– यूपी का समाज हरियाणा पंजाब के रास्ते पर चल पड़ा है– किसान आंदोलन को खत्म कराने का ठेका लेकर मैदान में उतरे केंद्रीय मंत्री संजीव बाल्याण (खुद को जाट नेता कहते हैं) का पश्चिमी यूपी में जबरदस्त विरोध । अशोक कुमार कौशिक “सर पूरा जाट लैंड जज्बाती जाटो की धरती है यहां मिट्टी से जुड़े माई के लाल पैदा होते है। सिर्फ महाकाल के अलावा किसी से नही डरते है। कोई हमारा हक मारेगा तो हम क्या उसकी आरती उतारेंगे ” लेकिन भाई हक के लिए हिंसा करोगे क्या ? “सर नो इफ नो बट ओनली जट” हाल में ही भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने पंजाब हरियाणा और उत्तर प्रदेश कि जाटों को रिझाने के लिए सभी जाट सांसदों विधायकों और पार्टी के पदाधिकारियों के साथ बैठकर गहन मंथन किया था। यह निर्णय लिया गया था कि कि अब भाजपा जाटों के बीच जाकर किसान बिल को लेकर सारे संशय दूर करेगी। केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री संजीव बालियान कृषि बिलों को समझाने अमित शाह के फार्मूले को लागू करने भैंसवाल गांव जिला शामली पहुंचा था। आज किसानों ने उसका मनोहर लाल खट्टर (कैमला) कर दिया । किसानों ने सीधा कह दिया इस्तीफा देकर हमारे बीच आ। किसान आंदोलन को खत्म कराने का ठेका लेकर मैदान में उतरे मोदी भक्त केंद्रीय मंत्री संजीव बाल्याण (खुद को जाट नेता कहते हैं) का पश्चिमी यूपी में जबरदस्त विरोध । संजीव बाल्याण के मुंह पर ही किसानों ने उनके विरूद्ध मुर्दाबाद के नारे लगाये । खाप चौधरियों ने मिलने तक का वक्त नहीं दिया बाल्याण को । इस बेइज्जती से मंत्री जी का चेहरा उतर कर फक्क हो गया । घमंड चूर चूर होने लगा बीजेपी नेताओं का । उपरोक्त बात एक युवा जाट से हुई बातचीत पर याद आ गई ,अगर बात जाट की अस्मिता पर आ जाती है, तो जाट सब कुछ भूल जाता है। तो क्या जाट वेस्ट यूपी में वोट देते समय अनुच्छेद 370 और राम मंदिर से उपजे उग्र राष्ट्रवाद को भी भुल जायेगा? डाटा विश्लेषण में हम एक टर्म “बालपार्क” यूज करते है यह वो आँकड़ा होता है जिससे हम जैसे डाटा विश्लेषक भविष्य के परिणाम का आकलन करते है इस विश्लेषण को भी बालपार्क थीम को आधार बनाकर किया गया है। बालपार्क एस्टिमेट के अनुसार हरियाणा, वेस्ट यूपी औऱ राजस्थान में लगभग 30 प्रतिशत जाट मतदाता है जो 40 लोकसभा के परिणाम बदलने की ताकत रखते है इसमे भी 27 ऐसी सीटे है जो पूरी तरह जाट बहुल है। अगर पिछले विधानसभा चुनावों और दो लोकसभा चुनावों को वोटिंग पैटर्न, रिजल्ट्स का विश्लेषण करें और नेगेटिव स्विंग फैक्टर लगाए तो बालपार्क का एस्टिमेट चौकाने वाले परिणाम दे सकता है। 2014 औऱ 2019 के लोकसभा चुनाव मे बीजेपी को यहाँ बडी जीत मिली थी । अब असली सवाल है यह, जाट वोट कांग्रेस में शिफ्ट हो जायेगा या किसी औऱ को जाएगा ? जाट बेल्ट के मतदान के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर एक बात बिलकुल तय है कि यदि जाट ने बीजेपी की विरुद्ध टैक्टिकल वोटिंग की तो यह बीजेपी के लिए बहुत बुरे संकेत है। मैंने सबसे ज्यादा विश्लेषण इस बात पर किया की क्या यह जाट वोट किसको जा सकता है। पंजाब में हाल में हुए स्थानीय निकाय व पंचायत चुनाव के परिणाम सबके सामने है। हरियाणा