सरकारी महामारी उन्हीं का शिकार करती है,जो मास्क नहीं लगाते, दस्ताने नहीं पहनते, सेनेटाइज़र नहीं खरीदते।
मास्क लगाने को लेकर कार्य पालिका के साथ न्याय पालिका भी सख्त।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कार को एक पब्लिक प्लेस माना ।
मास्क के नाम पर देश में चल रहा है पुलिसिया कहर।
विधानसभा चुनाव- चुनावी राज्यों में छुट्टी पर कोरोना। 
प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री ही कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन कर क्या संदेश दे रहे हैं?
विशेषज्ञों ने चेताया कि विधानसभा चुनाव ख़त्म होने पर कोरोना संक्रमण का नया रिकॉर्ड बन सकता है।
मृत्युदर घटाने और मरीजों की तादात घटाने के लिए ऐसा ही किया जा रहा है।  
बंद कीजिए आँकडों की बाज़ीगरी।
शिवराज जी, आप वीसी में कलेक्टर्स की इसलिए तारीफ़ कर रहे हैं कि मास्क लगाने का अभियान अच्छा चलाया, राजस्व के रुप में 68 लाख रुपए वसूल लिए।

अशोक कुमार कौशिक

 कोई बता रहा था कि मुंबई के साथ साथ दिल्ली में भी सरकारी महामारी ने रात्रिकालीन गश्त (पेट्रोलिंग) शुरू कर दी है। अब रात नौ बजे से सुबह पाँच बजे के बीच जो भी सड़कों पर भटकता नजर आएगा, उसे दबोच लेगी सरकारी महामारी।

सरकारी महामारी उन्हीं का शिकार करती है, जो मास्क नहीं लगाते, दस्ताने नहीं पहनते, सेनेटाइज़र नहीं खरीदते। क्योंकि इन्हें बनाने और बेचने वालों से सरकारी महामारी के आकाओं को करोड़ों की कमाई होती है। उसी कमाई से सरकारी महामारी के बीवी-बच्चे पलते हैं।

कल किसी वाइल्ड लाइफ विडिओग्राफर द्वारा शूट किया एक विडिओ देखा, जिसे शायद डिस्कवरी या जिओग्राफी चैनल के लिए शूट किया था। आप भी देखिए वह विडिओ, जिसमें शायद पहली बार देखने मिलेगा कि कैसे शिकार करती है सरकारी महामारी अपने शिकार का। 

विडिओ देखने के बाद आप स्वतः समझ जाएंगे कि जब सरकारी महामारी गश्त पर हो, तब सड़क पर निकलना कितना प्राणघातक हो सकता है। आप सभी से अनुरोध है कि अपने अपने क्षेत्र ने नेताओं से पता कर लें कि आपके क्षेत्र में कितने बजे से कितने बजे तक सरकारी महामारी गश्त पर रहेगी।

कोरोना के बढ़ते मामलों पर दिल्ली हाईकोर्ट काफी सख्त हो गया है । अब हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश  दिया है । कार में अकेले बैठने पर भी मास्क लगाना जरूरी होगा । दिल्ली हाईकोर्ट ने कार को एक पब्लिक प्लेस माना है। कार में अकेले होने के दौरान मास्क लगाने के खिलाफ कोर्ट में चार अर्जी दाखिल की गई थीं । हाईकोर्ट ने सभी चार याचिकाओं को खारिज कर दिया।

हाईकोर्ट में दाखिल याचिकाओं में कहा गया था कि निजी कारों में अकेले रहने के दौरान लोगों से मास्क न पहनने के लिए चालान नहीं वसूला जाना चाहिए। इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि कार भले भी किसी एक व्यक्ति की हो लेकिन वह एक सार्वजनिक जगह है। कोविड एक पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी है। लेकिन मोदी और शाह ने इसे कानून-व्यवस्था का मसला बना दिया ? देश के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा सहित अनेक जगह कानून व्यवस्था का मामला बनाकर मास्क को लेकर पुलिस की बेरहमीयों के वीडियो सामने आने लगे है।
जितनी भयानक आप इस बीमारी को बता रहे हैं उस हिसाब से तो इसकी मृत्यु दर 30-40% होनी चाहिए, लेकिन है 2% से भी कम और दूसरी बात अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर बहुत कुछ ऐसा दिखाई और सुनाई दे रहा है जिससे यह लगता है कि कोरोना के नाम पर लोग बंधक बनाए जा रहे हैं, जबकि यह उतनी खतरनाक बीमारी नहीं है। WHO  के बयानों से यह स्पष्ट होता है कि कोरोना कोई खतरनाक बीमारी नहीं, बल्कि लोगों के जेहन में खतरनाक बनाया जा रहा है। 

