नेतृत्व की पहचान संकट काल मे ही होती है।
लोकलुभावन नामों वाली यह सारी योजनाएं, खुद ही बीमार हो गयीं है और फिलहाल क्वारन्टीन हैं।
कोविड का इलाज नहीं है पर इसके लक्षणों का तो इलाज है।
आपकी व्यवस्था बुरी है इसलिए हाहाकार है।
मरीज का शरीर जितना मज़बूत है संक्रमण उतना कम होता है।

अशोक कुमार कौशिक 

सरकार को फिलहाल विकास के सभी काम रोक  कर  लोगों को महामारी से बचाने के काम को  प्राथमिकता देनी चाहिए । विनास से यदि बच पाए तो विकास भी हो जाएगा । यदि विनाश ही होना है तो विकास किस के काम आएगा? फिलहाल  सिर्फ और सिर्फ  इस महामारी से लड़ने के लिए ही समस्त उपलब्ध साधनों का उपयोग किया जाए । अब तक मोदी ने लोगों के दुख दर्द बढ़ाने का ही काम किया है । मौका है उनके पास लोगों के दुख दर्द बटाने का । 

नाम भूल गया एक ज्योतिष ने कहा  बताते हैं कि भारत मे एक ऐसा महापुरुष आएगा,शुरू में जिन्हें लोग पसन्द नही करेंगे लेकिन बाद में वे लोगों के लिए भगवान बन जाएंगे । मौका है मोदी के पास भगवान बनने का । मोदी के पास असीम शक्तियां है,इन शक्तियों का प्रयोग यदि वे इस विकट समय मे सच्चे मन से लोगों की जान बचाने के लिए करें तो कोई कारण नही  की हम महामारी को हरा न सके । अब यह उन पर निर्भर है कि वे भगवान बन कर लोगों के दिलों में समा जाना चाहते हैं या लोगो की बद दुआए झेल कर मस्त हाथी की तरह सब कुछ तहस नहस करने में ही अपनी शान समझते रहेंगे ।

नेतृत्व की पहचान संकट काल मे ही होती है।

आयुष्मान भारत, मोदीकेयर, और  बगल में कोरोना पोजिटिव होने वाले की सूचना तुरंत देने वाले आरोग्य सेतु ऐप्प की अब चर्चा नहीं होती। न तो सरकार करती है और न ही रविशंकर प्रसाद जी। समर्थक तो शामिल बाज़ा हैं। वे खुद कोई चर्चा कहां करते हैं, जब तक कि पुतुल खेला वाली डोर न खींची जाय ! जब सब कुछ ठीक रहता है तो प्रशासन अच्छा ही दिखता है और वह सारा श्रेय ले भी लेता है। यह, प्रशासन के आत्ममुग्धता का दौर होता है। 

पर नेतृत्व चाहे वह देश का हो, प्रदेश या प्रशासन का, उसकी पहचान संकट काल मे ही होती है। अब जब यही संकट काल सामने आ कर खड़ा हो गया है तो, लोकलुभावन नामों वाली यह सारी योजनाएं, खुद ही बीमार हो गयीं है और फिलहाल क्वारन्टीन हैं।

यह योजनाएं आम जनता को दृष्टिगत रख कर लायी ही नहीं गयी थी। सरकार की एक भी योजना का उद्देश्य जनहित नहीं है, मेरा तो यही मानना है, आप को जो मानना है, मानते रहिये। आयुष्मान योजना, बीमा कंपनियों के हित को देख कर, मोदी केयर, अमेरिकी ओबामा केयर की नकल पर और आरोग्य सेतु, डेटा इकट्ठा करने वाली कम्पनियों को बैठे बिठाए डेटा उपलब्ध कराने के लिये लायी गयी थी। सरकार यही बात दे कि इन योजनाओं का कितना लाभ जनता को मिला है। 

आज सरकार के पास न तो पर्याप्त अस्पताल, बेड, दवाइया और टीके हैं, और न ही एक ईमानदार इच्छा शक्ति कि वह राष्ट्र के नाम सन्देश जारी कर यह आश्वासन भी दे सके कि हमने पिछले एक साल में 20 लाख करोड़ के कोरोना राहत पैकेज, और जबरन उगाहे गए चोरौंधा धन पीएम केयर्स फ़ंड में से देश के स्वास्थ्य ढांचे को सुधारने के लिये, इतना खर्च किया है, यह योजना थी, इतनी पूरी हो गयी है, इतनी शेष है, और अब आगे का रोडमैप यह हैं।

कोविड का इलाज नहीं है पर इसके लक्षणों का तो इलाज है।

यह कहना फ़ौरन बंद कर देना चाहिए कि कोरोना का इलाज नहीं है। यह बात ठीक है कि कोविड वायरस का इलाज नहीं है पर इसके लक्षणों का तो इलाज है। इससे होने वाली दिक्कतों का तो इलाज है। जब इलाज नहीं है तो फिर इतने मरीज कैसे ठीक हो गए? इलाज नहीं है कहना मतलब हाथ ऊंचे कर देना है। फिर जब इलाज ही नहीं है तो मरीज भर्ती ही क्यों कर रहे? उसे भगा क्यों नहीं देते!

एक मशहूर डॉक्टर को यह जुमला कहते हुए सुना कि कोरोना का इलाज नहीं है। यह कितने गैर जिम्मेदारी से कही गई बात है। बहुत से चमन आपको ऐसे जुमले कह देते होंगे और कह ही रहे है।

असल में इसका इलाज है पर लक्षणों का इलाज है मूल वायरस को मारने की कोई थ्योरी नहीं है। मूल वायरस को तो इंसान का शरीर ही समाप्त करता है और कर ही रहा है कोई यूँ ही लोग अच्छे थोड़ी न हो रहे। आपकी व्यवस्था बुरी है इसलिए हाहाकार है, सीधी बात क्यों नहीं कहते? अगर लक्षणों का इलाज है तो आप लक्षणों का ही इलाज कर दो पर आप तो उसमें भी असमर्थ है।

यह इतनी हल्की बीमारी है कि अनेक मरीज बगैर लक्षणों के इलाज के भी ठीक हो जाते हैं केवल कुछ मरीज गंभीर होकर अस्पताल पहुंचते है और सरकार उनको भी नहीं संभाल पाती। इसे हमारा दुर्भाग्य ही कहा जाए।

इलाज नहीं है कहना मरीज को आधा मार डालना है। इतना ज़रूर है कि डॉक्टर तय नहीं कर सकता कि संक्रमण कितना जाएगा क्योंकि वह मरीज के शरीर की शक्ति को थोड़ी देख पाता है। मरीज का शरीर जितना मज़बूत है संक्रमण उतना कम होता है, लंग्स में वायरस का मल्टीपल होना उतनी धीमी गति से होता है। इस बार आया वायरस तेज़ गति से मल्टीपल होता है फिर भी शरीर उससे जीत रहा है।

 इतनी बीमारी के साथ भी आदमी इसमे ठीक हो सकता है। हालांकि इसके ठीक होने के बाद भी मरीज को बहुत संभालना होता है क्योंकि वायरस तो खत्म हो जाता है पर लंग्स को तोड़फोड़ कर जाता है। मरीज का मनोबल बढ़ाया जाना चाहिए न कि इलाज नहीं कहकर उसे खत्म किया जाए।

error: Content is protected !!