अशोक कुमार कौशिक केंद्र सरकार केंद्रीय अर्धसैनिक बल (सीएपीएफ) की तर्ज पर अब आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में भी वेतन एवं पेंशन के खर्च को कम करने पर विचार कर रही है। सैन्य बलों को पुरानी पेंशन योजना से एनपीएस में शिफ्ट किया जाएगा या इसके लिए कोई नया मैकेनिज्म तैयार होगा, इस बात का उल्लेख 15वें वित्तीय आयोग की रिपोर्ट में देखने को मिलता है। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों (सीएपीएफ), जिनमें बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, एनएसजी, एसएसबी और असम राइफल जैसी फोर्स शामिल हैं, इनमें जनवरी 2004 के बाद सेवा में आने वाले कर्मियों को पुरानी पेंशन व्यवस्था से बाहर कर दिया गया था। वे सभी कर्मी अब नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) का हिस्सा हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि समग्र राजकोषीय बाधाओं को ध्यान में रखते हुए, रक्षा मंत्रालय को भी वेतन और पेंशन देयताओं को कम करने के लिए नवप्रवर्तनशील उपाय अविलंब करने होंगे।नेशनल एक्स-सर्विसमैन कोऑर्डिनेशन समिति ने भी स्वीकार किया है कि सेना का खर्च घटाने की बात केंद्र सरकार के संज्ञान में है। बता दें कि जनवरी 2004 में जब केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में पुरानी पेंशन व्यवस्था खत्म की गई थी तो उसका बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था। कॉन्फेडरेसन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वैलफेयर एसोसिएशन द्वारा आज भी पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल कराने और सेना की भांति वन रैंक वन पेंशन देने की मांग की जा रही है। एसोसिएशन के सचिव रणबीर सिंह ने इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय से लेकर वित्त मंत्रालय को कई बार ज्ञापन सौंपा है। उन्होंने मंत्रियों से मिलकर पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने का मुद्दा उठाया है।अब 15वें वित्तीय आयोग की रिपोर्ट में सेना के लिए भी कुछ ऐसी ही व्यवस्था निर्धारित करने का संकेत मिल रहा है। चूंकी सेना के बजट का अधिकांश हिस्सा तो वेतन और पेंशन में ही खर्च हो जाता है, ऐसे में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। यही वजह है कि रक्षा एवं वित्त मंत्रालय, सेना के लिए एनपीएस या उसके जैसी कोई योजना लागू करने पर विचार कर रहे हैं। वित्तीय आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, सेना के वेतन एवं पेंशन को एनपीएस में परिवर्तन की संस्तुति पर अविलंब कार्यवाही करने की बात कही गई है। आयोग ने संस्तुति की है कि रक्षा मंत्रालय, सैन्य बलों को पुरानी पेंशन योजना से वर्तमान एनपीएस में या अलग एनपीएस में परिवर्तन करने में ज्यादा समय न लगाए। रक्षा मंत्रालय रक्षा पेंशन में सुधार की विभिन्न संभावनाओं की खोज कर रहा है। इनमें पुरानी पेंशन योजना के तहत मौजूदा सेवा कार्मिकों को नई पेंशन योजना (एनपीएस) के तहत परिवर्तित करना या सैन्य बलों के लिए एक अलग एनपीएस में परिवर्तित करना शामिल है। अधिकारी श्रेणी से नीचे के कार्मिकों की सेवानिवृत्ति आयु को एक तर्कसंगत स्तर तक बढ़ाना, सेवानिवृत्त कार्मिकों को उनकी निश्चित अवधि की निरंतर सेवा के बाद, अन्य सेवाएं जैसे केंद्रीय अर्धसेनिक बल में स्थानांतरित करना और कौशल विकास पाठ्यक्रमों के माध्यम से भूतपूर्व सेनिकों का पुनर्नियोजन करना, ये सब भावी योजना का हिस्सा हो सकता है। वित्तीय आयोग ने अनुशंसा की है कि रक्षा मंत्रालय, ज्यादा समय न लेते हुए, उक्त बिंदुओं या अन्य किसी भी नवप्रवर्तन दृष्टिकोणों के साथ उपयुक्त सुधारात्मक कदम उठाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रक्षा पेंशन में वृद्धि गैर-रक्षा पेंशनों के बराबर रहे। रक्षा सेवाओं पर पूंजी परिव्यय 2011-12 से 2018-19 के दौरान प्रति वर्ष 4.7 प्रतिशत की दर से बढ़ा है।