परसैप्शन का खेल

कहते हैं कि सियासत संभावनाओं और धारणाओं का खेल है। अंग्रेजी में धारणा को परसैप्शन कहा जाता है। परसैप्शन ही ज्यादा प्रचलित शब्द है। जैसे कि उपायुक्त्त की तुलना में डीसी ज्यादा प्रचलित है। किसानों का कौन ज्यादा हमदर्द है? इस मुददे पर हरियाणा विधानसभा के बजट सत्र में बहस हो रही थी। सत्तारूढ पक्ष अपनी ढपली बजा रहा था और विपक्ष आदतन अपनी हांक रहा था।

मुख्यमंत्री मनोहरलाल,संसदीय कार्यमंत्री कवंरपाल गुर्जर समेत सरकार के कई मंत्रियों-विधायकों ने कांग्रेस के शासनकाल और भाजपा सरकार में फसलों के बढे न्यूनतम समर्थन मूल्य- फसलों की खरीद-फसल खराबी पर दिए मुआवजे के तुलनात्मक आंकड़े देकर ये साबित किया कि किसानों को ज्यादा पैसा मोदी-मनोहर सरकार में ही मिला। ये ठीक है कि भाजपा ने किसानों कल्याण के लिए कई फैसले किए हैं। योजनाएं बनाई हैं। ये भी उतना ही सही है कि किसानों के हमदर्द होने-दिखने के परसैप्शन के खेल में भाजपा कमजोर पड़ रही है। पिछड़ गई है। कहीं न कहीं विपक्ष किसानों के मन में ये बिठाने में कामयाब हो चुका है कि भाजपा सरकार किसान विरोधी है। अगर ऐसा नहीं होता तो फिर क्या वजह है कि जिस मनोहर सरकार को दूसरी पारी में सत्ता में आए करीब डेढ बरस ही हुआ हो उसके लोग अपने विधानसक्षा क्षेत्र में घुसने से कतरा रहे हों?

सरकार के लोगों को लगता है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है। उनको उकसा रहा है। ऐसी क्या वजह है कि किसान सरकार के लोगों की तो बात नहीं मान रहे और विपक्ष के लोग उनसे मनचाही करवाने में कामयाब हो जाते हैं? आए दिन प्रचुर मात्रा में ये खबरें आती रहती हैं कि फलां विधायक-मंत्री का फलां जगह पर विरोध किया गया। काले झंडे दिखाए गए। सरकार के लोगों को इस पर जरूर आत्ममंथन करना चाहिए कि ये सिललिसा आखिर कब तक चलेगा? अभी तो सरकार का लंबा कार्यकाल बचा है। सरकार में एक से बढ कर एक थिंक टैंक बताए जाते हैं। उनको इस हालात से निपटने और किसान विरोधी परसैप्शन का तोड़ निकालने की ठोस और रणनीति बनाने पर विचार करना चाहिए। इस माहौल पर कहा जा सकता है:
उसे बचाये कोई कैसे डूब जाने से
वो दिल जो बाज न आये फरेब खाने से

अर्जुन पर भारी अभय

सलाह का ये नियम है कि ये कभी बिना मांगे नहीं देनी चाहिए। पर पत्रकार का ये स्वभाव है कि फटे में टांग अड़ाए बिना चैन नहीं मिलता। ये उसका धर्म है कि सलाह कोई मांगे चाहे ना मांगे,माने चाहे ना माने,लेकिन अपने फर्ज में कदापि कोताही नहीं करे।ऐसा ही मामला है ऐलनाबाद विधानसभा के आगामी उपचुनाव का। इनैलो के एकमात्र विधायक और विपक्ष के पूर्व नेता अभय चौटाला के ऐलनाबाद से इस्तीफा देने के कारण ही ये सीट खाली हुई है। अभय चौटाला का कहना है कि उन्होंने तीन किसान कानूनों के विरोध में ही अपनी विधानसभा की सदस्यता से त्याग दिया है। उसके बाद से अभय चौटाला अपना खोया जनाधार पाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। प्रदेश भर में विचरण कर रहे हैं। मीटिंग और जनसभाएं कर रहे हैं। प्रेस कांफ्रैंस कर रहे हैं। ट्रैक्टर यात्रा कर रहे हैं। कई समूह उनको इस इस्तीफे के एवज में सम्मानित कर रहे हैं। उनको किसान रत्न की उपाधि दे रहे हैं। उनको सम्मान स्वरूप पगड़ी भेंट कर रहे हैं।

