भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

पंजाब से शुरू हुआ किसान आंदोलन अब सारे देश में फैल चुका है। किसान इन्हें अनुचित बता रहे हैं, जबकि सरकार किसानों को विपक्षी दलों द्वारा भ्रमित बता रहे हैं। अब प्रश्न गणतंत्र दिवस पर आकर अटका हुआ है। किसान कहते हैं कि गणतंत्र दिवस पर राजधानी ट्रैक्टर परेड करेंगे, जबकि सरकार यह चाहती नहीं।

 अब बात करें हरियाणा की तो जब पंजाब से आंदोलन आरंभ हुआ और पंजाब के किसान दिल्ली जाने लगे तो हरियाणा सरकार ने उन्हें रोकने के लिए अनेक अवरोध लगाए, बैरिकेटिंग की, जिससे यह मामला सोशल मीडिया के जरिये राष्ट्रीय मीडिया पर छा गया। मुख्यमंत्री बार-बार कहते रहे कि हरियाणा का किसान इसमें शामिल नहीं है। जो चंद लोग हैं, वे विपक्ष द्वारा बहकाए हुए हैं। और यहीं से आंदोलन बढ़ता गया।

गत सप्ताह देश के गृहमंत्री से हरियाणा के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की मुलाकात हुई लेकिन मुलाकात में क्या बात हुई यह जनता के सामने स्पष्ट रूप से नहीं आया। जो राजनैतिक चर्चाकारों ने अनुमान लगाए, उसके अनुसार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हरियाणा के मुख्यमंत्री से पूछा कि विधानसभा सत्र बुलाया जाए तो उसमें क्या आप बहुमत साबित कर पाएंगे और सुना है कि मुख्यमंत्री ने उन्हें विश्वास दिलाया कि हम विश्वास मत हासिल कर पाएंगे।

लेकिन उस मुलाकात के बाद लगा कि मुख्यमंत्री की कार्यशैली बदल गई है, क्योंकि भाजपा की ओर से निर्णय लिया गया कि वह किसानों के समानांतर धरना प्रदर्शन नहीं करेंगे। इससे लगा कि सरकार किसानों के प्रति नर्म पड़ी है। परंतु वास्तव में ऐसा था नहीं। शायद वह भी एक नीति थी कि एक बार पीछे हट फिर हमला करेंगे।

और आज वह सामने भी आया। हरियाणा भाजपा के प्रवक्ताओं ने एक ही भाषा में बात कही कि यह किसान कांग्रेस के बरगलाए हुए हैं और उन्होंने किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा का मोहरा है। और आज कई स्थानों पर कांग्रेस और गुरनाम सिंह चढूनी के पुतले भी फूंके गए और लगता है कि 26 जनवरी से पूर्व सरकार किसी आक्रामक नीति से किसान आंदोलन से निपटने की सोच रही है।इस बारे में कुछ राजनीतिक जानकारों से बात की तो उनका कहना था कि यह भाजपा के लिए आत्मघाती कदम भी हो सकता है, क्योंकि इस समय भाजपा का संगठन भी बिखरा हुआ है। उधर इस पर हमें उनकी बात उचित ही लगी, क्योंकि गुरुग्राम संगठन के हालात ऐसे ही नजर आते हैं। भाजपा कई गुटों में बंटी नजर आ रही है और गुरुग्राम के पूर्व एमएलए तो कहीं दिखाई नहीं देते। हम यह नहीं भूलना चाहिए कि  उनका बड़ा जनाधार था। गुरुग्राम में सर्वाधिक वोट लेने का रिकॉर्ड उन्हीं के नाम है। यह तो एक की बात कही, बाकी भी भाजपा के अनेक वरिष्ठ नेता पार्टी से दूरी बनाकर अलग हो गए हैं।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि जिस समय 2014 में हम प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा के नेतृत्व में सत्ता में आए तो भाजपा के लगभग दो लाख मैंबर थे और अब 35-40 लाख मैंबर बताए जा रहे हैं। प्रश्न यह है कि ये जो मैंबर बढ़े हैं, क्या ये भाजपा की विचारधारा के हैं? ये तो सब बिना रीढ़ की हड्डी के हैं, जहां देखी तवा-परात वहीं गुजारी सारी रात। उसने आगे हम पर प्रश्न दाग दिया कि सोचिए हरियाणा में दो करोड़ से कम वोटर हैं और यदि 40 लाख इनके मैंबर हैं तो डेढ़ करोड़ से अधि वोटर इनके हुए। वह इनके विरूद्ध जा नहीं सकते। हां में हां मिलाएंगे तो बचे हुए थोड़े से लोग इतना बड़ा हर स्थान पर आंदोलन कैसे चला सकते हैं? इस मैंने कहा कि ऐसे तो सोचा नहीं था, कुछ आप ही समझाइए, तो उसका कहना था कि सब मिस्ड कॉल के मैंबर हैं, सत्ता के साथ बने थे। अब जनता का रूख किसानों के साथ है। अत: यह बिना रीढ़ की हड्डी के लोग इन सिर पर कफन बांधे हुए किसानों के सामने टिक नहीं पाएंगे।

यह मुख्यमंत्री मनोहर लाल की परीक्षा की घड़ी है। उनका कहना बार-बार ब्यान आता है कि हमारी सरकार पांच साल चलेगी। प्रश्न उठता है कि उनको ऐसा क्यूं कहना पड़ रहा है? यह तो सर्वविदित है कि  जो सरकार चुनी गई है, वह पांच वर्ष के लिए ही है। उनके इस कथन के बारे में चर्चाकारों का कहना है कि कहीं न कहीं उन्हें यह खतरा है कि किसान आंदोलन विपक्ष को मजबूती देकर मेरी सरकार के लिए घातक सिद्ध हो जाए।

वैसे एक बात अवश्य चर्चा में है कि हरियाणा में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुकंपा से मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री बने थे, तभी से ही वह एकछत्र राज चला रहे हैं। पिछले कार्यकाल में भी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष और उन्हें एक ही माना जाता था। या यूं कहें कि प्रदेश अध्यक्ष मुख्यमंत्री के निर्देशों का पालन करता था। और वर्तमान में जब ओमप्रकाश धनखड़ प्रदेश अध्यक्ष बने थे तो पार्टी और जनता में यह लगा था कि ओमप्रकाश धनखड़ अपनी सूझ-बूझ से पार्टी की नीतियों का निर्धारण करेंगे और पार्टी और सरकार को एक नहीं होने देंगे। लेकिन जैसे पिछले समय से सरकार और पार्टी की गतिविधियां दिखाई दे रही हैं, उससे यही लगता है कि स्थिति अब भी पहले वाली ही है।

वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष के पास ऐसा कुछ नहीं है, जो वह अपने कार्यकाल की उपलब्धि बता सकें और फिर शीर्ष स्तर के नेताओं में विवाद की बातें अक्सर आती रहती हैं जिनमें गृहमंत्री अनिल विज, पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यू, पूर्व शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा और भाजपा के चुने हुए सांसद राव इंद्रजीत सिंह, लगता नहीं कि सभी मुख्यमंत्री के साथ हैं। ऐसे में 26 जनवरी का महत्व बहुत बढ़ जाता है।

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