दमन दीव दादरा नगर हवेली के प्रशासक है
– कल महाराष्ट्र के गृह मंत्री ने प्रशासक की भूमिका को लेकर जांच का वक्तव्य दिया था
– दादरा नगर हवेली के पुलिस अधीक्षक, जिलाधिकारी तथा वहां के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल के नाम का उल्लेख सुसाइड नोट में किया है।
– संसद के अपने भाषण में इस बात का जिक्र किया है कि किस तरह से पिछले डेढ़ साल से उन पर दबाव बनाया जा रहा है और परेशान किया जा रहा है।
– उन्होंने संसद में भी अपनी व्यथा को प्रकट किया लेकिन कोई सुनवाई नही हुई जबकि वह पूर्व में भाजपा की टिकट पर सांसद रह चुके हैं।
– सुनवाई होती भी कैसे ? जब प्रशासक प्रधानमंत्री के इतने विश्वस्त सहयोगी रहे हैं।
अशोक कुमार कौशिक

सांसद मोहन डेलकर की आत्महत्या को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे थे। आत्महत्या के स्थान को लेकर भी तरह-तरह की बातें की जा रही थी। आखिरकार ऐसी क्या वजह थी जो निर्दलीय सांसद को अपने क्षेत्र से बाहर आकर आत्महत्या करने पर विवश होना पड़ा। यह तर्क भी दिया जा रहा था कि उन्होंने महाराष्ट्र को राजधानी मुंबई को इसलिए चुना ताकि जांच निष्पक्ष तरीके से हो सके। अब लगता है उन्होंने मुंबई आकर आत्महत्या करने का जो निर्णय लिया वह एकदम सही था मुंबई पुलिस शीघ्र ही सारे मामले का पटाक्षेप कर देगी।
अब सांसद मोहन डेलकर की आत्महत्या का राज खुलने लगा है और शक की सुई गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेन्द्र मोदी के सबसे विश्वस्त सहयोगी रहे प्रफुल्ल पटेल की तरफ मुड़ गयी है । यह एनसीपी वाले प्रफुल्ल पटेल नही है , यह है गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री ‘प्रफुल्ल खोड़ा पटेल’ जो इस वक्त दमन दीव दादरा नगर हवेली के प्रशासक के पद पर बैठे हुए हैं
कल महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने यह बात कही है कि सांसद मोहन डेलकर की आत्महत्या के मामले में दादरा और नगर हवेली के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल की भूमिका की जांच की जाएगी। देशमुख ने कहा कि सात बार सांसद रहे डेलकर ने अपने सुसाइड नोट में कुछ मुद्दे उठाए हैं। दादरा नगर हवेली के पुलिस अधीक्षक, जिलाधिकारी आदि का नाम सुसाइड नोट में लिखा है खासतौर पर उन्होंने वहां के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल के नाम का उल्लेख किया है।
प्रफुल्ल पटेल जो फिलहाल दादरा-नगर हवेली के एडमिनिस्ट्रेटर हैं, उनका भी नाम इस सुसाइड नोट में है। कथित रूप से यह नोट 15 पेज का है। फिलहाल पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि क्या केंद्र सरकार की तरफ से प्रफुल्ल पटेल पर किसी प्रकार का दबाव था। इसके अलावा क्या प्रफुल्ल पटेल का दबाव एडमिनिस्ट्रेशन पर था?
अब सब साफ समझ मे आ रहा है कि हमारा राष्ट्रीय मीडिया मोहन डेलकर की आत्महत्या की असली वजह जनता को बताने के बजाए क्यो उस पर कुंडली मार कर बैठ गया था क्योंकि अगर जनता यह जान जाए कि प्रफुल्ल पटेल की प्रशासक के पद पर किस प्रकार से गलत नियुक्ति की गई है तो ही तस्वीर पूरी तरह से साफ हो जाती है कि इस केस में क्या छुपाया जा रहा है ।
पहले यह जान लीजिए कि प्रफुल्ल खोड़ा पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री के कितने विश्वस्त सहयोगी रहे हैं । आप को जानकर यह आश्चर्य होगा कि 2010 में जब गुजरात के गृहमंत्री अमित शाह को सीबीआई जांच के कारण इस्तीफा देना पड़ा तो उनकी जगह मोदी ने प्रफुल्ल पटेल को ही गुजरात में गृह राज्य मंत्री नियुक्त किया वे हिम्मतनगर के विधायक थे। उन्हें ठीक वही पोर्टफोलियो भी आवंटित किए गए जिन विभागों को पूर्व मंत्री अमित शाह ने संभाला था,साफ है कि वह उस वक्त मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे पसंदीदा विधायक थे।
2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के पूर्व सदस्यों को तीन संघ शासित प्रदेशों में प्रशासक के रूप में नियुक्त किया यह संवेधानिक परम्परा का साफ साफ उल्लंघन था क्योंकि अब तक यह पद आईएएस अधिकारियों को दिया जाता है
गृह मंत्रालय की वेबसाइट भी कहती है कि “दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली और लक्षद्वीप पर संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के माध्यम से प्रशासित किया जाता है। जिन्हें प्रशासक के रूप में नियुक्त किया गया है, लेकिन मोदी सरकार ऐसी परम्परा को तोड़ने के लिए कुख्यात रही है दादरा नगर हवेली के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि किसी नेता को प्रशासक बनाया गया हो।
