विभिन्न कंपनियों के टीके को लेकर संदेह, टीका लेने के फायदों पर बहस खड़ी हुई ।
कोरोना वैरिएंट का प्रसार उन रोगियों में लगभग आठ गुना अधिक है, जिन्होने वैक्सीन की दो डोज ली । 
राजनेता और वैज्ञानिक मिल कर लोगों को यह समझाने की कोशिश करें कि अभी चौथे चरण के क्लीनिकल परीक्षण चल रहे हैं, तीन चरणों के परीक्षणों से कुछ आंकड़े सामने आए।

भारत सारथी टीम

स्पेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ला लागुना में जीवाणु विज्ञान, प्रतिरक्षण विज्ञान और फार्माकोलॉजी के विशेषज्ञ ऑगस्तिन वेनेजुएला ने कहा, ‘इसमें कोई हैरत नहीं है कि लोग भ्रम का शिकार हैं।’ वेबसाइट रशिया टुडे से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘जब कोई स्पष्ट सूचना मौजूद नहीं है, तो संदेह पैदा होंगे। लोगों को बताया जाता है कि एक वैक्सीन ऐसी है, जो सिर्फ नौजवानों के लिए है। फिर बताया जाता है कि वह सिर्फ बुजुर्गों के लिए है। कुछ देश रोक लगा देते हैं, जबकि कुछ इस्तेमाल जारी रखते हैं, तो ऐसी स्थिति में भ्रम पैदा होंगे।’

पिछले हफ्ते यूरोप की ड्रग एजेंसी ईएमए ने एस्ट्राजेनेका के वैक्सीन और खून के थक्के जमने के बीच संबंध होने की पुष्टि कर दी थी। हालांकि तब इस एजेंसी ने कहा था कि टीका लगवाने पर होने वाला लाभ जोखिम की तुलना में बहुत ज्यादा है। इसके पहले सामने आए आंकड़ों से जाहिर हुआ था कि ये टीका लगवाने के बाद नौजवानों में ब्लड क्लॉट बनने का खतरा ज्यादा रहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जो लोग भी ये टीका लगवा रहे हैं, वे यही सोच कर ले रहे हैं संभावित फायदा जोखिम से ज्यादा है। इसके अलावा टीका लेने से बेहतर कोई और विकल्प नहीं है।

70 फीसदी लोगों को एस्ट्राजेनेका के टीके पर भरोसा नहीं

मगर विभिन्न देशों में इस टीके को लेने के लिए जो सुरक्षित उम्र तय की गई है, वह अलग-अलग है। फ्रांस में इस वैक्सीन को 55 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए मंजूरी दी गई है। जर्मनी में 60 वर्ष से ज्यादा के लोग इसे लगवा सकते है। स्पेन में इसे 60 से 69 वर्ष के लोगों के लिए मंजूरी देने पर विचार चल रहा है। भारत में 45 वर्ष से ऊपर के लोगों को टीकाकरन किया जा रहा है। शायद इन्हीं कारणों से फ्रांस में हुए एक हालिया सर्वे में 70 फीसदी से ज्यादा लोगों ने कहा कि वे ऐस्ट्राजेनेका की वैक्सीन पर भरोसा नहीं करते।

फ्रांस की सोरबॉन यूनिवर्सिटी में जीवाणु विज्ञान के प्रोफेसर विन्सेंट मारशल ने रशिया टुडे से कहा, ‘फ्रांस में टीकों को लेकर शक का भाव रखने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। लोगों में आम तौर पर टीकों को लेकर भरोसा नहीं है। एस्ट्राजेनेका के बारे प्रचारित कहानियों से भरोसा और घटा है। यह लाभ और जोखिम के बीच विवेकपूर्ण ढंग से फैसला लेने का मामला बन गया है।’ उधर स्पेन में भी ऐसे लोग बड़ी संख्या में हैं, जिन्होंने टीका लेने के लिए तय उम्र की सीमा के दायरे में आने के बावजूद अभी तक टीका नहीं लगवाया है।

वैक्सीन पर बयानबाजी, फायदे-नुकसान पर हो रही बहस

अब आशंका जताई जा रही है कि जैसा अविश्वास एस्ट्राजेनेका के टीके को लेकर फैला है, वैसा ही जॉनसन एंड जॉनसन के टीके को लेकर भी पैदा हो सकता है। उधर फाइजर कंपनी का यह बयान भी बहुचर्चित है कि कोविड-19 के कुछ नए रूपों पर मुमकिन है कि उसका टीका असरदार न हो। कंपनी ने कुछ समय पहले कहा था कि उसका टीका कम से कम छह महीनों तक प्रभावी सुरक्षा देगा। इन बयानों से भी टीका लेने के फायदों पर बहस खड़ी हुई है।

