किसानों की एक ही मांग सरकार कृषि कानून वापिस ले. तीन प्रतिशत सरकारी कर्मचारी और 65 प्रतिशत किसान. सातवें वेतन आयोग में 4लाख करोड रुपए की बढ़रेतरी. सरकार के 15 लाख करोड़़ केवल पूंजीपति ही दबाए बैठे फतह सिंह उजाला केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए कृषि कानूनों को लेकर , इनके विरोध में किसान आंदोलन 2020 में आरंभ हुआ और वर्ष 2021 में भी पहुंच गया । 30 दिसंबर को संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्र सरकार के बीच हुई बातचीत के बाद वर्ष 2021 के पहले दिन शुक्रवार को आंदोलनकारी अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा केंद्र सरकार से हुई बातचीत से लेकर अपनी आगामी रणनीति के सभी पत्ते खोल कर एक बार फिर से गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी गई । अब सीधा सा और सरल मतलब यही है कि गेंद भी सरकार की, मैदान भी सरकार का और खिलाड़ी भी सरकार । आंदोलनकारी किसान केवल दर्शक हैं ,जो केवल यह देखना चाहते हैं की केंद्र सरकार कृषि कानूनी रूपी गेंद को अपने ही पाले में किस प्रकार से अपने ही गोल में वापिस डालती है ? सोमवार को संयुक्त किसान मोर्चा के घटक दलों के नेताओं के द्वारा दो टूक अपनी बात फिर से दोहरा दी गई कि हम आज भी अपनी मांगों पर अडिग हैं । केंद्र सरकार तीनों कृषि कानून वापस ले और एमएसपी पर लिखित में गारंटी दे , इससे कम कुछ भी किसान मोर्चा को स्वीकार नहीं है। किसान नेताओं के द्वारा आरोप लगाया गया कि केंद्र सरकार की नियत में अभी भी कहीं ना कहीं खोट महसूस की जा रही है। 4 जनवरी सोमवार को यदि केंद्र सरकार के साथ बातचीत में कोई भी निर्णायक फैसला नहीं हुआ तो इसके बाद किसान आंदोलन पूरे देश में व्यापक रूप से चलेगा । इसकी पूरी जिम्मेदारी फिर से केंद्र सरकार की ही होगी । किसान नेताओं ने इस बात का दावा अवश्य किया कि केंद्र सरकार के द्वारा सातवें दौर की वार्ता में भी एमएसपी पर किंतु-परंतु ही किया गया । केंद्र सरकार की मंशा यही है कि एमएसपी पर भी एक कमेटी का गठन किया जाए । किसान नेताओं नेताओं ने फिर से दोहराया कि किसान अपना अधिकार मांग रहा है। यदि सरकार नाकाम रहती है तो जिस प्रकार से आंदोलन चल रहा है , यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक केंद्र सरकार इसी कानून के साथ-साथ एमएसपी पर लिखित गारंटी और बिजली अध्यादेश को वापस नहीं ले लेती है । किसान नेताओं ने केंद्र सरकार पर झूठ बोलने का भी आरोप लगाया , किसान नेताओं के द्वारा कहा गया की बीजेपी सरकार यह ढिंढोरा पीट रही है की फसल बोने से पहले ही एमएसपी घोषित किया जा रहा है । जो दावा अब बीजेपी सरकार कर रही है, यह काम तो वर्षों से होता रहा है । फसल की बिजाई के समय ही एमएसपी घोषित कर दिया जाता है । वर्ष 2021 के पहले दिन शुक्रवार को अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के द्वारा केंद्र सरकार पर बहुत बड़ा हमला बोला गया। किसान नेताओं ने सवाल उठाया की देश में कुल 3 प्रतिशत ही सरकारी कर्मचारी हैं , सातवें वेतन आयोग के मुताबिक 4 लाख करोड रुपए का वेतन में बढ़ोतरी अथवा