-कहो ना से पहले चार पुस्तकें लिख चुके हैं-कहो ना, विश्वविख्यात ई-कॉमर्स कम्पनी अमेज़न पर ई-बुक के रूप में उपलब्ध है। गुरुग्राम, 22 जनवरी। वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और राजनीतिक विश्लेषक अमित नेहरा ने मानवीय संवेदनाओं पर आधारित, ‘कहो ना’ नामक एक पुस्तक लिखी है। अभी यह पुस्तक विश्वविख्यात ई-कामर्स कम्पनी अमेजन पर ई-बुक के रूप में उपलब्ध है। कोई भी पाठक इसे अमेजन की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकता है। एकदम अनूठी शैली में लिखी गई यह विश्वस्तरीय किताब दरअसल 101 लघु स्मृतियों और अनुभूतियों का संग्रह है। कहो ना में जिंदगी के हर रंग मसलन सुख-दुःख, हास-परिहास, सज्जनता-दुर्जनता, व्यंग्य, मासूमियत, प्यार, घृणा, दयनीयता, अक्खड़पन, फक्कड़पन, राग, विराग, अनुराग, वात्सल्य, कुटिलता, क्षमा, जाहिलता, अहं और वहम आदि का समावेश है। अमित नेहरा कहो ना से पहले क़िस्सागोई-रंगीला हरियाणा, कोविड-19@2020, अजब कोविड के गजब किस्से और कोविड-19 डोंट कम अगेन नामक चार पुस्तकें लिख चुके हैं। इसी क्रम में यह उनकी पांचवीं पुस्तक है। वरिष्ठ पत्रकार एवं इस पुस्तक के लेखक अमित नेहरा के अनुसार आज के युग में पठन-पाठन के लिए लोगों के पास समय बेहद कम है। अतः कहो ना में कम शब्दों में बहुत कुछ कहने का प्रयास किया गया है। कहने को तो कहो ना को साहित्य का फ़ास्ट फूड कहा जा सकता है मगर महत्वपूर्ण बात यह है कि असल के फ़ास्ट फूड की तरह इस साहित्यिक फ़ास्ट फूड के साइड इफेक्ट्स नहीं हैं। बल्कि कहो ना को पढ़कर साहित्यप्रेमियों का जायका व हाजमा और ज्यादा बढ़ेगा। कहो ना की एक खासियत यह भी है कि इसमें रचनाओं के शीर्षक न देकर अंत में पंच लाइनों का अभिनव प्रयोग किया गया है। इसे पाठकों ने बेहद पसंद किया है। कहो ना के आर्टिकल्स को और अधिक धारदार व असरदार बनाने के लिए खूबसूरत मॉडर्न आर्ट के प्रयोग ने पुस्तक की खूबसूरती को नए आयाम तक पहुँचा दिया है। अमेजन पर कहो ना ई-बुक को जबरदस्त रिस्पांस मिला है और पाठकों ने बड़ी बेहतरीन टिप्पणियां की हैं। कहो ना के लेखक अमित नेहरा का कहना है कि वे भविष्य में भी इसी तरह साहित्य की सेवा करते रहेंगे। हरियाणा के असल किस्सों पर आधारित उनकी एक अन्य किताब भी प्रकाशनाधीन है। Post navigation यह पत्रकारिता का दुर्भाग्यपूर्ण दौर : राहुल देव मानव भावनाओं को समझने में साहित्य का योगदान : खट्टर