इस अवधि के दौरान, 12.2 प्रतिशत की उच्चतम वार्षिक वृद्धि 2013-14 में और (-)2.4 प्रतिशत की न्यूनतम दर 2015-16 में दर्ज की गई। जीडीपी के अनुपात के रूप में, पूंजी परिव्यय 2011-12 में 0.8 प्रतिशत से घटकर 2020-21 (बीई) में 0.5 प्रतिशत हो गया है। इसी तरह कुल रक्षा सेवा व्यय (रक्षा पेंशन सहित) के अनुपात के रूप में पूंजी परिव्यय, समान अवधि के दौरान 32.6 प्रतिशत से घटकर 24.9 प्रतिशत हो गया था। 15वें वित्त आयोग ने रक्षा व्यय पर जो अध्ययन किया है, उसके मुताबिक, राजस्व (रक्षा सेवा पेंशन को छोड़कर) और पूंजी, दोनों खातों में रक्षा सेवाओं पर होने वाला व्यय जीडीपी के अनुपात के रूप में, 2011-12 में 2 प्रतिशत से घटकर 2018-19 में 1.5 प्रतिशत पर आ गया। इसके बाद 2020-21 (बीई) में, राजस्व और पूंजी खातों पर व्यय, पुनः जीडीपी के अनुपातों के रूप में, क्रमशः 0.9 और 0.5 प्रतिशत अनुमानित किया गया। 2016-17 में रक्षा राजस्व व्यय में 13.3 प्रतिशत की और 2017-18 में 12.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इसकी मुख्य वजह तीनों रक्षा सेवाओं के कार्मिकों के लिए संशोधित वेतन मान लागू करना था। इस पर भारी खर्च हुआ था। 2018-19 के दौरान इसमें 5.1 प्रतिशत की और वृद्धि हुई। 2011-12 से 2018-19 के बीच रक्षा पूंजी परिव्यय (4.7 प्रतिशत) में वृद्धि की तुलना में रक्षा राजस्व व्यय (10 प्रतिशत) तेजी से बढ़ गया। नतीजा, कुल रक्षा सेवा व्यय (रक्षा पेंशन को छोड़कर) में रक्षा पूंजी परिव्यय के अंश में गिरावट आई, जो 2011-12 में 40 प्रतिशत से घटकर 2018-19 में 33 प्रतिशत हो गया था। नेशनल एक्स-सर्विसमैन कोआर्डिनेशन कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष वीएन मिश्रा कहते हैं, वेतन और पेंशन के मुद्दे पर सरकार ने सीडीएस को जिम्मेदारी सौंपी है। सेना का खर्च घटाने की नीति पर काम हो रहा है। हमारी मांग है कि सेनाओं के जवान 24 घंटे नौकरी करते हैं। आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के वेतन और पेंशन प्रक्रिया में बदलाव नहीं होना चाहिए। शहीद की विधवा को 10-12 हजार पेंशन मिलती है, अगर कोई अधिकारी शहीद होता है तो उसकी पत्नी को 60 हजार रुपये से ज्यादा पेंशन मिल जाती है। सेना में 97 प्रतिशत जेसीओ व ओआर रैंक ही हैं। अफसर तो तीन फीसदी हैं। अगर केंद्र सरकार सेना में पुरानी पेंशन खत्म करती है तो इसका विपरित असर पड़ेगा। दूसरी तरफ सरकार का कहना है कि यह एक नीतिगत निर्णय था।पुरानी पेंशन व्यवस्था से सरकार पर आर्थिक दबाव पड़ रहा था। पेंशन और विकास, ये दोनों खर्च आपस में तालमेल नहीं खा रहे थे।सरकार के लिए इन दोनों के बीच सामंजस्य बैठाना जरुरी था। एनपीएस को प्रशासनिक तौर पर पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण द्वारा संचालित किया जा रहा है। Post navigation यातायात इंस्पेक्टर ने विद्यार्थियों को किया ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरूक टाईगर कल्ब ने सामाजिक कार्यों के लिए छात्र संघ अध्यक्ष शुभम कौशिक को किया सम्मानित