भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। आज बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाई गई। हर तरफ जयंती के ही चर्चे थे। किसान कामगार भी जयंती मना रहे थे और सरकार भी जयंती भी मना रही थी।इन सबके बीच एक बात मेरे दिमाग में आई कि सरकार के जयंती मनाने में लुका-छिपी का खेल नजर आया। सरकार के मंत्री समय और वातावरण को देख जयंती के कार्यक्रम में पहुंच रहे थे। बिल्कुल शांत कहे जाने वाले दक्षिणी हरियाणा के रेवाड़ी में भी आज किसानों को गिरफ्तार करना पड़ा उप मुख्यमंत्री का कार्यक्रम करने के लिए। इसी प्रकार के समाचार कुछ भिवानी से भी मिले। दक्षिणी हरियाणा में एक बात चर्चा में रही कि राव इंद्रजीत सिंह न गुरुग्राम में दिखे और न ही रेवाड़ी में।

ये तो शांत रहने वाले क्षेत्र की बात थी। इससे पूर्व कृषि मंत्री जेपी दलाल ने भी दक्षिणी हरियाणा की कई मंडियों का दौरा किया लेकिन मजेदारी यह रही कि जहां यह धारणा बनी हुई है कि मंत्री समय से घंटे-दो घंटे बाद ही आएंगे, वहीं माननीय कृषि मंत्री हर जगह घंटे-दो घंटे पहले ही कार्यक्रम करके चलते बने। इसी को देखकर लुका-छिपी की बात याद आई।

आज उपमुख्यमंत्री का कैथल में कार्यक्रम था। वह कैथल में अपना कार्यक्रम कर नहीं पाए या करना नहीं चाहते थे, यह तो वही जानें लेकिन समय देकर न पहुंच लुका-छिपी का खेल तो खेल ही गए। 

इसी प्रकार मुख्यमंत्री को भी राई में कार्यक्रम करना था, उन्होंने ऐन मौके पर उस कार्यक्रम का स्वरूप बदला और वीडियो कांफ्रेंसिंग से कार्यक्रम संपन्न करा दिया। इसी प्रकार की सूचनाएं पहले भी अनेक बार मिलती रही हैं कि प्रदेश अध्यक्ष और मंत्रियों को किसानों के विरोध को देखते हुए चुपचाप निकलना पड़ा है तो इसे लुका-छिपी का खेल कह सकते हैं?

मैंने अपने जीवन में ऐसा पहली बार देखा है कि मंत्री किसानों से या जनता से डरकर अपना कार्यक्रम नहीं कर पा रहे और यह स्थिति दिनों-दिन बढ़ती नजर आ रही है। लोकतंत्र में कहा जाता है कि लोक मत का सर्वाधिक महत्व होता है और सरकार किसानों की बात न सुन रही है और न ही मान रही है और न ही उन्हें समझा पा रही है। यहां तो ऐसा लगता है कि हरियाणा सरकार जनता से प्राप्त मतों से बन तो गई लेकिन वह हरियाणा की जनता के प्रति जवाबदेह होने की बजाय केंद्र सरकार को जवाबदेह है। यह स्थितियां मेरे समझ से तो स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी नहीं, बाकी आप सोचिए।

वर्तमान परिस्थितयों में ऐसा दिखता है कि सरकार योजनाओं की घोषणा कर जनता को अपने पक्ष में करने के लिए प्रयासरत है। ऐसा भी मुझे याद नहीं आता कि बजट सत्र के फौरन बाद सरकार की ओर से घोषणाओं का पिटारा खुला हो। अब यह सब जनता के भले के लिए है या जनता को भ्रमित करने के लिए, यह तो सरकार ही जानती है।

आमजनता पहले सरकार की घोषणाओं पर पूर्ण विश्वास करती थी और इतनी घोषणाएं सुनकर सरकार के गीत गाने लगती थी परंतु वर्तमान परिस्थितियों में मुझे कहीं किसी वर्ग के प्रसन्न होने की सूचना नहीं प्राप्त हुई। जहां बात होती है, वहां से अधिकांश उत्तर यही मिलता है कि अरे यह सरकार तो बनी ही घोषणाओं के लिए है, पूरी कहां होती हैं। अब हम इनके बरगलाने से खुश नहीं होंगे। पता तो तभी लगेगा, जब यह धरातल पर उतरेंगी। धरातल पर उतरी तो हम सरकार को धन्यवाद भी देंगे।

ऐसी स्थिति लगभग सारी जनता में है और जनता में भाजपा पार्टी के कार्यकर्ता भी आ जाते हैं। उनकी स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। उन्हें भी कहीं कोई भरोसा नहीं है। संगठन के लोग यह कहते हैं कि जब प्रदेश अध्यक्ष बने थे, तब 15 दिन में पूरे संगठन को तैयार करने का वादा किया था। आज उनके कार्यकाल का 30 प्रतिशत समय तो शायद निकल ही गया है और इसी प्रकार वरिष्ठ भाजपाई कहते हैं कि डेढ़ वर्ष हो गया बोर्ड और निगमों के चेयरमैन नहीं बनाए गए हैं तथा न ही अभी यह पता कि कब तक बनाए जाएंगे। यह बच्चों की तरह वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को लॉलीपॉप दिखाकर भ्रमाने वाली बात है। इसी प्रकार की स्थिति मंत्री मंडल गठन की भी है।

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