Haryana Chief Minister Mr. Manohar Lal addressing Digital Press Conference regarding preparedness to tackle Covid-19 in the State at Chandigarh on March 23, 2020.

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

हरियाणा के मुख्यमंत्री आज तक यही कहते रहे हैं कि हरियाणा का किसान आंदोलन में शामिल नहीं है लेकिन आज अंबाला में किसानों ने उनके काफिले को रोक लिया और काले झंडे दिखाते हुए गाडिय़ों पर लाठियां भी बरसाईं। अब सवाल यह अवश्य उठता है कि क्या ये किसान पंजाब के थे या फिर ये सभी कांग्रेस के थे?

चर्चाकारों में यह चर्चा तो काफी समय से चल रही है कि मुख्यमंत्री कहते कुछ हैं और सोचते कुछ हैं। उनका कहना है कि अब हमारी बात का प्रमाण भी मिल गया कि यदि मुख्यमंत्री को वास्तव में यह लगता कि हरियाणा का किसान इस आंदोलन में बिल्कुल शामिल नहीं है और अब वह तीनों कृषि कानूनों को पसंद करता है तो नारनौल रैली के समय लोगों की धर-पकड़ क्यों? आगे-पीछे पुलिस का पहरा क्यों? यही बात रेवाड़ी के लिए भी कही जा सकती है। सोनीपत में भी अच्छी-खासी पुलिस फोर्स उनकी सुरक्षा के लिए थी और वही पुलिस फोर्स अंबाला में भी सुरक्षा लिए तो थी परंतु किसानों की संख्या को देखते हुए और स्थिति न बिगड़े इसे देखते हुए पुलिस ने कोई कठोर कदम नहीं उठाया।

वर्तमान में चर्चा यह भी चल रही है कि मुख्यमंत्री निगम चुनाव में अपने दौरे कर या प्रचार कर क्या साबित करना चाहते हैं कि उनके बिना भाजपा के जो इतने वरिष्ठ नेता हैं, वे अपने कार्य में सफल नहीं हो पाएंगे या फिर उन्हें उनकी काबलियत पर पूरा भरोसा है कि इन विकट परिस्थितियों में जब किसान आंदोलन के साथ जनता भी जुड़ी हुई है, उनके प्रभारी चुनाव जिता ले जाएंगे और उनके दौरों के कारण नाम उनका हो जाएगा कि मुख्यमंत्री ने प्रचार किया था, इसलिए विजय हासिल हुई। 

अब बड़ा प्रश्न यह भी है कि जब सारी दुनिया में कोरोना का कहर अभी शांत नहीं हुआ है और जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं का नारा चल रहा है। कोरोना का वैक्सीन भी अभी आज तक तो आई नहीं है। उधर दूसरी ओर किसान आंदोलन की वजह से कुछ जिले बुरी तरह प्रभावित हैं और इस कठिन समय में गृहमंत्री अनिल विज कोरोना के संक्रमण में हैं। बीमारी भी इतनी है कि कई रोज से आइसीयू में हैं। ऐसे में गृहमंत्री की जिम्मेदारी भी स्वभाविक रूप से मुख्यमंत्री पर ही आन पड़ी है। इन परिस्थितियों में हमारे मुख्यमंत्री या तो बहुमुखी प्रतिभा के धनी है जो कितनी ही परेशानियां खड़ी हों, सभी को चुटकियों में सुलझा लेते हैं या फिर उन्हें लगता है कि निगम चुनाव जीतना इन समस्याओं से अधिक आवश्यक है।

अब हम इन बातों में न पड़ें कि मुख्यमंत्री की सभाओं का रेवाड़ी में लाभ हुआ या हानि या सोनीपत में भाजपा को उससे कितना लाभ हुआ तो शायद ज्यादती होगी, क्योंकि वह तो परिणाम ही बताएंगे परंतु यह अवश्य सिद्ध होता है कि यदि इन चुनावों में परिणाम भाजपा के अनुकूल नहीं आए तो सरकार को या तो यह मानना पड़ेगा कि यह किसान आंदोलन का असर है या वह कोरोना का असर बताएंगे और विपक्ष इसे सीधा-सीधा यह कहकर प्रचारित करेगा कि वर्तमान सरकार जनता में अपना विश्वास खो चुकी है।

यदि परिणाम इसके विरूद्ध आया तो जो विधायक या सांसद अभी यह कह रहे हैं कि सरकार किसान आंदोलन को जल्द से जल्द समाप्त करे वरना हम किसानों के साथ होंगे और अब भी किसानों के साथ हैं। चौ. बीरेंद्र सिंह का परिणाम सामने ही है। कुछ विधायक अपनी कहकर समर्थन वापिस भी ले चुके हैं। इससे अनुमान यह लगता है कि मुख्यमंत्री का मंत्री मंडल का विस्तार या चेयरमैनों की नियुक्ति के प्रलोभन भी शायद उन्हें न रोक पाए। ऐसी संभावनाएं नजर आती हैं।