सीएजी सात साल पहले वो एक बरस में 114 ऑडिट करता था, इस बरस 14 किये, छोटे मोटे, बड़े और ज्यादा करे भी कैसे सरकार मजबूत है।आपका पोता, आपके आनंद की किश्ते भरेगा। अशोक कुमार कौशिक द हिन्दू की खबर है कि भारत का कर्ज जीडीपी का 90 प्रतिशत हो गया है। 2014 में यह 52% था। मतलब की तब इकॉनमी 2 ट्रिलियन थी, कर्जा एक ट्रिलियन। यह 1947 से 2014 तक हुआ। अब इकॉनमी 3 ट्रिलियन है, कर्ज पौने तीन ट्रिलियन। अर्थात वत्स, जितना सत्तर साल में लिया, केवल आए साल में उससे डेढ़ गुना कर्ज ले लिया। अहो,अहो,अहो । सरकार ने कर्ज के अलावा हाड़ तोड़ टैक्स भी कमाया है। व्यापारी को कर्ज लेकर टैक्स भरने की नौबत है। अब मजबूत सरकार पाली है, तो जरा महंगी तो पड़ेगी। लेकिन क्या आपमे पूछने की हिम्मत है,कि तमाम पैसा गया कहां? उन सत्तर सालों का 52% कर्ज तो आँखों दिखता है। कल, कारखाने, बांध, सड़कें, हस्पताल, स्कूल, कॉलेज। दो चार लाख करोड़ खान्ग्रेसी खा गए, यह भी माना। पर इधर सात साल में अथाह पैसे कहाँ गए। हिसाब व्हाट्सप्प पर आ सकता है। कितने चिनूक खरीदे, रफेल खरीदे, S-400, गोली बम बारूद खरीदे। पहले सेना के पास जूते और यूनिफार्म भी नही थे। अभी ही तो खरीदा है। पर व्हाट्सप का सारा हिसाब जोड़ लें, तो भी एक-दो लाख करोड़। यहां सवाल 150 लाख करोड़ का है। कश्मीर में प्लॉट बनाने में खर्च हुए, या 370 हटाने में। ड़ंका बजाने में खर्च हुए या तीन तलाक बैन करने में? मन्दिर में लगे, या दिए जलवाने में? किसान निगल गया, या जेएनयू खा गया? मिस्ट्री यहीं है। हिस्ट्री यही हैं। औरँगजेब, विदेशी आक्रांता, हिन्दू राष्ट्र, धर्म – सँस्कृति भी यहीं है। नेहरू का एड्स और बार बाला यहीं है। इस पौने दो ट्रिलियन के झोले में गड्डमड्ड पड़ी है। इतनी मजबूत सरकार से खर्च का हिसाब, कौन माई का लाल लेगा ? सम्विधान ने सीएजी का प्रबंध किया था। सात साल पहले वो एक बरस में 114 ऑडिट करता था। इस बरस 14 किये, छोटे मोटे ऑडिट। बड़े और ज्यादा करे भी कैसे सरकार मजबूत है। क्या करेंगे? आन्दोलन? हड़ताल, धरना अजी भूल जाइए। कोर्ट जा सकते हैं क्या तो कोशिश करें। माई-बाप सरकार के सामने, हार्ले डेविडसन पर सवार लार्ड की चूं करने की हिम्मत नही। संसद में आपने गवैये, खिलाड़ी, अभिनेत्रियां और हुल्लड़बाज भेजे हैं। एक साल में कर्ज जीडीपी का 100% पार कर जाएगा। व्यापारी इसे दिवालिया होना कहते हैं। पर आप सरल भाषा मे यूं कहिये की देश पूरा बेच भी दो तो कर्ज न उतरेगा। हम दिवालिया हो चुके हैं जनाब। एक बात ठीक से जान लीजिये। सरकार कोई शाश्वत नही होती। हराकर या घसीटकर, सरकारे अंततः गद्दी से उतारकर फेंक दी जाती हैं। पर फकीरों के ट्रिलियनी झोले की गहराई से कुछ वापस नही मिलता। इस सरकार के बाद चाहे जो सत्ता आये, कर्ज अपनी जेब से नही भरेगी। हमारी आने वाली दो पुश्तें इसे भरेगी, पेट काटकर। फ्री डाटा, मुफ्त मनोरंजन, धर्म, मंदिर, प्राइड, पाकिस्तान के मजे थोड़ा और लें।आपका पोता, आपके आनंद की किश्ते भरेगा। मेहनत ज्यादा करेगा, मजूरी कम मिलेगी, टैक्स काटकर । युवाओं की जवानी, अधेड़ों का बुढापा यह सरकार खा चुकी। अंदर आप खदबदा रहे हैं, भयाक्रांत हैं। पर कर कुछ भी नही सकते। घृणा के उफान पर चढ़कर ये सरकार लोकतन्त्र से ऊंची हो चुकी। यही चाहा था आपने। आपके परिजनों की चिताओं के गिर्द बीच, उत्सव मनाती हुई सरकार है। यही तो मजबूत सरकार है। Post navigation एआईबीए यूथ विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में भारतीय मुक्केबाजों का शानदार प्रदर्शन राजधर्म , कुंभ और कोरोना ,,,