अपनी अपनी फसल

किसान आंदोलन के नाम पर देश में आए दिन पीड़ादायक-हृदय विदारक दृश्य उभर रहे हैं। किसान अपनी खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चला रहे हैं। पकी पकाई फसल तबाह कर रहे हैं। एक तरफ युवाओं को नौकरी का भयंकर संकट है-बेरोजगारी चरम पर है तो दूसरी तरफ युवा अपनी लगाई लगाई नौकरी को लात मार रहे हैं। नौकरी छोड़ कर किसान आंदोलन के हक में अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे लोग इस ज्वलनशील मुददे पर आगे कदम बढाएं। आखिर ये आग भी तो उन्हीं की लगाई हुई है सो उन्हीं कोे इसे बुझाना होगा। हर रोज-हर घंटे-हर पल उनको युवाओं को ये समझाना ही होगा कि अपनी फसल को बर्बाद करने से किसानों को किसी किस्म फायदा नहीं होने वाला। पहले से कर्ज के दलदल में फंसे किसान की हालत फसल को बर्बाद करने से और दयनीय हो जाएगी। ये भी कहना होगा कि युवा किसान आंदोलन की खातिर अपनी नौकरी को न त्यागे। भावुक होकर ऐसा कोई कदम न उठाए जिस से उनको बाद में पछताना पड़े।

जिस किसान नेता ने कहा था कि किसानों को अपनी एक फसल कुर्बान करने के लिए तैयार रहना चाहिए, उनको आगे आ कर किसानों से माफी मांगनी चाहिए। क्योंकि इनकी इस अपील के बाद ही देश में कई स्थानों पर लगातार ऐसा हो रहा है जब किसानों ने अपनी फसल को बर्बाद कर दिया। लहलहाती फसल पर ट्रैक्टर चला कर इसे जमीदोंज कर दिया। अगर मुमकिन हो तो किसान नेताओं को अक्ल से काम लेना चाहिए।

गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड के नाम पर हुई घटनाओं से किसान आंदोलन को बदनाम करने का प्रचुर मात्रा में कार्यक्रम हुआ। अब इन किसान नेता ने ये बयान दे दिया है कि 40 लाख किसान दिल्ली पहुंच कर संसद का घेराव करेंगे। उनके इस तरह के बयानों से किसी को कुछ फायदा नहीं होने वाला। उनको ये समझना चाहिए कि अगर संसद घेराव के नाम पर बड़ी संख्या में लोग दिल्ली पहुंच गए तो उनको संभालना किसान नेतृत्व के बस का सौदा नहीं है। इसमें असमाजिक तत्व घुस सकते हैं। इनके बेकाबू होने की आंशका से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसा होने पर सरकार और सरकार की गोद में बैठे मीडिया को फिर से किसान आंदोलन के चीर हरण का मौका मिल जाएगा।

अगर किसान ये सोचते हैं कि वो अपनी फसल को तबाह कर के इस हकूमत को अपनी मांगे मनवाने के लिए विवश कर सकते हैं तो वो गलतफहमी में है। इस आंदोलन में 200 से ज्यादा किसान अपनी जान कुर्बान कर चुके हैं और सरकार के रहनुमाओं ने इस पर एक शब्द तक नहीं बोला है। ये सरकार इस मुददे पर कितनी संवेदनशील है, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। ये जो किसान आंदोलन के अगुवा बने बैठे हैं उनकी हर बात को किसानों को आंख मंूद कर मानने की हरगिज हरगिज जरूरत नहीं है। खासतौर पर किसानों को फसल कुर्बान करने के लिए तैयार रहने, जैसे आत्मघाती बयान देने वालों से तो जरूर सावधान, सजग और चौकस रहने की जरूरत है। किसान अपनी फसल बर्बाद क्यों करें? इस से उनको हासिल क्या होगा? खाप के चौधरियों-किसान नेताओं और सियासी नेताओं को समझाने के लिए आगे आना होगा। किसानों को समझना पड़ेगा कि जंग में जीतने के लिए खुद का जीवित रहना अत्यंत जरूरी है। खुद को मरने-मारने-तबाह करने से किसान का भला नहीं होने वाला। इस हालात पर यही कहा जा सकता है:

युद्ध समाप्त हो जाएगा नेतागण हाथ मिलाएंगे
बूढी मां इंतजार करती रहेगी अपने शहीद सपूत का
वो पत्नी प्रतीक्षा करेगी अपने प्रियतम पति का
और वो बच्चे राह देखेंगे अपने महानायक पिता की
मुझे नहीं मालूम मेरी मातृभूमि का किसने सौदा किया
लेकिन मुझे मालूम है कि कीमत किसने चुकाई है