मध्य प्रदेश में कोरोना लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में लोगों से अपील की जा रही कि सभी लोग मास्क पहने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। इधर मध्य प्रदेश में कोरोना वायरस के तेजी से बढ़ते मामलों के बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को ही कहा था कि अगर कोई व्यक्ति मास्क नहीं लगाता है तो वह अपराध करता है। 

इंदौर की एक मार्मिक घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ। जहां खाकी पर ऐसे दाग लगे हैं जो किसी भी डिटर्जेंट से धोने से नही मिट सकते। एक आदमी बीमार पिता से मिलने जा रहा था, नाक से नीचे खिसका मास्क तो पुलिसवालों ने गिरा गिराकर पीटा।मध्य प्रदेश के इंदौर में पुलिस की बर्बरता का यह मामला सामने आया है। यहां दो सिपाहियों ने मास्क ठीक से न पहनने के लिए एक ऑटोरिक्शा ड्राइवर को बेदर्दी से पीटा। बताया गया है कि 35 साल के कृष्णा कयर ने मास्क लगाया था, लेकिन जब वह अस्पताल में अपने बीमार पिता से मिलने जा रहा था । 

उस दौरान पुलिस ने मास्क उसकी नाक से नीचे लगा देखा। इसके बाद दो सिपाही उसके पास पहुंचे और उससे पुलिस स्टेशन जाने के लिए कहा। जब कृष्णा ने थाने जाने से इनकार किया, तो पुलिसकर्मियों ने उसकी पिटाई कर दी।  इस वीडियो में दो पुलिसकर्मी एक रिक्शाचालक को बीच सड़क पर बड़ी ही बुरी तरह पीटते हुए नजर आ रहे हैं। ये वीडियों कुछ ही देर में सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो गई। वीडियो के वायरल होने के बाद पुलिस अधिकारियों ने दोनों पुलिसकर्मियों को सस्पैंड कर एसपी ऑफिस अटैच कर दिया है। अब सवाल ये उठता है कि क्या ये सजा पर्याप्त है?

विधानसभा चुनाव- चुनावी राज्यों में छुट्टी पर कोरोना 

कोरोना क्या है? कोरोना कहीं नहीं है। कोरोना ख़त्म हो चुका है। पश्चिम बंगाल में होने वाली चुनावी रैलियों में हिस्सा लेने आए बिना मास्क पहने किसी भी व्यक्ति से अगर इसकी वजह पूछें तो उसका जवाब कमोबेश इन शब्दों में ही मिलता है। राज्य के एक वरिष्ठ राजनेता तो नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं, “अभी हमारे सामने दूसरी लड़ाई है । कोरोना के साथ दो मई के बाद लड़ लेंगे। इन टिप्पणियों से पता चलता है कि कोरोना के बढ़ते ख़तरों से बंगाल में लोग कितने लापरवाह हैं । पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव अभियान के तेज़ी पकड़ते ही इसके साथ कंधे से कंधा मिला कर कोरोना के मामले भी तेज़ी से बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों ने चेताया कि विधानसभा चुनाव ख़त्म होने पर बंगाल में कोरोना संक्रमण का नया रिकॉर्ड बन सकता है। उनका कहना है कि आठ चरणों तक चलने वाली चुनाव प्रक्रिया कोरोना के लिहाज़ से भारी साबित हो सकती है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना की इस दूसरी लहर को ध्यान में रखते हुए आठ अप्रैल को कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए बैठक करेंगे। उससे पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोरोना के बढ़ते संक्रमण पर गहरी चिंता जताई है । लेकिन साथ ही चेताया है कि अब कोरोना की आड़ में मतदान स्थगित करने के किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं किया जाएगा । ममता कहती हैं, “पूरे देश में दोबारा संक्रमण बढ़ रहा है। क्या ऐसी परिस्थिति में तीन या चार चरणों में ही मतदान कराना उचित नहीं होता? लेकिन अब जब आठ चरणों में चुनाव हो ही रहा है तो इसे किसी भी हालत में रोका नहीं जा सकता। खेल जब शुरू हो ही गया है तो इसे ख़त्म भी करना होगा। प्रदेश बीजेपी के महासचिव सायंतन बसु कहते हैं, “कोरोना के बीच अगर बिहार में चुनाव हो सकते हैं तो बंगाल में क्यों नहीं? राज्य में अभी हालत इतनी ख़राब नहीं हुई है कि चुनाव रोकना पड़े । ममता धांधली नहीं कर पा रही हैं। इसलिए ऐसी टिप्पणी कर रही हैं। 

