उमेश जोशी

इंसान के आहार में दालें बहुत महत्त्व रखती हैं क्योंकि इनमें प्रोटीन काफी मात्रा में है। प्रोटीन अच्छे स्वास्थ्य के लिए बेहद ज़रूरी है। हालांकि, हर कोई दाल नहीं खाता है। कई लोग दाल के स्वास्थ्य लाभों से अनजान हैं। इस स्थिति को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 2018 में दालों के लाभ के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए एक दिन समर्पित करने का निर्णय किया और वो दिन है 10 फरवरी।

 संयुक्त राष्ट्र हर साल 10 फरवरी को खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के सहयोग से  अंतरराष्ट्रीय दलहन दिवस के रूप में मनाता  है। इस वर्ष का थीम है-  “एक सतत भविष्य के लिए पौष्टिक बीज।”

दुनिया ने पहला विश्व दलहन दिवस 10 फरवरी, 2019 को मनाया था। तब से यह दिन हर साल दलहन को समर्पित किया जाता है।

यह दिन भारत के लिए अधिक  महत्त्व रखता है क्योंकि हाल की रिपोर्टों से पता चलता है कि भारत में दाल की खपत कम हो रही है।

 भारत में दालों पर घरेलू खपत व्यय पर राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (एनएसओ) ने  2017-18 में सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार की थी। उसके मुताबिक दालों और दूध की खपत का ग्राफ बहुत धीमी गति से बढ़ रहा है।   

देश में फरवरी 2020 में ‘वैश्विक दलहन कॉन्क्लेव’ का आयोजन किया गया था। इसमें यह बताया गया था कि भारत में दाल की खपत का लगभग एक ही स्तर पर बना हुआ है यानी बहुत धीमी गति से खपत बढ़ रही है।

दालों की खपत 2013-14 से 2017-18 के बीच एक करोड़ 86 लाख टन से बढ़कर दो करोड़ 25 लाख टन हो गई थी यानी पाँच साल में महज 39 लाख टन की बढ़ोतरी हुई जो बहुत कम है; औसतन सालाना आठ लाख टन से भी कम।

हालांकि, 2018-19 में दालों की खपत बढ़ने की बजाय घटी है। यह घटकर दो करोड़ 21 लाख टन रह गई। घटने का सिलसिला आगे भी बना रहा। सन् 2019-20 में  खपत और घटकर दो करोड़ सात लाख टन रह गई।

इन आंकड़ों से साबित होता है कि भारत में दालों की कुल खपत धीरे-धीरे कम हो रही है। विशेषज्ञों ने इसके कारण खोजे हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, इसकी एक बड़ी वजह दाल की कीमतों में बढ़ोतरी है। पहले दाल-रोटी को गरीब आदमी का भोजन माना जाता था। आज दाल कई घरों के लिए एक लक्जरी बन गई है। वास्तव में, चिकन और अंडे इन दिनों दालों की तुलना में अधिक सस्ते हैं। मध्यम वर्ग के लोग या यूँ कहें कम मासिक आय वाले लोग महंगाई के कारण दाल खाना छोड़ देते हैं। वे कई बार रोटी और सब्जी खाना पसंद करते हैं। वे हफ्ते में एक बार ही दाल पकाते हैं।

एक अन्य कारण, जैसा कि विशेषज्ञों ने बताया है, कई लोग दालों के पोषण गुणों  की अनदेखी कर देते हैं। दालें पोषक तत्वों से भरपूर हैं। उनमें  प्रोटीन काफी मात्रा में होता है इसलिए दालें उन क्षेत्रों में प्रोटीन का एक आदर्श स्रोत बनती हैं जहां मांस और डेयरी उत्पाद भौतिक या आर्थिक रूप से सुलभ नहीं हैं। दालों में वसा कम होती है और घुलनशील फाइबर से भरपूर होती हैं, जो कोलेस्ट्रॉल कम कर सकती हैं और ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। इन गुणों के कारण स्वास्थ्य संगठन मधुमेह और हृदय से संबंधित गैर-संचारी रोगों के प्रबंधन के लिए दालें खाने की सलाह देते हैं। दलहनों को मोटापा घटाने के लिए भी आदर्श पाया गया है।

खाद्य सुरक्षा:-

किसानों के लिए दाल कमर्शियल फसल होने के कारण बहुत महत्त्वपूर्ण फसल है। वे इसे बेच कर पैसा कमा सकते हैं और उनका उपभोग भी कर सकते हैं।। इससे किसानों को घरेलू खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता  बनाए रखने में मदद मिलती है।

पर्यावरणीय लाभ:-

दालों के नाइट्रोजन-फिक्सिंग गुण मिट्टी की उर्वरता में सुधार करते हैं, जो खेत की उत्पादकता बढ़ाता है। इंटरक्रॉपिंग और कवर फसलों के लिए दालों का उपयोग करके किसान खेत की जैव विविधता और मिट्टी की जैव विविधता को बढ़ावा दे सकते हैं। इसके साथ ही, हानिकारक कीट और बीमारियों से फसल बचा सकते हैं।  

इसके अलावा दलहन फसलें कृत्रिम रूप से मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी पूरी करती हैं जिससे सिंथेटिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है। सिंथेटिक उर्वरकों के उत्पादन के दौरान ग्रीनहाउस गैस निकलती हैं जो पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक हैं। दलहन फसलें सिंथेटिक उर्वरकों का उत्पादन घटाने में मददगार साबित हो सकती हैं।

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