भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

शुक्रवार को किसानों और सरकार की बातचीत फिर विफल हुई। सरकार का कहना है कि हम जो कर सकते थे, वह हमने कर दिया तथा किसानों का कहना है कि हमें कानून रद्द चाहिएं। साथ ही उन्होंने गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड करने की बात यथावत कायम रखी।

प्रश्न यह है कि गणतंत्र दिवस देश की अस्मिता से जुड़ा हुआ है और उसे शांतिपूर्ण, गौरवमयी तरीके से हर भारतीय को मनाने की कामना रखनी चाहिए। लगता है कि इस बार किसानों और सरकार की हठधर्मिता के चलते इस पर संदेह के बादल छाये हुए हैं।

सरकार जो कानूनों को दो साल के लिए होल्ड कर रही है वह इन्हें निरस्त भी कर सकती है और दो साल तो क्या छह महीने या वर्ष में किसानों के साथ बातचीत कर नए कानून बना सकती है और इधर किसान भी जो सरकार का कहना है कि हम उनमें संशोधन कर देंगे, वह अपनी मर्जी के या यूं कहें अपने हित के संशोधन करवा सकते हैं। खैर जो भी है, सरकार और किसानों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है।

अब जरा अनुमान लगाइए कि 26 जनवरी को किसान संगठनों के अनुसार लगभग एक लाख ट्रैक्टरों की परेड करने की संभावना है। एक लाख ट्रैक्टर होंगे तो किसानों की संख्या का अनुमान लगाया जा सकता है कि वे भी 75 लाख-एक करोड़ के मध्य हो सकते हैं। और जब इतना समुदाय दिल्ली की ओर कूच करेगा तो दिल्ली के आसपास 30-40 किलोमीटर में ट्रैक्टर ही ट्रैक्टर नजर आएंगे। ऐसे में यातायात अवरुद्ध होना तो सामान्य बात है।

दूसरी ओर सरकार की ओर देखें तो वह व्यवस्था बनाने के लिए कितने पुलिसकर्मी तैनात कर सकती है। मेरे विचार से सभी बलों के मिलाकर भी तैनात करेंगे तो उनकी गिनती 50-60 हजार से अधिक नहीं हो पाएगी। ऐसी अवस्था में क्या ये पुलिसकर्मी इस किसान समुदाय को रोक पाएंगे? यह बड़ा प्रश्न है।

एक सवाल मेरे ही नहीं शायद सभी के दिमाग में जरूर आता होगा कि जो किसान आंदोलन अब तक अनुशासन से चल रहा है, वह जब इतने जोश से भरे सिर पर कफन बांधे लोग निकलेंगे तो क्या अनुशासन बना रहेगा? क्या किसान नेता भी इतने किसान समुदाय को अनुशासन में रख पाएंगे? और यदि अनुशासन भंग होता है तो पुलिस की तैनाती तो होगी ही उन्हें अनुशासन में रखने की। ऐसी अवस्था में टकराव होने की भी बड़ी संभावनाएं हैं। तो क्या हम रक्तरंजित गणतंत्र दिवस की ओर बढ़ रहे हैं?

हम तो यही चाहेंगे कि प्रभु सबको सद्बुद्धि दे। सरकार का काम जनता की भावनाओं को समझ उसके अनुरूप फैसले लेने का होता है, क्योंकि प्रजातंत्र की परिभाषा ही है कि जनता द्वारा जनता के लिए जनता के प्रतिनिधियों द्वारा संचालित। ऐसे में जनता की भावनाओं को समझाना सरकार का काम है।

आंदोलन के समय में ऐसा लगता है कि जनता का सरकार और अपने प्रतिनिधियों से विश्वास उठता जा रहा है। हरियाणा में ही देख लीजिए, मुख्यमंत्री पूरी फोर्स लगाकर भी अपनी रैली नहीं कर पाए। इसी प्रकार अन्य मंत्रियों की भी हालत है। ऐसे में फिर वही बात कि हम ईश्वर से यही प्रार्थना कर सकते हैं कि हमारे देश का सम्मान और गरिमा बनी रहे और कोई न कोई रास्ता निकले, जिससे गणतंत्र दिवस शांतिपूर्ण व उल्हास से मनाया जा सके।

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