भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम में कोरोना से आपातकाल जैसी स्थितियां बनी हुई हैं। लगभग हर रोज किसी न किसी अपने के विदा होने के समाचार अधिकांश लोगों को मिल रहे हैं। कारण कोरोनाकाल में सरकार और प्रशासन की नाकामी। विधायक क्षेत्र की जनता चुनती है और इसलिए चुनती है ताकि वह स्वयं ही उनके कष्टों की आवाज सुन प्रशासन और शासन तक पहुंचाएगा। इस त्रासदी के समय में जनता का सोचना है कि विधायक को प्रशासन के ऊपर नियंत्रण कर स्थितियां इतनी बिगडऩे नहीं देनी चाहिए थीं परंतु यहां तो उलट हो रहा है। विपदा के समय विधायक  ने गत वर्ष भी जनता से मिलना छोड़ दिया था और अभी भी।

अब तो जनता ही नहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता भी सोशल मीडिया पर विधायक की आलोचना करने लगे हैं। कुछ पुराने लोगों का कहना है कि इनके पिता के साथ तो कभी ऐसा हुआ ही नहीं कि उन्होंने फोन न उठाया हो और जो मिलने चला गया, उससे मिलने से इंकार किया हो, चाहे प्रात: चले जाओ, चाहे रात्रि, वह हर समय जनता के लिए उपलब्ध रहते थे। परंतु यह उनके उलट पता ही नहीं लगता कि कहां रहते हैं। 

अभी जब त्रासदी के समय में इन्होंने बसों का उद्घाटन किया और प्रसन्न मुद्रा में मीडिया में अपनी फोटो छपवाई तो जनता को ऐसा लगा कि जैसे जले पर नमक छिडक़ रहे हों। यह इन्हें भी पता लगा और डैमेज कंट्रोल करने के लिए आनन-फानन में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को चिट्ठी लिख दी। हरियाणा के गृहमंत्री से मिलने उनके निवास पर चले गए। जिस दिन वह उनके निवास पर मिलने गए थे, उस दिन यहां गुरुग्राम में ऑक्सीजन की कमी से लोग मर रहे थे। जनता में आवाज है कि इस साइबर युग में यदि कोई बात गृहमंत्री से करनी भी थी तो फोन से या वीडियो कॉल से कर सकते थे लेकिन वह तो परेशानी के समय जनता को जवाब न देना पड़े, इसलिए क्षेत्र छोडक़र ही चले गए।

लोगों का कहना है कि विधायक का काम ऐसे समय में अधिकारियों पर कड़ाई कर उनसे कार्य कराने का है, जबकि वह कह रहे हैं गृहमंत्री से  कि अधिकारियों को निर्देश मानने के लिए कहें। जब अधिकारी ही उनका निर्देश नहीं मानते तो विधायक कैसा, यही प्रश्न है?

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