बीजेपी के किले में एक और दरार, पवन बेनीवाल ने कहा अलविदा, दौलतपुरिया ने थामा हाथ

उमेश जोशी

हरियाणा बीजेपी टीम का आज एक मजबूत विकेट और गिर गया। इससे पहले जनवरी से लेकर अब तक तीन दमदार विकेट गिर चुके हैं। आज चौथा विकेट था। लगातार विकेट गिर रहे हैं और टीम का कप्तान बेबस है। यदि किसान कानूनों पर पार्टी इसी तरह अड़ी रही तो टीम बीजेपी के अच्छे खिलाड़ी धीरे धीरे खिसक जाएँगे और पार्टी में बल्लेबाजी करने वाले दमदार खिलाड़ी बहुत कम रह जाएंगे। उन खिलाड़ियों के बूते टीम बीजेपी जीत का सपना नहीं देख सकती।     

बीजेपी की टिकट पर ऐलनाबाद सीट से दो बार चुनाव लड़ चुके पवन बेनीवाल ने आज सिरसा के शहीद भगत सिंह स्टेडियम में किसान पक्का मोर्चा के मंच पर बीजेपी छोड़कर किसानों को समर्थन का एलान किया। उन्होंने आज बीजेपी को तो अलविदा कह दिया लेकिन अब किस राजनीतिक दल का दामन थामेंगे, इसका खुलासा नहीं किया। वो पत्ते अभी छुपा कर रख लिए।  पवन बेनीवाल को आज जिस सम्मान के साथ किसानों ने गले लगया है, उससे लगता है कि संयुक्त किसान मोर्चा को देर सबेर अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ेगा। पवन बेनीवाल की परम्परागत सीट ऐलनाबाद है; यह वही ऐलनाबाद है जहाँ से अभय चौटाला ने किसानों से एकजुटता दिखाते हुए विधानसभा की सदस्यता से जनवरी 2021 में इस्तीफा दे दिया था और रातोंरात किसानों की आंखों का तारा बन बया था। किसानों को उपचुनाव में अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा, वे अभय का साथ दें या पवन का।

 विधानसभा से इस्तीफा देने के बाद किसानों ने अभय का जिस तरह सम्मान किया था उससे अभय को परोक्ष रूप से अभयदान दिया गया था। लेकिन, आज पवन बेनीवाल के बीजेपी छोड़ने से ऐलनाबाद में राजनीतिक पवन का रुख ही बदल गया है। किसान प्रेम की पवन अब अभय चौटाला के विपरीत बहती दिख रही है। दरअसल, पवन बेनीवाल ने आज खुद स्वीकार किया कि उसने बीजेपी की सदस्यता से इस्तीफा देने में देरी है लेकिन साथ ही यह भी कहा कि जब जागो तब सवेरा। लगता है, राजनीति की बिसात पर अपने धुर विरोधी अभय चौटाला को परास्त करने के लिए यह चाल सोचने में पवन बेनीवाल को ढाई महीने का समय लग गया। उसने एक झटके में अभय चौटाला के ब्रह्मास्त्र को निष्प्रभावी कर दिया है।   

पवन बेनीवाल को भाजपा के मजबूत चेहरों में शामिल किया जाता था। पवन बेनीवाल के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह तक ने वोट मांगे थे। उन्होंने पवन बेनीवाल के लिए रैलियाँ की थीं। हालांकि दोनों ही चुनाव में पवन बेनीवाल अपने प्रतिद्वंद्वी अभय चौटाला से हार गए थे। पवन के भाजपा छोड़ने से पार्टी को सिरसा जिला में झटका लगा है। साथ ही, यह भी सोचने की बात है कि जिसके लिए प्रधानमंत्री मंत्री और गृहमंत्री वोट माँगते हों, वो अपनी उस ताकत को क्यों छोड़ रहे हैं? दरअसल, पिछले दिनों ऐलनाबाद की राजनीति में जो समीकरण बने उनमें अभय चौटाला की स्थिति बहुत मजबूत हो गई थी और उसे हराना मुमकिन नहीं लग रहा था। शायद इसलिए, बेनीवाल ने किसानों की कृपा का बंटवारा कर दिया। इस चाल से ना केवल अपने विरोधी को कमज़ोर किया, बल्कि खुद की स्थित भी मजबूत बना ली। इस सच को कोई नहीं नकार सकता कि बीजेपी में बेनीवाल बड़े नहीं हो सकते थे। बेनीवाल को प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की अपील भी नहीं जिता पाई इसलिए उसका भविष्य एक जगह ठहर गया था। उसी ठहराव से बाहर निकलने के लिए बीजेपी छोड़ी है। 

किसान प्रेम का प्रदर्शन करते हुए फतेहाबाद के पूर्व विधायक बलवान सिंह दौलतपुरिया ने बीजेपी की दहलीज तो जनवरी में ही त्याग दी थी लेकिन किसी और के दरवाजे पर अभी नहीं गए थे। आज उन्होंने काँग्रेस का हाथ थाम लिया। दौलतपुरिया 2014 में इनेलो के विधायक थे। 2019 में इनेलो छोड़ कर बीजेपी में चले गए थे। बीजेपी ने टिकट नहीं दिया तो पार्टी छोड़ने के अवसर खोज रहे थे। भला हो किसान आंदोलन का जिसने उन सारे नेताओं को इज़्ज़त के साथ पार्टी छोड़ने का अवसर दिया है। इस सूची में तीन बार के विधायक रामपाल माजरा और,का नाम भी शामिल हैं।

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