उमेश जोशी खामोशी, निष्क्रियता और शिथिलता, इन तीनों अवस्थाओं का मिलाजुला असर हरियाणा की बीजेपी पार्टी पर साफ दिखने लगा है। हाल के दिनों में ख़ासतौर से किसानों की नाराजगी के बाद पार्टी की साख धड़ाम से नीचे गिर गई है। निकट भविष्य में कोई करिश्मा होने के आसार भी नहीं दिख रहे हैं; बल्कि हालात बिगड़ने का गणित अधिक स्पष्ट दिख रहा है। प्रदेश में पार्टी कार्यकर्ता घुटन महसूस कर रहे हैं। किसानों के मुद्दे पर सभी स्तब्ध हैं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ को पदभार संभाले सात महीने से अधिक समय हो गया है लेकिन उन्होंने अभी तक कोई ऐसा काम नहीं किया है जिससे पार्टी के निराश कार्यकर्ताओं का मनोबल उठ सके। ओम प्रकाश धनखड़ ने 19 जुलाई 2020 को जब पदभार संभाला था तब उनके हावभाव और चेहरे पर उत्साह देख कर लग रहा था कि वे कुछ अप्रत्याशित करेंगे और पार्टी की गुड़ गुड़ डोल रही नैया को संभाल लेंगे। कुशल मांझी की तरह धनखड़ को पतवार हाथ में लेकर पार्टी की नैया को अभी तक मुकम्मल दिशा दे देनी चाहिए थी लेकिन उनके कार्यकाल के सात महीने गुज़र जाने के बावजूद पार्टी अनाथ की तरह दिशाहीन और ठिठकी हुई सी लग रही है। तीन साल यानी 36 महीने के कार्यकाल में सात महीने बीत गए लेकिन अभी तक प्रदेश कार्यकारिणी का गठन नहीं कर पाए। कोरोना, बरोदा उपचुनाव और दीपावली के नाम पर कार्यकारिणी का गठन बार बार टालते रहे। अब कोई बहाना भी नहीं रहा और सच यह है कि कार्यकर्ता बहाने सुन सुन कर ऊब चुके हैं। कायदे से बरोदा उपचुनाव से पहले ही प्रदेश कार्यकारिणी का गठन हो जाना चाहिए थे लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को आशंका थी कि जिन्हें कार्यकारिणी में जगह नहीं मिलेगी वे उपचुनाव में रायता फैलाएंगे और खेल बिगाड़ेंगे। लिहाजा, बरोदा उपचुनाव तक कार्यकारिणी का गठन टाल दिया जाए। इसका अर्थ यह है कि पार्टी के आला नेताओं को कार्यकारिणी में स्थान पाने वाले नेताओं से कोई उम्मीद नहीं थी, वरना कार्यकारिणी का गठन कर उपचुनाव में उनकी सेवाएँ ली जातीं। उपचुनाव के दौरान मुख्यमंत्री की कार्यशैली से यह दिख रहा था कि पार्टी अध्यक्ष को कोई खास तवज्जो नहीं दी जा रही है। लोकतंत्र में पार्टी चुनाव लड़ती है इसलिए पार्टी अध्यक्ष की भूमिका अहम हो जाती है। लेकिन, बरोदा उपचुनाव में अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ के मुकाबले मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अधिक सक्रिय थे। पार्टी के बजाय सरकार चुनाव लड़ती दिख रही थी। पार्टी अध्यक्ष की इस उपेक्षा के मायने स्पष्ट हैं। फिलहाल, पार्टी का अध्यक्ष पद एक सजावटी पद है; उस पद के सारे अधिकार मुख्यमंत्री के पास हैं। प्रदेश कार्यकारिणी का गठन ना होने का सीधा-सा अर्थ है कि पार्टी के भीतर घमासान है। पदाधिकारियों और सदस्यों के नामों पर सहमति नहीं बन पा रही है। धनखड़ को कुछ नहीं करना है। उन्हें तो दिल्ली और चंडीगढ़ से नाम बताए जाएंगे जिनका एलान भर करना है। वो नाम अभी तक क्यों नहीं बताए जा रहे हैं या धनखड़ क्यों नहीं पूछ रहे हैं, यह बड़ा सवाल है। इस देरी के लिए ज़िम्मेदार तो धनखड़ ही माने जाएंगे। धनखड़ ने 19 अगस्त 2020 को जिला कार्यकारिणी का गठन किया था; 22 ज़िलों में से 18 ज़िलों के अध्यक्ष बदल दिए थे। फरीदाबाद और रोहतक के जिलाध्यक्षों में कोई बदलाव नहीं किया था। दो अध्यक्षों की मौत हो गई थी इसलिए नए चहरे देना लाज़िमी था। भारी फेरबदल के बावजूद कई जगह भारी असंतोष है। कहने को सब कुछ ठीकठाक दिखाया जा रहा है लेकिन ज़िला स्तर पर कार्यकारिणी के गठन के बाद कार्यकर्ताओं में नाराज़गी पनप रही है। शायद इसी असंतोष के कारण प्रदेश कार्यकारिणी के गठन के लिए धनखड़ का जोश ठंडा पड़ गया है। लेकिन धनखड़ जी कब तक बचेंगे? Post navigation दमनकारी नीति अपनाकर किसानों के आंदोलन को तोड़ना चाहती है सरकार-चौधरी संतोख सिंह जीएल शर्मा के साथ भाजपा संगठन महामंत्री, प्रदेश महामंत्री ने नूंह और पलवल जिला के कार्यालय का किया निरीक्षण