·         सभापति ने सांसद दीपेंद्र हुड्डा की इस मांग को किया खारिज. ·         अब तक लगभग 300 किसान अपने प्राणों की आहुति दे चुके, हम कब तक मूक दर्शक बने रहेंगे? ·         सांसद दीपेंद्र ने कहा शोक प्रस्ताव में शहीद किसानों के नाम शामिल करने, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने व किसान परिवारों के प्रति संवेदना के दो शब्द कहने की मांग न मानने से देश के करोड़ों किसानों के दिलों को ठेस पहुंची. ·         अगर सरकार शहीद किसानों के नाम शोक प्रस्ताव में शामिल नहीं करती तो उनके परिजनों के प्रति कम से कम संवेदना के दो शब्द तो कहे

चंडीगढ़, 8 मार्च। आज राज्य सभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने सदन में 3 पूर्व सांसदों के लिये शोक संदेश पढ़ने के तुरंत बाद दोबारा से मांग उठायी कि किसान आंदोलन में अपनी जान की कुर्बानी देने वाले किसानों के नाम भी शोक प्रस्ताव में शामिल किये जाएं और ‘सभी शहीद किसानों के परिवारों के प्रति संवेदना के दो शब्द कह उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाए।’ उनकी इस मांग को सभापति ने खारिज कर दिया। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि अगर सरकार शहीद किसानों के नाम शोक प्रस्ताव में शामिल नहीं करती तो उनके परिजनों के प्रति कम से कम संवेदना के दो शब्द तो कहे। सरकार की तरफ से कोई मंत्री ही शोक प्रकट करे। लेकिन, सरकार ने इस बात को भी स्वीकार नहीं किया। 

उन्होंने कहा कि अब वक्त है कि देश चर्चा के लिये सही मुद्दों का चुनाव करे। अब तक लगभग 300 किसान अपने प्राणों की आहुति दे चुके, हम कब तक मूक दर्शक बने रहेंगे? सरकार के लिये आंदोलन में जान गंवा चुके किसान और उनका परिवार ‘महत्वपूर्ण विषय’ नहीं होंगे, पर उनके लिये हैं। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि वे किसान के बेटे हैं और उन्होंने बहुत करीब से अपने भाइयों का संघर्ष देखा है, उनका दर्द महसूस किया है। वो हर एक शहीद परिवार से मिलने और उनकी हर संभव मदद करने के लिए कटिबद्ध हैं। दीपेन्द्र हुड्डा ने आगे कहा कि देश ने आखिरी कौन सा ऐसा आंदोलन देखा था, जहां 300 किसानों की शहादत पर सन्नाटा था? मीडिया चुप थी और सरकार चुनावों में व्यस्त थी? याद रहे इतिहास इन क्षणों को कभी नहीं भूलेगा, उन चेहरों को कभी नहीं भूलेगा जो अन्नदाताओं की मृत्यु पर संवेदना तक व्यक्त नहीं कर सके।

पिछले तीन महीने से ज्यादा समय से आंदोलनरत किसानों के प्रति सरकार के इस रवैये से आहत दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि उन्होंने बजट सत्र के पहले चरण में भी किसान आंदोलन में जान की कुर्बानी देने वाले 194 किसानों के नाम राष्ट्रपति अभिभाषण में शामिल करने की मांग उठायी थी और किसान आंदोलन में शहीद सभी किसानों का पूर्ण विवरण सदन के पटल पर रखा था। उस समय भी सत्ता पक्ष ने ध्वनिमत से इन्हें नकार दिया था और आज जब एक बार फिर राज्य सभा के शोक प्रस्ताव में किसानों के नाम शामिल करने और शोक जताने की मांग की तो उनकी मांग को पुनः खारिज कर दिया गया, इससे देश के करोड़ों किसानों के दिलों को ठेस पहुंची है।

दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि यह सरकार देश के किसानों के साथ ऐसा बेरुखा व्यवहार कर रही है जैसे कि वो किसी दूसरे देश के नागरिक हों। उन्होंने सवाल किया कि क्या भाजपा सरकार के पास किसान आंदोलन में शहीद हुए किसानों और उनके परिवारों के लिये सहानुभूति के दो शब्द भी नहीं हैं? किसानों की शहादत और उनके परिवारों के आंसुओं की खिल्ली उड़ाने वाली इस सरकार का बेरहम चेहरा आज फिर पूरे देश ने देख लिया है। अन्नदाता अत्याचार, अपमान सहकर भी बारिश, ओले, सर्दी-गर्मी झेलते हुए दिल्ली के चारों तरफ और प्रदेश में जगह-जगह शांति के साथ धरने पर बैठे हैं। ऐसा ज़ुल्म, किसानों के प्रति ऐसी हिकारत तो अंग्रेज़ी हुकूमत में भी नहीं देखी गयी थी। देश की जनता भाजपा सरकार को कभी माफ नहीं करेगी और आने वाले समय में उसे नकारने का काम करेगी।

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