इनैलो के कुछ लोग ऐसा चाहते हैं कि ऐलनाबाद विधानसभा के आगामी उपचुनाव में अभय के सुपुत्र अुर्जन को यहां से पार्टी उम्मीदवार बनाया जाना चाहिए। उनको लगता है कि अर्जुन यहां से भारी बहुमत से चुनाव जीत जाएंगे। इस मौके को इनैलो को हरगिज नहीं चूकना चाहिए। अर्जुन इस से पहले कुरूक्षेत्र लोकसभा सीट से चुनाव लड़ कर अपनी जमानत जब्त करवा चुके हैं। खरी खरी और सही सही बात कहने का जोखिम उठाना हर किसी के बस की बात नहीं। हमारा ये आकलन है कि अगर अर्जुन को ऐलनाबाद सीट से इनैलो ने उम्मीदवार बनाया तो उनको चुनाव जीतने में कई किस्म की कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है। इनैलो की विरोधी पार्टियां ये भी मुददा बना सकती हैं कि अभय चौटाला का किसान कानूनों के विरोध से कुछ लेना देना नहीं है। उन्होंने तो किसान कानूनों की आड़ में अपने बेटे को विधानसभा में भेजने की भूमिका बनाने की खातिर ही ऐलनाबाद सीट से इस्तीफा दिया है। अगर ऐसा हुआ तो इनैलो के पास इस दुष्प्रचार की काट का इलाज ढंूढे से भी नहीं मिलेगा। तो फिर क्या होना चाहिए? होना ये चाहिए कि अभय ही फिर से ऐलनाबाद से किस्मत आजमाएं। कह दें कि ये उपचुनाव किसान कानूनों पर जनमत संग्रह हैं। सरकार कह रही है कि उन्होंने किसानों के कल्याण के खातिर ही ये जबरदस्त कानून बनाए हैं,लेकिन इनैलो का मानना है कि ये किसान के नुकसान के लिए बनाए गए कानून हैं। जनता इस उपचुनाव में फैसला कर देगी कि वो किसे सही मानती है?

अविश्वास प्रस्ताव

ये अब लगभग सर्वविदित है कि इस देश से पत्रकारिता लगभग विलुप्त होने की दिशा में तेजी से अग्रसर है। कांग्रेस के हरियाणा विधानसभा में मनोहर सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के गिरने पर शायद सत्तारूढ पक्ष भी इतना बागमबाग न हुआ जितने की पत्रकार हुए। अब पत्रकारों का ज्यादा कसूर इसलिए नहीं कि वो तो महज प्यादा मात्र हैं और उनकी डोर उनके हाथ में नहीं,बल्कि सरकार के हाथ में है। इस मुददे पर रिपोर्टिंग करते हुए ज्यादातर पत्रकारों ने सरकार के हक में कलमतोड़ दी। ऐसी खबरें और हैडिंग छपे-दिखे कि मुख्यमंत्री को मीडिया से ही अपनी कई खूबियों की जानकारी मिली होगी कि उनमें ये सब गुण भी विद्यमान-विराजमान हैं। अगर ये अविश्वास प्रस्ताव ना आता तो संभवत: मुख्यमंत्री को अपनी इन छुपी हुई अदभुत खूबियों के बारे में जानकारी न हो पाती। ये पहले से ही सार्वजनिक था कि विपक्ष के पास सरकार गिराने लायक विधायक नहीं है। विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुडडा ने भी अपने संबोधन में सदन में दो टूक कह दिया था कि सरकार को गिराने लायक संख्या बल उनके पास नहीं है। ऐसे में इस अविश्वास प्रस्ताव से विपक्ष को हासिल क्या हुआ? इसकी हर कोई मनचाही व्याख्या करने को स्वतंत्र हैं। कईयों को लगता है कि अविश्वास प्रस्ताव गिरने से सरकार का आत्मविश्वास बढा है तो कईयों को लगता है कि इस से सरकार के लोग खास तौर पर जजपा के प्रति जनता में और ज्यादा नाराजगी का संचार हुआ है।

