उमेश जोशी

कई महीनों से घरों में बैठे हैं सत्तारूढ़ गठबंधन के सारे नेता। मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और मंत्रियों समेत बीजेपी और सहयोगी जेजेपी के नेताओं का बाहर निकलना नामुमकिन-सा हो गया है। बाहर निकले के अर्थ हैं, अपने विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं के बीच जाना और उनसे संपर्क साधना। किसान आंदोलन में बीजेपी और जेजेपी के नेताओं की भूमिका से नाराज़ किसानों और खेतिहर मजदूरों ने बीजेपी और जेजेपी के नेताओं को गांवों में ना घुसने देने का एलान कर दिया है। किसानों ने खुली चुनौती दी है कि सत्तारूढ़ गठबंधन का कोई नेता गांवों में घुस कर दिखाए। इस चुनौती को गंभीरता से ना लेते हुए मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने कई बार गांवों में जाकर प्रोग्राम करने की कोशिश की लेकिन हर बार विफल रहे। 

हाल में  मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को रोहतक में बीजेपी सांसद के घर जाने का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा।  उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को हिसार एयरपोर्ट से बाहर नहीं निकलने दिया गया। लाज बचाने के लिए बेचारे दुष्यंत चौटाला ने अपना हेलिकॉप्टर हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में उतारा और दबे पाँव चुपके से एक दो कार्यक्रम कर लौट आए। एक तरह से बीजेपी और जेजेपी के छोटे बड़े सभी नेता अघोषित लॉकडाउन झेल रहे हैं और इस लॉकडाउन की कोई मियाद नहीं है।

कोई रास्ता नहीं दिख रहा घबराए नेताओं को। तीन कृषि कानून वापस नहीं होंगे तब  तक बीजेपी और जेजेपी नेताओं की जनता के बीच वापसी नामुमकिन है। जनता से दूरियाँ नेताओं बेचैन कर रही हैं क्योंकि उनका भविष्य दाँव पर है इसलिए नेतागण जनता के बीच जाने का कोई सुरक्षित रास्ता खोजने में लगे हुए थे। आखिकार गठबंधन के सयाने नेताओं ने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का सहारा लेने की योजना बनाई है। पार्टी अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ ने कहा था कि 14 अप्रैल को बाबा साहब की जयंती पर  हर जिले में कार्यक्रम आयोजित किए जाएँगे। ये कार्यक्रम पार्टी स्तर पर होंगे, सरकारी कार्यक्रम नहीं होंगे। सरकार के कार्यक्रम सिर्फ सोनीपत के राई में और रेवाड़ी में होंगे। उन दोनों स्थानों पर पार्टी के कार्यक्रम अलग से नहीं होंगे। राई में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और रेवाड़ी में उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला मुख्य अतिथि होंगे। लेकिन अब जिला स्तर के सारे कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं; सिर्फ राई और रेवाड़ी के कार्यक्रम होंगे। जिला स्तर के कार्यक्रम अब पार्टी कार्यालय में होंगे, सार्वजनिक स्थानों पर नहीं होंगे। किसानों की रणनीति के कारण बीजेपी को मजबूरन ये कार्यक्रम रद्द करने पड़े।

बड़े स्तर पर बाबा साहब को याद करने के पीछे बीजेपी का दलित प्रेम कतई नहीं है। पार्टी के नेताओं को गांवों में सुरक्षित घुसने के लिए ढाल की ज़रूरत थी। बाबा साहब भीमराव आंबेडकर को ढाल बनाया जा रहा है। बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व जानता है कि किसान नेता बाबा साहब के प्रोग्राम का विरोध नहीं करेंगे और गठबंधन के नेता  आसानी से गांवों में घुसने के मकसद में कामयाब हो जाएंगे। इस तरह बाबा साहब का हाथ थाम कर न सिर्फ गावों में पहुँच जाएँगे बल्कि किसानों की चुनौती को ठेंगा दिखा कर उन्हें नीचा दिखा सकेंगे। इसके विपरीत यदि किसान विरोध करेंगे तो उन्हें दलित विरोधी बता कर समाज में विभाजन रेखा खींचने में कामयाब हो जाएंगे जिसका आगे चल कर राजनीतिक लाभ लेने में सुविधा होगी। 

अचानक बाबा साहब के लिए उमड़े प्रेम के पीछे की राजनीति दलित वर्ग को भी समझ आ रही है। किसानों और मज़दूरों ने बीजेपी नेताओं की नीयत पर प्रश्न चिह्न लगाते हुए कई सवाल भी उछाले हैं- पिछले सात साल में छह बार बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की जयंती आई है; हरयाणा बीजेपी ने  बाबा साहेब की जयंती कितनी बार इस तरह मनाई है। पहले कभी नहीं मनाई तो इस बार क्यों? क्यों अचानक याद आए बाबा? आज हर नेता बाबा बाबा कर रहा है। आखिर बाबा को इस कदर याद करने के पीछे क्या नीयत है नेताओं की? ज़ाहिर है, इन सवालों का जवाब कभी नहीं मिलेगा। 

 किसानों ने समझदारी का परिचय देते हुते स्पष्ट कर दिया है कि वे खुद बाबा साहब की जयंती पर आयोजित किसी कार्यक्रम का विरोध नहीं करेंगे लेकिन ऐसा भी नहीं है कि विरोध नहीं होगा। सिर्फ दलित वर्ग के लोग इन कार्यक्रमों का विरोध करेंगे और बाबा साहब की आड़ में किसान आंदोलन को कमज़ोर करने की परोक्ष राजनीति को कामयाब नहीं होने देंगे। 

किसानों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि तू डाल डाल तो मैं पात पात। किसानों ने खुद विरोध करने के बजाय दलित वर्ग को आगे कर दिया जिससे बीजेपी की रणनीति की हवा निकल गई। बीजेपी से किसान पहले ही नाराज़ हैं; इन कार्यक्रमों से दलितों का भी विरोध झेलना पड़ता और दलितों की नाराजगी का सार्वजनिक प्रदर्शन होता। पूरे प्रदेश में यह स्पष्ट संदेश जाता कि बीजेपी का साथ दलित वर्ग ने भी छोड़ दिया है; जो थोड़ा बहुत भ्रम बना हुआ था वो भी खत्म हो जाता। लिहाजा, बीजेपी ने बाबा साहब से अपना प्रेम दो स्थानों तक सीमित कर दिया है। शायद वो दो स्थान भी मजबूरी में रखने पड़े होंगे क्योंकि उन स्थानों पर मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री मुख्य अतिथि हैं। दूसरी वजह यह भी हो सकती है कि पार्टी अपने दलित प्रेम का पारा नीचे शून्य तक नहीं ले जाना चाहती होगी। 

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