समझदार सरकार

यशवीर कादियान

कभी कभी ये तय करना मुश्किल हो जाता है कि अफसर ज्यादा होशियार होते हैं या नेता? जैसे कि हरियाणा सरकार के सीआईडी अमले के होशियार और समझदार अफसरों ने किसान आंदोलन के मददेनजर सरकार को खबरदार कर दिया। कह दिया कि किसान आंदोलन के मददेनजर सत्तारूढ पार्टी के नेता संभल कर रहें। पब्लिक में जाने से बचें। अगर पब्लिक में जाना ही पड़ जाए तो फिर पर्याप्त पुलिस सुरक्षा के साथ जाए। इधर भाजपा के शीर्ष नेताओं की एक बैठक हुई। इसमें मंत्रणा हुई। यंू तो सरकार के नेताओं की बैठक होती ही रहती हैं,लेकिन इस दफा चमत्कार ये हुआ कि इस बैठक में एक फैसला ले लिया गया। इस बैठक में ये तय कर लिया गया कि तीन किसान कानूनों के फायदे गिनाने और विपक्ष के दुष्प्रचार का जवाब देने के लिए भाजपा फील्ड में उतरेगी। रैलियां-जनसभाएं-संवाद कार्यक्रम के जरिए इन कानूनों के पक्ष में माहौल बनाया जाएगा। उसके बाद कुछ ऐसा सा घटनाक्रम घटित हुआ कि कहीं सरकारी नेताओं के कार्यक्रमों में आने के लिए-स्वागत के लिए किसानों की ओर से हैलीपैड खोदे जा रहे हैं,कहीं काले झंडे दिखाए जा रहे हैं तो कहीं उनके खिलाफ नारेबाजी हो रही हैं। कहीं कहीं तो ये तीनों कार्यक्रम ही एक साथ-एक सुर में घटित हो रहे हैं। अब जब सीआईडी ने कह दिया कि भाई लोगो अभी रहने दो जरा। बाद में समझा लेना। पर नहीं। ये तो समझाने पर उतारू हैं। और उधर जो दूसरे खेमे के जो लोग हैं ना उन्होंने तो सदा ही नेताओं को समझाया ही है। खुद तो कभी समझे ही नहीं है। ऐसे में देखते हैं कि इस दफा कौन बाजी मारता है? सरकार इनको समझा पाती है या फिर समझदार होकर एक कोने में दुबक जाती है?इतिहास को बदल पाती है? इस हालात पर कहा जा सकता है:

उठते हुए तूफान का मंजूर नहीं देखा
देखो मुझे गर तुम ने समंदर नहीं देखा

हरियाणा पुलिस

अपने यहां सरकारों की कार्यप्रणाली की एक खूबसूरती ये है कि इनमें बलि का बकरा बहोत जल्दी ढूंढा जाता है। जितनी जल्दी ये बकरे ढंूडे जाते हैं, उस से कहीं जल्दी इनको हलाल किया जाता है ताकि असली दोषी पर आंच न आ सके। लोगों का ध्यान असल मुददे से हटा सकें। छोटी मछलियों पर दिखावे के लिए कार्रवाई हो जाती है और बड़े बड़े मगरमच्छ मौज करते रहते हैं। जैसे कि… गुडग़ांव में काल सेंटर संचालकों से अवैध वसूली के नाम पर कुछ पुलिस वालों को अरैस्ट किया गया है। कुछ समय से गुडग़ांव में बहोत से पुलिस वाले बहोत-ए खुल्ला चल रहे हैं। उनके बुलंद हौसलों की वजह एक बड़े पुलिस अफसर का उनको फ्री हैंड देना है। इन अफसर ने कह दिया है कि मुझे सिर्फ और सिर्फ माल से मतलब है। तुम खूब कमाओ और मुझे अपने से ज्यादा कमवाओ। इन साहब के पास ये पूरी खबर है कि गुडग़ांव में कहां कहां क्या क्या अवैध काम हो रहे हैं। ये इन अवैध काम करने वालों को सरपरस्ती देने के बदले में माल पाणी कमा-कमवा रहे हैं। कई स्थानों पर सरपरस्ती देने के एवज में तो बहोत से स्थानों पर कानून के डंडे के डर से उगाही-फिरौती वसूल रहे हैं। खुद ऊपर की सेवा कर के यहां तक पहुंचे हैं तो अब अपना सारा हिसाब किताब चुकता करने में लगे हैं। अगर ग्यारह दिए हैं तो उसको बाइस बनाने में जुटे हैं। अगर अवैध वसूली प्रकरण की ठीक से जांच हो जाए तो पता लगेगा कि ज्यादा माल पाणी तो साहब तक ही पहुंचता था। इस खेल के असली खिलाड़ी अपने साहब ही हैं। चंूकि इन साहब के ऊपर ऊपर का हाथ है, इसलिए इनके खिलाफ कार्रवाई होना मुश्किल ही नहीं,बल्कि नामुमकिन है।