गृह मंत्री अनिल विज

अपने हरमन प्यारे खूंखार गृह मंत्री अनिल विज कोरोना से जंग जीतने के बाद धीरे धीरे पुराने रंग में आ रहे हैं। हाल फिलहाल उनके निशाने पर डीजीपी मनोज यादव हैं। विज कह रहे हैं कि डीजीपी मनोज यादव दो बरस के लिए तैनात किया गया था। उनको दो बरस हो गए हैं, लिहाजा अब नए डीजीपी की तैनाती की जाए। मुख्यमंत्री मनोहरलाल को विज ने अपनी इस नेक राय से अवगत करवा दिया है। अब ये तो विज की इच्छा हुई। अभी ये नहीं पता कि इस मामले पर सीएम की इच्छा क्या है? अगर सीएम की इच्छा मनोज यादव को डीजीपी पद से हटाने की नहीं हुई फिर क्या होगा? संभावना यही है कि फिर मनोज यादव पहले की तरह डीजीपी बने रहेंगे। अगर वाकई में ऐसा हो गया तो विज को इस मुददे पर मीडियाबाजी करके क्या हासिल हुआ?

इस से पहले विज ये भी कह चुके थे कि अगर सीआईडी का जिम्मा गृहमंत्री के पास नहीं रहा तो वो मंत्री पद से इस्तीफा देने से गुरेज नहीं करेंगे। सीआईडी पहले की तरह ही मुख्यमंत्री के पास साक्षात तौर पर पूरे दमखम के साथ उपस्थित है। इस मुददे पर विज की मुराद पूरी नहीं हो सकी। हालांकि ये अच्छी बात है कि उनको अपना कहा याद नहीं और उन्होंने जनहित की खातिर मंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया है।

अपने पिछले कार्यकाल में मंत्री बनने के बाद चंडीगढ़ सचिवालय स्थित पानी की टंकियों पर चढ कर उसका मुआयना करने-उसकी फोटोबाजी के बाद उन्होंने ये सनसनीखेज जानकारी दी थी कि पानी की टंकियां साफ नहीं है। गंदे पानी की सप्लाई से लोगों की सेहत बिगड़ने का अंदेशा है। इस मनभावन कार्यक्रम को किए विज को कई बरस हो गए हैं। एक दफा वो पूर्ण तौर पर स्वस्थ हो जाएं तो हरियाणा की जनता उनसे उम्मीद लगाए बैठी है कि वो पानी की टंकियों की जांच करने के अपने प्रिय अभियान को नए सिरे से गति प्रदान करेंगे। इतने बरस से पता नहीं उन बेचारी टंकियों को किसी ने जांचा है या नहीं?अपनी संभाल न होने से निरीह सी-लाचार सी हो गई होंगी ये। विज है तो मुमकिन है। आशा ही नहीं,हम सबको पूर्ण विश्वास है कि विज इस तरफ फिर से गौर करने की जहमत उठाएंगे। विज के तीखे तेवरों पर यही कहा जा सकता है:

किसी को क्या खबर ऐ सुबह वक्त-ए- शाम क्या होगा
खुदा जाने तेरे आगाज का अंजाम क्या होगा
वही रह रह कर घबराना वही ना-कार-गर आहें
सिवाय इस के तुझ से दिल-ए-नाकाम क्या होगा
सहर फर्कत की है और गश पर गश आते हैं आशिक को
अभी से जब ये हालत हो गई है तो शाम क्या होगा

जी-23

कांग्रेस आलाकमान से असंतुष्ट जी-23 नेताओं के गुट ने फिर से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे गुलाम नबी आजाद के साथ जम्मू में मुंह दिखाई की है। इन नेताओं ने एक समय पूर्ण कालिक और सक्रिय कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति की मांग करती हुई चिटठी लिख कर तहलका मचा दिया था। इस चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता भूपेंद्र हुडडा भी शामिल हैं। अभी ये कहना मुमकिन नहीं है कि इन नेताओं के इन बगावती तेवरों का अंजाम क्या होगा? इस हालात पर कहा जा सकता है:

और क्या आखिर तुझे ऐ जिंदगानी चाहिए
आरजू कल आग की थी आज पानी चाहिए
ये कहां की रीत है जागे कोई सोए कोई
रात सब की है तो सब को नींद आनी चाहिए
इस को हंसने के लिए तो उस को रोने के लिए
वक्त की झोली से सबको इक कहानी चाहिए
क्यंू जरूरी है कि किसी के पीछे पीछे हम चलें
जब सफर अपना है तो अपनी रवानी चाहिए

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