2019 में हुए लोकसभा चुनाव में दादरा नगर हवेली के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल ने दादरा और नगर हवेली में नियुक्त आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन पर दबाव बनाने की कोशिश की । इस मसले पर चुनाव आयोग को सामने आना पड़ा, चुनाव आयोग ने प्रशासक प्रफुल्ल खोदा भाई पटेल को निर्देश दिया था कि वह दादरा और नगर हवेली कलेक्टर कन्नन गोपीनाथन को जारी किए गए नोटिस को वापस ले लें, ताकि विभिन्न “आधिकारिक कार्यों” पर उनके निर्देशों का पालन न किया जा सके ।उसी वक्त से कन्नन गोपीनाथन बीजेपी की आँखों मे काँटे की तरह गड़ गए थे , गोपीनाथन ने दादरा नगर हवेली में निष्पक्ष रूप से चुनाव करवाए इसी चुनाव में मोहन डेलकर ने बीजेपी प्रत्याशी को जीत की हैट्रिक लगाने से रोका और जीत दर्ज की । कन्नन को बाद में इस्तीफा देना पड़ा लेकिन इसके बाद से ही सांसद मोहन डेलकर भी उनके राडार पर आ गए
आदिवासी सांसद मोहन डेलकर पर लगातार दबाब बनाया गया । संसद के अपने भाषण में इस बात का जिक्र किया है कि किस तरह से पिछले डेढ़ साल से उन पर दबाव बनाया जा रहा है और परेशान किया जा रहा है।
दादरा नगर हवेली एक यूनियन टेरेटरी है जिसका यह भी इतिहास रहा है कि कोई आईएएस 3 वर्ष से अधिक प्रदेश में नहीं रहा है। किंतु प्रशासक प्रफुल्ल पटेल को प्रदेश में साढ़े 3 साल से भी अधिक हो गए थे ।
जुलाई 2020 में सांसद डेलकर ने वीडियो जारी कर संघ प्रदेश दादरा नगर हवेली एवं दमण-दीव के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल पर आरोप लगाते हुए यहां तक कह डाला कि वे प्रशासनिक मनमर्जी के खिलाफ आगामी लोकसभा सत्र में अपना इस्तीफा सौंप देंगे। प्रशासक पटेल के निर्देश पर संघ प्रशासन उन्हें एवं उनके समर्थकों को तयशुदा टारगेट बना रहा है। प्रशासन उन पर आतंकवादी जैसी कार्रवाई कर रहा है। उन्होंने संसद में भी अपनी व्यथा को प्रकट किया लेकिन कोई सुनवाई नही हुई ।
सुनवाई होती भी कैसे ? जब प्रशासक प्रधानमंत्री के इतने विश्वस्त सहयोगी रहे हैं अन्ततः डेलकर इतने विवश हो गए कि आत्महत्या करनी पड़ी। शायद अब ईश्वर की अदालत में ही उनका न्याय होगा ।
इन तमाम बातों की जांच पुलिस करेगी और उसके अनुसार दोषियों पर कार्रवाई भी की जाएगी। मुंबई में आकर आत्महत्या करने के पीछे क्या वजह थी? इन तमाम बातों से जल्द पर्दा उठेगा। अनिल देशमुख ने साफ कहा है कि सांसद को न्याय दिलाने के लिए महाराष्ट्र सरकार के पास ज्ञापन आए हैं और हम उस पर संजीदगी से काम कर रहे हैं ।
-होटल में किया था सुसाइड
दादरा और नगर हवेली के सांसद मोहन डेलकर ने दक्षिण मुंबई के एक होटल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव के केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली की लोकसभा सीट से मोहन देलकर संसद सदस्य के रूप में काम करने वाले स्वतंत्र राजनेता थे। 19 दिसंबर 1962 को सिलवासा में जन्मे देलकर का पूरा नाम मोहन संजीभाई देलकर था।
-2019 में 7वीं बार पहुंचे थे लोकसभा
मोहन डेलकर ने 2019 लोकसभा का चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ा था और बीजेपी के नथुभाई गोमनभाई पटेल को नौ हजार वोटों से शिकस्त दी थी। मोहन देलकर ने 2019 में सातवीं बार लोकसभा का रास्ता तय किया था।
-आदिवासी लोगों के लिए किया संघर्ष
मोहन डेलकर ने सिलवासा में एक ट्रेड यूनियन नेता के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने यहां अलग-अलग कल-कारखानों में काम करने वाले आदिवासी लोगों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और संघर्ष किया।
-1989 में पहली बार चुन गए लोकसभा गए मोहन डेलकर
मोहन डेलकर ने आदिवासियों के लिए 1985 में आदिवासी विकास संगठन शुरू किया। 1989 में वे दादरा और नगर हवेली निर्वाचन क्षेत्र से 9वीं लोकसभा के लिए एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुने गए।2 बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचेइसके बाद 1991 और 1996 में भी डेलकर ने दादरा और नगर हवेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, हालांकि इस बार उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में फिर से लोकसभा का रास्ता तय किया।
-1998 में भगवा झंडा लेकर तय किया लोकसभा का सफर
1998 के लोकसभा चुनाव में डेलकर ने फिर से उसी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा, हालांकि इस बार वे भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में लोकसभा के लिए चुने गए। 1999 और 2004 में चुने गए सांसद1999 और 2004 के चुनाव में भी मोहन डेलकर लोकसभा पहुंचे। हालांकि इस दौरान उन्होंने निर्दलीय और भारतीय नवशक्ति पार्टी (बीएनपी) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था।