हाड जमाने वाली ठंड और बरसात में भी डटे किसान. केंद्र सरकार बना रही है किसानों को मनाने का प्लान. किसान संगठनों की दो टूक रद्द किये जाए कृषि कानून

फतह सिंह उजाला

केंद्र सरकार के द्वारा लागू किए गए नए कृषि कानूनों के विरोध में देश के विभिन्न हिस्सों से आंदोलनकारी किसानों के द्वारा दिल्ली के चारों तरफ 42 दिन से लंगर डाला हुआ है । इस दौरान कृषि कानूनों के मुद्दे को लेकर अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के घटक किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत के बाद डेट पर डेट देने और लेने का सिलसिला चला आ रहा है। लेकिन लाख टके का सवाल यह है की हाड जमा देने वाली सर्दी और बरसात के बीच अभी तक 42 दिनों के दौरान करीब 60 ऐसे किसान की डेथ हो चुकी है , जोकि किसान आंदोलन मैं शामिल रहे । मानवीय नजरिए से  तो 60 किसानों की डेथ होना, जिनमें 18 वर्ष के युवा से लेकर 70 वर्ष के वृद्ध तक शामिल हैं बहुत ही पीड़ादायक और मन को विचलित कर देने वाली घटना है ।

लाख टके का सवाल यही है की समस्या के समाधान के नाम पर डेट पर डेट और फिर आगे की डेट, लेकिन इस बीच 60 डेथ भी हो चुकी हैं । जिन 60 किसानों की जान गई अथवा जिन्होंने अपनी कुर्बानी किसान आंदोलन में केंद्र सरकार के द्वारा लागू किए गए किसी कानूनों के विरोध में दे दी, उसकी भरपाई किया जाना संभव ही नहीं है । मानवीय पहलू हो यह संवैधानिक अधिकार , कथित रूप से यह सरकार का भी दायित्व बनता है कि वे देश के प्रत्येक नागरिक का ध्यान रखें कि किसी संसाधन के अभाव में उसकी जान न चली जाए । शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति देश में होगा जो राज्य और केंद्र सरकार को परोक्ष अथवा परोक्ष रूप से टैक्स की अदायगी नहीं करता । यह टेक्स  आम जनमानस के जीवन की सुरक्षा के दृष्टिगत अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण है ।

अब सीधी बात करते हैं कि अभी तक कृषि कानूनों के मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार के मंत्रियों अथवा केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों और आंदोलनकारी किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच नियमित अंतराल पर हो रही बैठक के बावजूद कोई समाधान निकलता हुआ दिखाई नहीं दिया।

आंदोलनकारी किसान पहले दिन से ही एक मांग और दो टूक बात कहते आ रहे हैं कि केंद्र सरकार नए कृषि कानून और बिजली अध्यादेश को वापिस ले । वही केंद्रीय  सरकार के प्रतिनिधि मंत्री किसान संगठनों को संतुष्ट करते दिखाई नहीं दिए हैं। ऐसे में किसान संगठनों के द्वारा अपनी 26 जनवरी तक की रणनीति का केंद्र सरकार देश और दुनिया के सामने खुलासा किया जा चुका है । इसी बीच दिल्ली-जयपुर नेशनल हाईवे के राजस्थान और हरियाणा के बॉर्डर पर लंगर डाले किसानों के द्वारा दिल्ली के दक्षिणी सीमा क्षेत्र के बॉर्डर तक पहुंचने की मशक्कत को रोकने के लिए किसानों पर आंसू गैस और मिर्च के गोले भी दागे गए । संभवत इस प्रकार की कार्रवाई किसानों के ऊपर करीब सवा माह के आंदोलन के दौरान दूसरी बार की गई और दोनों ही बार आंसू गैस, वाटर कैनन की घटना हरियाणा राज्य में हुई है । किसानों पर हाल ही में लाठी चार्ज, आंसू गैस सहित मिर्च के गोले दागे गए, इस घटना को लेकर भी अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा में जबरदस्त रोष बना हुआ है ।

वही बीती 4 जनवरी की हुई बैठक के बाद 8 जनवरी को होने वाली बैठक तक के बीच जो भी समय मिला किसान संगठनों के बड़े नेता किसानों के बीच पहुंचकर आंदोलन को और अधिक मजबूत बनाने के लिए समर्थन जुटाने में जी जान से लगे हुए हैं और उन्हें इस दिशा में उम्मीद से अधिक कामयाबी भी मिल रही है । इसके साथ ही किसान संगठनों के द्वारा अपनी पूर्व घोषणा के मुताबिक 7 जनवरी गुरुवार को कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे पर भव्य और विशाल ट्रैक्टर मार्च भी किया जाएगा । किसान संगठनों के दावे के मुताबिक 23 जनवरी को राजपथ पर भी ट्रैक्टरों पर तिरंगा झंडा लगाकर ट्रैक्टर मार्च किया जाएगा और 26 जनवरी को भी इसी प्रकार से अनगिनत किसान अपनी मांगों के समर्थन में केंद्र सरकार पर किसी कानूनों को वापस लेने के लिए दबाव बनाने के वास्ते भी ट्रैक्टर मार्च करेंगे । इधर इंडियन नेशनल लोकदल के विधायक अभय सिंह चैटाला 7 जनवरी गुरुवार को 500 ट्रैक्टर ट्रालीयों के काफिले के साथ दिल्ली के लिए पहुंच कर किसान आंदोलन को अपना समर्थन देते हुए आंदोलन को मजबूत बनाने का आह्वान कर चुके हैं ।

कुल मिलाकर बीते 40-42 दिनों के दौरान किसान आंदोलन का विश्लेषण किया जाए तो यह आंदोलन आमजन का आंदोलन बनता हुआ दिखाई दे रहा है । अब ऐसे में सभी की नजरें एक बार फिर 8 जनवरी शुक्रवार को केंद्र सरकार के प्रतिनिधि मंत्रियों और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच होने वाली बातचीत और बातचीत के बाद संभावित फैसले पर टिकी हुई है  । इसी बीच देश की सर्वोच्च अदालत में भी बुधवार को ही किसान आंदोलन प्रकरण को लेकर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा आंदोलनकारी किसानों पर चिंता जाहिर की जा चुकी है । वही इसी मामले में अगली सुनवाई का समय तय किया  गया है । इस बात को बिल्कुल भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि समस्या का समाधान बातचीत से ही निकलेगा ।

लेकिन सबसे अधिक विचलित करने वाली बात यही है कि समस्या के समाधान के लिए डेट पर डेट के बीच और कितने किसानों की डेथ होगी । यह डेथ किसान के रूप में अन्नदाता की हो रही है , यही अन्नदाता जो आग उगलती दुपहरी, हाड जमा देने वाली सर्दी , आंधी हो या तूफान, सुबह हो या शाम, भरी दोपहरी ही हो या मध्य रात्रि, बिना किसी बात की परवाह किए और थके रंक से लेकर राजा तक का पेट भरने के लिए जमीन का सीना चीर कर अन्न पैदा करता आ रहा है और पैदा करता भी रहेगा । बशर्ते कृषि कानूनों के मुद्दे को लेकर होने वाली आगामी बैठक में फार्मर और सरकार के बीच कोई ना कोई सहमति बन जाए । यह भी भविष्य के गर्भ में ही छिपा हुआ है , लेकिन अब इतना तो संवेदनशील हो जाना चाहिये कि किसी और किसान – अन्नदाता को अपनी कुर्बानी के लिए मजबूर नही होना पड़े। 

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