किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान भी थे. अब उन्होंने समिति से अपना नाम वापस ले लिया है. नई दिल्ली: नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का आज (गुरुवार) 50वां दिन है. आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान समाधान के लिए एक समिति का गठन किया था. कमेटी के सदस्यों में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान भी थे. अब उन्होंने समिति से अपना नाम वापस ले लिया है. दरअसल कमेटी में भूपिंदर मान के नाम पर शुरुआत से ही बवाल हो रहा था. किसान नेताओं का कहना था कि मान पहले ही तीनों नए कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं. भूपिंदर सिंह मान ने पत्र लिखकर इसकी जानकारी दी. मान ने इस कमेटी में उन्हें शामिल करने के लिए शीर्ष अदालत का आभार जताया. पत्र में उन्होंने लिखा है कि वे हमेशा पंजाब और किसानों के साथ खड़े हैं. एक किसान और संगठन का नेता होने के नाते वह किसानों की भावना जानते हैं. वह किसानों और पंजाब के प्रति वफादार हैं. किसानों के हितों से कभी कोई समझौता नहीं कर सकता. वह इसके लिए कितने भी बड़े पद या सम्मान की बलि दे सकते हैं. मान ने पत्र में लिखा कि वह कोर्ट की ओर से दी गई जिम्मेदारी नहीं निभा सकते, अतः वह खुद को इस कमेटी से अलग करते हैं. किसान नेताओं ने समिति में शामिल अन्य नामों पर भा ऐतराज जताया था. शीर्ष अदालत की तरफ से बनाई गई चार सदस्यों की समिति में BKU के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन (महाराष्ट्र) के अध्यक्ष अनिल घनवत, अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान दक्षिण एशिया के निदेशक प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी शामिल हैं. अनिल घनवत ने मीडिया में लिखे अपने लेखों में किसान कानूनों के पक्ष में राय दी थी. बता दें कि कई जाने-माने कृषि अर्थशास्त्रियों ने नए कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगाने तथा सरकार और आंदोलनकारी किसान संगठनों के बीच उन कानूनों को लेकर जारी गतिरोध दूर कराने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किए जाने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया था. पूर्व केंद्रीय मंत्री और प्रख्यात अर्थशास्त्री वाई के अलघ ने कहा था कि उन्हें लगता है कि यह (उच्चतम न्यायालय का फैसला) बहुत विवेकपूर्ण है. Post navigation कानून की प्रतियां जलाई गईं। कानून नकारते हुए उन्हें रद्द करने का देश भर के किसानों ने पुनः जोर दिया। 800 से अधिक महिला किसानों व विद्यार्थियों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को लिखा खुला पत्र