चुनावो से ही जाट बीजेपी से नाराज चल रहे है,दुष्यंत चौटाला को उपमुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने कुछ हद तक डैमेज कंट्रोल की कोशिश की थी पर राकेश टिकैत के साथ हुए दुर्व्यवहार से वो बुरी तरह बिफर गया है। रही सही कसर ओम प्रकाश चौटाला के पुत्र अभय सिंह चौटाला ने विधानसभा से इस्तीफा देकर पूरी कर दी हरियाणा के जाटों को लामबंद करने निकल पड़े है। हरियाणा में जाट अब चौधरी रणजीत सिंह व उनके भतीजे अजय सिंह चौटाला के साथ उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला से बेहद खफा दिखाई दे रहे हैं। हरियाणा में तो अब लगने लगा है कि भाजपा के साथ दुष्यंत चौटाला की भी लुटिया डूब जाएगी। पर असली सवाल है क्या 370 और राममंदिर जैसे राष्ट्रीय मुद्दे के बाद भी कोई नेगेटिव स्विंग हो सकता है। अगर जाटो की आक्रमकता को बुझे तो बिलकुल यह संभव है। अगर यह संभव है तो यूपी चुनाव में कुछ इतिहासिक होने वाला है। जिसकी कल्पना भी बीजेपी के रणनीतिकारों ने नही की होगी। देवीलाल, बंसीलाल और चरणसिंह के बाद जाटो की विरासत उनके परिवारों के पास आ गई है। पर हरियाणा में हुए जाट आरक्षण आंदोलन तक सब राजनीति के हाशिए पर थे। अजित सिंह औऱ उनके पुत्र 2014 से ही आइसोलेशन में थे 2019 मे अजय और दुष्यंत चुनाव हार गए, जाटों के परिवार के सारे दिग्गज और आज के आंदोलन के नायक राकेश टिकैत भी चुनाव हार कर घर बैठे थे। ऐसे में जाट समुदाय बस एक मौके की तलाश में था। हरियाणा चुनाव में उसने बीजेपी को हराने वाले हर शक्तिशाली जाट उम्मीदवार को वोट दिया था। आप कैप्टन अभिमन्यु की हालत जान ले जो बुरी तरह हार गए थे। हरियाणा के चुनाव 370 पर नही जाट जज़्बात की नींव पर लड़े गए थे। इसलिए उनकी नाराजगी के चलते बीजेपी को सरकार बनाने लायक बहुमत नही मिला । भाजपा को हरियाणा और पंजाब के स्थानीय निकाय चुनाव में मिलते ही पार्टी शीर्ष हरकत में आ गया है, जिस आंदोलन को पंजाब के जाट सरदारों का बताया जा रहा था। अब वही भाजपा स्वीकार रही है की आंदोलन का गहरा प्रभाव हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता पर में पड़ रहा है, हालात ये है की भाजपा के क़द्दवार जाठ नेता और हरियाणा के सीएम अपने विधानसभा और संसदीय क्षेत्र तक में नही जा पा रहे है, उन्हें अपने गाँवों में घोर विरोध का सामना करना पड़ रहा है और यह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लिए गम्भीर चिंता कि विषय है। अगर आगामी यूपी के निकाय चुनाव में भाजपा को राजनीतिक नुक़सान होता है तो सरकार के पास शायद झुकने के सिवाय कोई और चारा नही बचेगा क्योंकि यूपी विधान सभा चुनाव में वह पश्चिमी उप में कोई ख़तरा मोल लेना नहीं चाहेगी। 2019 के लोकसभा चुनाव में बालाकोट की बारिश में भक्त हरियाणा,राजस्थान औऱ यूपी के जाट लैंड की हरियाली देखकर बहुत खुश थे। लेकिन जानकार हमेशा जानते थे कि इस बारिश के बाद ऐसा जलजला आएगा जो अच्छे से अच्छे नेता की राजनीतिक जमीन हिला देगा जाटों ने आने वाली राजनीति की नींव रख दी है जाटों ने साहब की खाट खड़ी कर दी है। Post navigation आंदोलनकारियों ने खेड़ा बॉर्डर पर फूंका केंद्र का पुतला शायरी प्रेम में आजाद हुए गुलाम?