भारत सारथी/ कौशिक

नारनौल । बार रूम नारनौल में बार एसोसिएशन की बैठक प्रधान अशोक यादव अधिवक्ता की अध्यक्षता में हुई। बैठक में जिला बचाओ संघर्ष समिति की आगामी रणनीति पर विचार विमर्श किया गया। बैठक में बार एसोसिएशन का जो प्रतिनिधिमंडल हाई कोर्ट में अपना प्रतिवेदन देने गए थे। उनकी रिपोर्ट पर विचार किया गया और संघर्ष समिति के द्वारा अब तक किए गए सभी कार्यों और क्रियाकलापों पर भी विचार हुआ।

विचार विमर्श के उपरांत तय पाया गया है कि संघर्ष समिति का धरना 26 फरवरी तक जारी रहेगा और संघर्ष समिति के सदस्य इसी दौरान माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश गण से मुलाकात करेंगे और अपने इन शिकायतों के निराकरण के लिए विभिन्न प्रशासनिक व कानूनी पहलुओं का अध्ययन करते हुए विचार-विमर्श करेंगे और संघर्ष समिति के द्वारा उठाए गए बिंदुओं से सभी संबंधित अधिकारीगण को अवगत कराएंगे।

इसके अतिरिक्त यह भी तय किया गया है कि संघर्ष समिति इस दौरान विभिन्न सामाजिक संगठनों को भी अपने साथ रखने के लिए रणनीति बनाएगी और उनसे सहयोग लेगी। इसके अलावा बार एसोसिएशन की आगामी बैठक 21 फरवरी को 12 में की जाएगी। जिसमें आगामी संघर्ष की रूपरेखा भी तय की जाएगी। यह भी निर्णय हुआ है कि यदि आवश्यक हुआ तो विधिक सलाह के अनुसार संघर्ष समिति बार एसोसिएशन की तरफ से प्रधान व सचिव इस मामले को लेकर माननीय पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय में अपना रिट पिटिशन भी दायर करें। यह भी निर्णय हुआ कि लगभग 800 वर्षों से जब जिला नारनौल चला आ रहा था और जिला मुख्यालय अभी तक नारनौल में ही चला आता है तो ऐसी सूरत में जिले का नाम पुनरू बदलकर नारनौल ही रखा जाए और इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने के लिए संघर्ष समिति अपनी रणनीति तय कर रही है।

बैठक के दौरान ऐतिहासिक दृष्टि से दर्शाया गया कि नारनोल जिला व जिला मुख्यालय 1226 से अब तक लगातार चला रहा है। सल्तनत काल में भी यह जिला का स्वरूप नारनोल को ही प्राप्त था। जिसे उस समय इक्ता कहा जाता था और जिला अधिकारी स्तर के अधिकारी का पद नाम मुफ्ती होता था तो नारनौल में मुफ्ती अपना कार्यालय स्थापित किया हुआ था। उसके पश्चात 13वीं शताब्दी में भी नारनौल जिला मुख्यालय रहा और मुगल साम्राज्य आने के बाद मुगल सम्राट अकबर ने प्रशासनिक दृष्टि से अपने राज्य को विभक्त किया हुआ था जिसमें हमारा यह क्षेत्र आगरा सुबह के अंतर्गत आता था और नारनौल बतौर जिला नारनौल ही कायम किया गया था। जिसके अंतर्गत 17 तहसील आती थी और लेफ्टिनेंट गवर्नर का मुख्यालय भी नारनौल में था और यह व्यवस्था मुगल सम्राट के बाद साम्राज्य के बाद ब्रिटिश गवर्नमेंट में और नवाब झज्जर के शासनकाल में और पटियाला रियासत के शासनकाल में चलती रही और अंतत देश की स्वाधीनता के बाद से लेकर अब तक नारनौल ही जिला मुख्यालय चला रहा है.

जिला महेंद्रगढ़ नारनौल नामकरण के बारे में प्रशासनिक रिकॉर्ड में कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है। जिससे साफ  जाहिर होता है कि जिला नारनौल ही है और मुख्यालय भी नारनौल में है और महल कानून का नाम बदलकर महेंद्रगढ़ किए जाने के कारण भ्रांति वश इसे जिला महेंद्रगढ़ लिखा जाता रहा है इसमें जिले का नाम नारनौल किया जाना न्याय उचित है और इसके लिए संघर्ष समिति हरियाणा सरकार से पुरजोर मांग करती है। इसके अतिरिक्त जो हरियाणा सरकार का निर्णय प्रत्येक सप्ताह के मंगलवार को जिलाधिकारी स्तर के समस्त अधिकारी महेंद्रगढ़ में अपना कार्यालय का काम करेंगे इस निर्णय को पूर्णतया मनमाना अतार्किक और एक निर्णय इस बैठक में करार दिया गया है और यह मांग रखी गई है कि सप्ताह में 1 दिन पूरे जिला स्तर के अधिकारी नारनौल अटेली नांगल चौधरी कनीना इत्यादि क्षेत्रों को छोडक़र केवल एक मात्र महेंद्रगढ़ कस्बे में अपना कार्यालय लगाएंगे तो पूरे जिले की जनता को उनके कार्यों के लिए कोई अधिकारी ही उपलब्ध नहीं होगा और पूरे जिले की जनता को बहुत अधिक परेशानी का सामना करना पड़ेगा और यदि इस उदाहरण को पूरे हरियाणा के सभी उपमंडल ओं की जनता ने अपने क्षेत्र में लागू करवाने के लिए आंदोलन शुरू कर दिए तो सरकार को बहुत भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा और पूरे हरियाणा में लाखों कर्मचारियों और अधिकारियों को प्रति सप्ताह जं.कं देने में ही करोड़ों रुपए का भुगतान करना पड़ेगा और पूरे राज्य में प्रशासनिक अव्यवस्था फैल जाएगी और सभी तरफ  से तुष्टीकरण की मांग अधिक से अधिक बढऩे लगेगी।

जिससे पूरे राज्य में अराजकता पैदा हो जाएगी इसलिए यह सरकार का निर्णय पूरी तरह एवं हरीश है जो किसी भी रूप में लागू किया जाना न्याय उचित नहीं है और बार एसोसिएशन इसे तुरंत प्रभाव से वापस लेने का अनुरोध करती है।

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