पैनल

चंडीगढ में डैपुटेशन पर तैनात एचसीएस अधिकारी सुधांशु गौतम को हरियाणा सरकार ने वापस बुला लिया है। उनके स्थान पर तीन एचसीएस अफसरों का पैनल चंडीगढ प्रशासन को भेज दिया गया है। इनमें प्रधुम्मन सहरावत,पंकज सेतिया और मीनाक्षी गोयल शामिल हैं। ऐसी चर्चा भी चल रही है मुख्यमंत्री सचिवालय में जल्द ही एक एचसीएस अफसर की एंट्री हो सकती है।

समारोह

हरियाणा सरकार में संसदीय सचिव न बनाए जाने से गणतंत्र दिवस समारोह में मौके पर बहोत से मंडल आयुक्त्तों और जिला आयुक्त्तों को राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अवसर प्राप्त होगा। सरकार की तरफ से इस बारे में जारी सूचना के मुताबिक करनाल,कुरूक्षेत्र,सोनीपत,फरीदाबाद और हिसार में सबंधित डिवीजन के आयुक्त्त और कैथल,जींद और चरखी दादरी में सबंधित डीसी ध्वजारोहरण करेंगे। जिस तरह का सियासी मौसम इन दिनों हरियाणा में है उस लिहाज से प्रदेश में गणंतत्र दिवस समारोह सबके लिए जीवन भर यादगार रह सकता है। भले ही कोई संतरी है या मंतरी है या कोई कुछ भी है- इन सबके लिए-हम सबके लिए इस दफा के समारोह अलग ही होंगे। गजब ही होंगे।

सियासी इस्तीफा

ये किसान आंदोलन क्या शुरू हुआ कि विपक्ष के साथ साथ सरकार में शामिल विधायक भी इस्तीफा देने के बारे में कहने लगे। इनैलो नेता अभय चौटाला कह रहे हैं कि वो 27 जनवरी को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे देंगे। सरकार में शामिल जजपा के विधायक जोगीराम सिहाग और रामकरण काला भी इस्तीफा देने की पेशकश करने लगे हैं। अभी तक मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने अपने विधायकों के इस्तीफे के बारे में पत्ते नहीं खोले हैं। आम तौर पर अपने यहां ऐसे इस्तीफों की सियासत चुनाव नजदीक होने पर ही घटित होती है,लेकिन इस दफा इस्तीफों की चर्चा चुनाव से कुछ ज्यादा पहले ही शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई दफा मन की बात और अन्य मंचों से किसानों से खुल्ले दिल से वार्ता का निमंत्रण दे चुके हैं। किसान सरकार से वार्ता भी कर चुके हैं। उसके बावजूद अभी आंदोलन खत्म नहीं हो रहा। कहीं इसकी एक वजह ये तो नहीं कि…
फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था