कृषि कानून के खिलाफ विगत 27 दिन के किसान आंदोलन में 37 किसान शहीद : विद्रोही

दो किसानों ने मोदी सरकार के किसान विरोधी रवैये से क्षुब्ध होकर आंदोलन स्थल पर ही आत्महत्या करके अपना बलिदान दिया।

22 दिसम्बर 2020 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा कांग्रेस कमेटी के प्रदेश प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने किसान आंदोलन व आंदोलन में शहीद हो रहे किसानों के प्रति प्रधानमंत्री मोदीजी व भाजपा के अपनाये जा रहे निर्मम व अमानवीय रवैये की कठोर आलोचना की। विद्रोही ने कहा कि काले कृषि कानून के खिलाफ विगत 27 दिन के किसान आंदोलन में 37 किसान शहीद हो चुके है जिनमें दो किसानों ने मोदी सरकार के किसान विरोधी रवैये से क्षुब्ध होकर आंदोलन स्थल पर ही आत्महत्या करके अपना बलिदान दिया।

किसानों के इस बलिदान के प्रति प्रधानमंत्री मोदीजी, हरियाणा मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर, मंत्रीयों, भाजपा पार्टी, भाजपा संासदों, विधायकों का जो ठंडा व निर्मम रवैया है, उससे संघीयों का अमानवीय चेहरा तो बेनकाब हुआ ही है, साथ में यह भी साबित हुआ कि मोदी-भाजपा-संघीयों के लिए किसानों का जीवन कोई मायने नही रखता है। प्रधानमंत्री सहित सभी संघीयों का रवैया इतना निर्मम व अमानवीय है कि 37 किसानों की शहादत पर इन्होंने शोक प्रकट करना भी आवश्यक नही समझा। विद्रोही ने कहा कि जब मोदी सरकार की नजरों में अन्नदाता किसानों का अमूल्य जीवन भी कोई महत्व नही रखता है तो ऐसी किसान विरोधी, क्रूर मानसिकता वाले पूंजीपतियों के दलाल संघीयों से किसान हित की आशा ही बेमानी है।

एक ओर भाजपा सरकार आंदोलनरत किसानों से वार्ता का ढोंग करती है, वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी से लेकर हर छोटा-बडा मंत्री, भाजपा नेता, सांसद, विधायक तीन काले किसान कानूनों की वकालत करके किसी भी हालत में इन काले कानूनों को वापिस नही लेने का बेसुरा राग अलापते है। विद्रोही ने कहा कि जब सरकार इन तीन काले कृषि कानूनों को किसान हितैषी बताने पर अडिग है और किसी भी हालत में इन्हे वापिस लेने को तैयार नही है तो आंदोलनरत किसानों से वार्ता ढोंग करने का क्या औचित्य है? ऐसी स्थिति में किसानों के पास आर-पार की लडाई लडने के अलावा कोई अन्य विकल्प नही है। वही अब देश के 138 करोड़ नागरिकों को भी तय करना होगा कि वे अन्नदाता किसानों के साथ है या अम्बानी-अडानी जैसे बड़े पूंजीपतियों के दलाल मोदी-भाजपा के साथ है। 

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