रणदीप पर मेहरबान मौसम

कांग्रेस के सीनियर नेता रणदीप सुरजेवाला के बेटे अर्जुन के जीरकपुर में आयोजित विवाह समारोह में ईश्वर उन पर काफी मेहरबान रहा। मौसम विभाग के इस दिन भारी भरकम बारिश की भविष्यवाणी कर रक्खी थी,बावजूद ईश्वर ने भविष्यवाणी करने वालों की इज्जत नहीं रक्खी। बारिश का मौसम जरूर बना-बादल भी घुमड़ घुमड़ कर आए,मामूली सी बंूदाबादी भी हुई,लेकिन इन सबका योगदान मौसम को खुशग्वार बनाने पर ही रहा।

इस समारोह में मुख्यमंत्री मनोहरलाल,विपक्ष के नेता भूपेंद्र हुडडा,विपक्ष के पूर्व नेता अभय चौटाला,कांग्रेस अध्यक्ष सैलजा,पूर्व अध्यक्ष अशोक तवंर,भाजपा अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़,पूर्व अध्यक्ष रामबिलास शर्मा,पूर्व मंत्री कैप्टन अभिमन्यु,पंजाब के कई मंत्री,अकाली दल के नेता विक्रमजीत मजीठिया, पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के कई जज,सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट के कई सीनियर वकील, पत्रकार,कई रिटायर्ड आईएएस अफसर समेत हरियाणा-चंडीगढ़ की तमाम अफसरशाही ने शिरकत की। रणदीप सुरजेवाला की दिल खोल कर की गई शानदार मेहमानवाजी का मेहमानों ने खूब लुत्फ लिया।

मेहमानों की आवागमन इतनी थी कि पंडाल में लगाए गए स्टेज को कड़े इम्तिहान से गुजरना पड़ा। ईश्वर की कृपा रही कि इतने लोगों का बोझ-धक्कम पेल लेने-सहने के बावजूद स्टेज अपने स्थान पर यथावत बना रहा। अपने स्थान से टस से मस नहीं हुआ। इस भारी भरकम भीड़ की एक बड़ी वजह ये रही कि बहुत से मेहमान अपने साथ कई कई लोगों को एक्सट्रा प्लेयर के तौर पर समारोह में लाए हुए थे। वन टू का फोर खेल रहे थे। इसके साइड इफैक्ट ये रहे कि समारोह स्थल के दूर तक गाड़ियों का जाम लग गया और कई बड़े लोगों को लंबा रास्ता पैदल चल कर आना पड़ा।

बधाई संदेश

एक मित्र के यहां विवाह समारोह में हाल ही में मंसूरी जाना हुआ। हिमाचल प्रदेश से उत्तराखंड में घुसते ही बहोत से स्थानों में नवनियुक्त्त मुख्यमंत्री तीर्थ सिंह रावत की फोटो वाले बधाई-शुभकामनाओं वाले बड़े बड़े होर्डिग-बैनर लगे हुए थे। जो लोग पुराने सीएम त्रिवेंद्र रावत के समर्थन में होर्डिंग लगवा रहे थे वही अब नए सीएम के स्वागत में दिन रात एक किए हुए हैं। अब ये लोग ये बताने से भी कतराएंगे कि कभी उन्होंने पुराने सीएम के भी होर्डिंग लगवाए थे। इस हालात से इंसान काफी कुछ सीख सकता है। एक तो यही कि कुछ भी स्थाई नहीं है। ना सत्ता, ना रूतबा, ना जलवा। जहां तक हो सके अहंकार ना करें। घमंड ना करें। सब नश्वर है। आज नहीं तो कल सब ने मिट्टी में मिल जाना है। मिट्टी हो जाना है। त्रासदी यही है कि इस सच से वाकिफ होने के बावजूद इंसान मानता कहां है? इस हालात पर कहा जा सकता है:
जब मिलो किसी से तो जरा दूर का रिश्ता रखना
बहुत तड़पाते हैं अक्सर सीने से लगाने वाले

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