योगदान मानती हो ?-डाॅ कृष्ण कुमार आशु साहित्य को समर्पित व्यक्तित्व हैं और कोई व्यावसायिक सोच नहीं । पत्रिका भी निकालते हैं अपने सीमित साधनों से । ऐसी संस्थाओं के माध्यम से ही अच्छा साहित्य फैलता है और लोगों को जोड़ता है । लक्ष्य क्या ?-अपना चैनल चलाना और जो अच्छा साहित्य मिले उसे आगे फैलाना ताकि यह सिलसिला चलता रहे।हमारी शुभकामनाएं ऋतु सिंह को । आप इस नम्बर पर अपनी प्रतिक्रया दे सकते हैं : 7689018399 Post navigation चेहरे पर मुस्कान और जीवन का खेल जारी अपने काम को निष्पक्षता से अंजाम देती रहूं , बस इतना सा ख्वाब है : सोनल दहिया