सतह को छूने से कोरोना नहीं, वैक्सीन की राह में भी रोड़े कई | 

रिसर्च में दावा ~ वैक्सीन न लगवाने वाले समूह की तुलना में वैक्सीन की दूसरी खुराक प्राप्त कर चुके लोगों में दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट की असमान रूप से उच्च दर पाई गई

अमेरिका की सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि किसी सतह (Surface) को छूने से कोरोना वायरस संक्रमण  की चपेट में आने के मामले नहीं के बराबर हैं। इसलिए लगातार सफाई  करते रहने की कोई जरूरत नहीं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि वैक्सीन न लेने वालों की तुलना में दक्षिण अफ्रीका का कोरोना वैरिएंट का प्रसार उन रोगियों में लगभग आठ गुना अधिक है, जिन्होने वैक्सीन की दो डोज ली हैं। 

कोरोना वायरस को लेकर एक और परेशान करने वाली रिपोर्ट सामने आई है। दरअसल इजरायली स्टडी से सामने आया है कि फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन कोरोना वायरस के दक्षिण अफ्रीका वैरिएंट पर अधिक प्रभावी नहीं है। इजराइल के सबसे बड़े हेल्थकेयर संगठन तेल अवीव विश्वविद्यालय और क्लैटिट के शोधकर्ताओं ने लगभग 400 लोगों की जांच की जिन्होंने वैक्सीन की कम से कम एक डोज ली है और वो कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं। इन लोगों की तुलना उनसे की गई जो संक्रमित है और उन्होंने वैक्सीन नहीं ली है।

कई देशों में लग रहा कोरोना का टीका

शोधकर्ताओं ने पाया कि वैक्सीन न लेने वालों की तुलना में दक्षिण अफ्रीका का कोरोना वैरिएंट का प्रसार उन रोगियों में लगभग आठ गुना अधिक है, जिन्होने वैक्सीन की दो डोज ली हैं। ऑनलाइन प्रकाशित किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि वैक्सीन वायरस के ऑरिजनल स्ट्रेन की तुलना में दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट पर कम प्रभावी है।

रिसर्च में कहा गया है कि वैक्सीन न लगवाने वाले समूह की तुलना में वैक्सीन की दूसरी खुराक प्राप्त कर चुके लोगों में दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट की असमान रूप से उच्च दर पाई गई है। कहा जा सकता है कि ये वैरिएंट फाइजर वैक्सीन द्वारा दी गई सुरक्षा को भेदने में कुछ हद तक कामयाब है।

इंग्लैंड की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत डॉ. मैलकम केंड्रिक का कहना है, ‘ये सारे निष्कर्ष जल्दबाजी में निकाले गए हैं। ये एक ऐसी समस्या है, जिसका हमारे पास कोई जवाब नहीं है।’ प्रोफेसर वेनेजुएला ने इस बात पर अनुसंधान की जरूरत बताई है कि क्या एस्ट्राजेनेका के वैक्सीन को किसी दूसरे टीके के साथ मिला कर लेने पर बेहतर प्रतिरक्षण क्षमता विकसित होगी। उन्होंने कहा, ‘अब जरूरत इस बात की है कि राजनेता और वैज्ञानिक मिल कर लोगों को यह समझाने की कोशिश करें कि अभी चौथे चरण के क्लीनिकल परीक्षण चल रहे हैं। तीन चरणों के परीक्षणों से कुछ आंकड़े सामने आए, जिनका संबंध सुरक्षा और शरीर की प्रतिरक्षण क्षमता पर होने वाले असर से है। लेकिन ये सारे परीक्षण बहुत जल्दबाजी में हुए।’

उन्होंने कहा कि टीका ही महामारी के खिलाफ मुख्य हथियार है, इसलिए इस पर कोई समझौता नहीं होना चाहिए। इसलिए ये जरूरी है कि लोगों को टीका लगाया जाए। वायरस से मरने वालों की संख्या टीकों के कारण हुई मौतों से बहुत ज्यादा है। इसलिए इस वक्त की पहली जरूरत कोरोना वायरस के संक्रमण और उसके नए रूप पैदा होने को रोकना है।

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