राज्य के डॉक्टरों के सामूहिक मंच ‘द ज्वॉइंट फ़ोरम ऑफ़ डॉक्टर्स-वेस्ट बंगाल’ ने निर्वाचन आयोग को पत्र भेज कर चुनाव अभियान के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल की सरेआम धज्जियां उड़ने पर गहरी चिंता जताते हुए उससे हालात पर नियंत्रण के लिए ठोस क़दम उठाने की अपील की है।बिहार चुनाव से पहले आयोग ने कोविड-19 से बचाव के लिए जो प्रोटोकॉल बनाए थे, पश्चिम बंगाल में तमाम राजनीतिक दल उनकी अनदेखी करते रहे हैं।

 डॉक्टरों के समूह ने अपने पत्र में लिखा है, “क्या आपने कभी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मास्क पहनते देखा है? अगर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री ही कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन करें तो हम क्या कर सकते हैं? माइक्रोबायोलॉजिस्ट भास्कर नारायण चौधरी कहते हैं, “लॉकडाउन नहीं होना, कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन और चुनावी रैलियों में बिना किसी सुरक्षा के बढ़ती भीड़ ही तेज़ी से बढ़ते संक्रमण की प्रमुख वजहें हैं। डॉक्टर अनिर्वाण दलुई कहते हैं, “आठ चरणों में होने वाले चुनावों की वजह से रोज़ाना किसी न किसी पार्टी की रैली या सभाएं हो रही हैं। वहां जुटने वाली भीड़ में सामाजिक दूरी का पालन संभव ही नहीं है, ज़्यादातर लोग बिना मास्क के होते हैं। ऐसे में अभी दूसरी लहर का चरम आना बाक़ी है। कोलकाता के इंस्टीट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ के एसोसिएट प्रोफेसर प्रभाष प्रसून गिरी कहते हैं, “राजनीतिक दलों को अपनी रैलियों में जुटने वाली भीड़ की तादाद कम करने के साथ ही कोविड प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित करना चाहिए था। तमाम नेताओं को बार-बार लोगों से कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने की भी अपील करनी चाहिए थी।” 

जनता को अपने हाल पर मरने को छोड़ रही सरकार, बंद कीजिए आँकडों की बाज़ीगरी

पत्रकार पुष्पेंद्र वैद्य आप बीती उन्ही की जबान से, सरकार कोविड मरीजों के आँकड़ों की बाजीगरी कर रही है। यह बात मैं दावे से इसलिए कह सकता हूँ कि मेरा परिवार ख़ुद ही इस बात का जीता जागता सबूत है। मैंने अपनी माँ को देवास के अमलतास अस्पताल में भर्ती कराया। सीआरपी रिपोर्ट में 112 मिलीग्राम लंग्स इंफेक्शन पाया गया। डॉक्टर ने कोविड लाइन पर ही ट्रीटमेंट शुरु किया। दुर्भाग्य से उन्हें नहीं बचाया जा सका। लेकिन उनके निधन के तुरंत बाद जो रिपोर्ट आती है उसमें उन्हें नेगेटिव बताया जाता है। हम चाहते तो सामान्य रुप से अंतिम संस्कार कर सकते थे लेकिन इसमें कई लोगों के संक्रमित होने का खतरा हो सकता था। लिहाजा हमने कोविड गाइड लाइन से ही उनका अंतिम संस्कार करने का फैसला किया। इस बारे में एक जिम्मेदार से बात करने पर पता चला कि मृत्युदर घटाने और मरीजों की तादात घटाने के लिए ऐसा ही किया जा रहा है।  

घर में भाभी भी संक्रमित पाई गई हैं। होम आइसोलेशन में इलाज चल रहा है। सरकार के आँकडों में यह दोनों ही केस दर्ज नहीं है। यह तो महज एक मौत और एक मरीज का आँकडा है। ऐसे न जाने कितने लोग हैं जो घर-घर बीमार पड़े हैं या उनकी मौत के बाद उन्हें नेगेटिव करार दिया जा रहा  है। इससे संक्रमण का खतरा तेजी से बढ़ रहे हैं।  