भत्तों में लाभ मिला है । जबकि देश में 65 प्रतिशत किसान हैं । जिस औरत से सरकारी कर्मचारियों और कथित रूप से मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के भत्ते मे बढ़ोतरी होती आ रही है , उसके मुकाबले किसानों की उपज में कितनी बढ़ोतरी की गई ? यह भी मौजूदा बीजेपी सरकार को बताना चाहिए । किसान नेताओं ने केंद्र सरकार पर बड़ा हमला बोलते कहा कि देश का 15 लाख करोड़ रुपए तो देश के ही कुछ चुनिंदा पूंजीपति मारे पड़े हैं । आज समय आ चुका है केंद्र सरकार को अपने लाए हुए कृषि कानूनों के मुद्दे पर किसानों के साथ खुल कर चर्चा करनी ही होगी । अब यह केवल मात्र किसानों का आंदोलन नहीं 130 करोड़ भारतीयों का आंदोलन बन चुका है । अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के मंच से एक किसान नेता के द्वारा नए बिजली बिल अथवा अध्यादेश पर भी सवाल उठाए गए ? किसान नेता ने कहा 30 दिसंबर की बैठक में शामिल केंद्र सरकार के किसी भी मंत्री के द्वारा इस पर कोई बात नहीं कही गई । नया बिजली बिल अथवा अध्यादेश केवल मात्र किसानों पर ही नहीं, देश के प्रत्येक बिजली उपभोक्ता पर लागू होगा और इसमें भी सबसिडी का कोई खेल है, यह अधिकार भी राज्य की सरकार को होगा कि सबसिडी दे या नहीं दे। संयुक्त किसान मोर्चा के मंच से ही सोमवार को हरियाणा के एक किसान नेता के द्वारा ऐलान किया गया कि 6 से 20 जनवरी तक व्यापक किसान आंदोलन चलेगा। जिस प्रकार हरियाणा में अभी तक विभिन्न स्थानों पर टोल फ्री किए गए हैं , उन्हें किसान आंदोलनकारियों के द्वारा जारी रखा जाएगा और जहां टोल फ्री नहीं है उन्हें भी अब फ्री अथवा करवाया जाएगा। हरियाणा के सभी मॉल्स और सरकारी पेट्रोल पंप का बहिष्कार भी किसान आंदोलन की अगली कड़ी में शामिल है । संयुक्त किसान मोर्चा के मंच से ही किसान नेता के द्वारा बड़ी घोषणा की गई कि हरियाणा में सीएम, डिप्टी सीएम, मंत्रियों सहित सभी बीजेपी और जेजेपी के विधायकों का गांव हो या फिर शहर सभी स्थानों पर घेराव भी किया जाएगा । यह घेराव तब तक जारी रहेगा, जब तक हरियाणा की गठबंधन सरकार घुटने नहीं टेक देगी । क्योंकि कृषि कानूनों के मुद्दे को लेकर दिल्ली आ रहे किसान भाइयों के ऊपर सबसे अधिक जुल्म और बाधा हरियाणा सरकार के द्वारा ही पैदा किए गए । कुल मिलाकर केंद्र सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा के बीच होने वाली बातचीत से पहले ही आंदोलनकारी किसान संगठनों के द्वारा अपनी बात कह कर रणनीति का खुलासा कर कृषि कानूनी रूपी गेंद को केंद्र सरकार के पाले में पूरी तरह से डालकर छोड़ दिया गया है । अब देखना यही है कि 4 जनवरी सोमवार को केंद्र सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा के बीच बातचीत निर्णायक रूप से समस्या का समाधान करने में सक्षम रहेगी ? अन्यथा आंदोलनकारी किसानों ने तो बोल ही दिया है कि उनका पड़ाव और लंगर जैसे चल रहा है, वैसे ही चलता रहेगा। Post navigation पहली जनवरी से सामाजिक सुरक्षा पेंशन में नहीं होगी 250 रुपये की वृद्धि कृषि कानून का सर्वमान्य हल निकलने तक इन काले कृषि कानूनों को स्थगित क्यों नही करते?