भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। आज निकाय मंत्री अनिल विज ने विधानसभा में कहा कि वह गुरुग्राम व फरीदाबाद नगर निगमों की जांच महालेखाकार से कराएंगे। गुरुग्राम के ठेकेदारों, पार्षदों में चर्चा सुनी गई कि कब कराएंगे? वह तो इससे पूर्व भी दो बार जांच की बात कह चुके हैं।

गुरुग्राम नगर निगम के भ्रष्टाचार के चर्चे गुरुग्राम में आम हैं। आमजन से लेकर पार्षद, मंत्री, अधिकारी भी सभी इस बात को सुनते नहीं, जानते हैं लेकिन इस पर लगाम लगाने की कोई चेष्टा नहीं होती सरकार द्वारा।

बात करते हैं निगम की मेयर टीम की। तो निगम की कमेटियों में वित्त एवं संविदा कमेटी सबसे महत्वपूर्ण होती है लेकिन साढ़े तीन वर्ष गुजरने पर भी उसका गठन नहीं हुआ। मेयर टीम ही उसमें काम कर रही है। इसकी शिकायत मेयर टीम को बनाने वाले गुरुग्राम के सांसद और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह पर भी जा चुकी है लेकिन राव इंद्रजीत जिसने इस मेयर टीम को बनाया था, वह भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे। दूसरी ओर निकाय मंत्री अनिल विज हैं, वह भी निगम की मीटिंग में आए थे और उन्हें यह चर्चे न सुनाई दिए हों यह संभव नहीं। और फिर भी गृहमंत्री भी हैं, इंटेलिजेंस भी उनकी है तो ज्ञात न हो, ऐसा संभव हो नहीं सकता। इसी प्रकार मुख्यमंत्री ग्रीवेंस कमेटी के चेयरमैन हैं, गुरुग्राम अकसर आते रहते हैं, निगम पर भी उनकी नजर रहती है, मेयर के साथ भी मीटिंग में शरीख होते हैं और फिर निगमायुक्त को उनका विशेष विश्वस्त माना जाता है तो यह उन्हें न पता हो, हमें तो लगता नहीं।

यह तो एक बात है। 2020 की सर्वे मीटिंग में निकाय मंत्री स्वयं मीटिंग में शामिल हुए थे और उस मीटिंग में बताया गया था कि गत वर्ष लगभग 156 कार्य पास हुए, जिनमें से 18 संपूर्ण हुए और 19 पर कार्य चालू है। बाकी पर काम नहीं हुआ। अब क्यों वह पास किए गए, क्यों लोगों की भावनाओं से खेला गया और क्यों आरंभ नहीं हुए, यह सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए था निकाय मंत्री द्वारा। इसी प्रकार यदि निकाय मंत्री सदन की बैठकों की कार्यवाही की रिपोर्ट ही पढ़ लें तो उन्हें पता लग जाएगा कि किस प्रकार पार्षद विभिन्न मुद्दों पर शिकायत करते रहते हैं। जैसे सफाई में इकोग्रीन, अधिकारियों की लापरवाही, फोन न उठाना, अधिकारियों की रिश्वतखोरी आदि की चर्चा वहां खुलकर होती है। और तो और निगम की भूमि के एक्सचेंज के मुद्दे पर भी करोड़ों के खेल की बात कही गई लेकिन कार्यवाही तो शून्य है।

अब महालेखाकार की जांच क्या पकड़ पाएगी? कागज तो पूरे कर ही लिए जाते हैं, ग्राउंड पर देखें कि जिन कामों की पेमेंट हुई है, वे काम हुए हैं? जितने काम हुए हैं, उनकी क्वालिटी की जांच स्वतंत्र एजेंसी से कराइए, पता लगेगा। इसी प्रकार निगम में फायर एनओसी का खेल खेला जाता है। प्रॉपर्टी टैक्स के मामले में भी शिकायतें आती हैं कि हजारों की गिनती में पीजी खुले हुए हैं लेकिन निगम के पास उनका रिकॉर्ड ही नहीं है। 

इसी प्रकार हॉर्टिकल्चर विंग में भी अनेक शिकायतें रही हैं। वहां तो ठेकेदारों का झगड़ा भी हुआ था लेकिन ठेकेदारों को तो निगम से ही कमाना है। कहा जाता है कि गरीब की जोरू सबकी भाभी। अत: वह तो चुप होकर बैठ गए। ऐसे ही वर्तमान में सभी पार्षद और ठेकेदार परेशान हैं कि निगम में नए आए चीफ इंजीनियर उनकी फाइलों को अपने पास रोक लेते हैं। विज साहब भ्रष्टाचार ही मिटाना तो तह तक घुसना होगा।

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