सरकार का न अस्पतालों पर कोई अंकुश है और न ही इलाज पर। न जरूरी दवाओं की कालाबाजारी पर न उनकी बेतहाशा बढ़ती दरों पर। रैमडेक या रेमडिसिवर इंजेक्शन मनमाने दाम पर बिक रहा है। उसकी कालाबाजारी हो रही है। परेशान परिजन अपनों की जान बचाने के लिए दया की भीख माँग रहे हैं या अनाप-शनाप पैसा भर रहे हैं। अस्पतालों में बेड खाली नहीं है। डॉक्टर्स के पास कोई एक समान लाइन ऑफ ट्रीटमेंट नहीं है। मरीज की बगैर तासीर और उम्र देखे उसे टोसी जैसे 40-40 हजार रुपए की कीमत वाले हैवी इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं। कई मरीजों की हालत तो इस इंजेक्शन के बाद इतनी ज्यादा बिगड़ रही है कि वे ठीक होने के बजाय सीधे स्वर्ग सिधार जाते हैं। एंबुलेंस उपलब्ध नहीं है। कोविड के नाम पर एंबुलेंस वाले सिरे से नकार रहे हैं। यह घोर अमानवीयता है।

 शिवराज जी, आप वीसी में कलेक्टर्स की इसलिए तारीफ़ कर रहे हैं कि मास्क लगाने का अभियान अच्छा चलाया। राजस्व के रुप में 68 लाख रुपए वसूल लिए। अच्छी बात है, मास्क लगाने की मुहिम जागरुकता का अच्छा तरीका है। आप भी इन दिनों मास्क लगवाने के लिए ज़मीन पर उतर रहे हैं, अच्छी बात है। लेकिन अस्पतालों में जो भयावहता, चीख-पुकार, बेबस, टूटते परिजनों और मरीजों का हाल भी तो जान लीजिए। कैसे इलाज के नाम पर लाखों रुपए की लूट मची हुई है। दवा माफिया कैसे मौत का सौदा कर रहे हैं। 

क्या सरकार इतनी कंगाल हो गई है कि जनता को कोई राहत नहीं दे पा रही। जनता को अपने हाल पर मरने को छोड़ दिया है क्या शिवराज जी। प्रधानमंत्री के सपनों की आयुष्यमान योजना भी निजी अस्पतालों में कमाई का गौरखधंधा बन चुकी है। कार्डधारियों को पकड़-पकड़ कर तलाशा जा रहा है। पूरी रकम चट की जा रही है। कोरोना के इस त्रासद वक्त में अंधेर नगरी-चौपट राजा जैसी कहावत साबित हो रही है।

आँकडों का यही तमाशा चलता रहा तो वह वक्त दूर नहीं जब लाशों का ढ़ेर लग जाएगा और फिर प्रेस को जो आँकडे परोसे जाएँगे, यकीनन उनकी बुनियाद झूठ पर ही टिकी होगी। शिवराज जी, आप अपनी बॉडी लेंग्वेज और मुख-मुद्रा से संवेदनशील मुख्यमंत्री लगते हैं। कई मोर्चों पर आपकी संवेदनशीलता दिखाई भी देते हैं। लेकिन इस बार कोविड महामारी की ताज़ा लहर में आपकी वो धार दिखाई नहीं दे रही। बीते कुछ महीनों से आप एक्शन मोड वाली भूमिका में दिखाई जरुर दे रहे हैं लेकिन उसका असर आपकी नौकरशाही में दिखाई नहीं दे रहा है।

 भले ही अफसर अपने नंबर बढा रहे हों लेकिन हकीकत कहीं अलग है। एक गोपनीय टीम लगाइये और पता कराइये दवाओं की कैसे कालाबाजारी हो रही है, अस्पतालों में क्या मारा-मारी चल रही है, डॉक्टर्स क्यों महंगे-मंहगे इंजेक्शन लगा रहे हैं, ऑक्सीजन है या नहीं, अपने कलेजे के टूकडों का इलाज कराने के नाम पर लोग कंगाल हो रहे हैं। अपने प्रदेश का हाल कलेक्टर्स से नहीं आम जनता से जानिए। हकीकत पता चल जाएगी। बाहर आईये शिवराज जी

error: Content is protected !!