भाजपा के सांसद और सहयोगी दलों के नेताओं के शामिल होने में भी संदेह हो रहा है भारी विरोध के चलते फिर किसानों के शामिल होने की तो बात ही नहीं , केवल भाजपाई कार्यकर्ता ही न रह जाएं रैली में यह संदेह गहराता जा रहा है । फिर भी निम कोटिंग की तर्ज पर भाजपा कोटिंग किए हुए भाजपाई किसानों को साथ लेकर आगामी 20 तारीख को माननीय मुख्यमंत्री जी किसान रैली करने जा रहे हैं किसानों का समर्थन उन्हें प्राप्त है दर्शाने के लिए ।

दरअसल जो दबाव उनपर बना हुआ है उसे कम करने की कवायद की जा रही है उनके द्वारा , कहीं न कहीं मुख्यमंत्री जी कृषिकानूनों की अच्छाईयों को बताने का प्रयास करेंगे किसान रैली के जरिए  और शायद यह उनकी विवशता भी हो गई है  क्योंकि किसानों का विभिन्न प्रदेशों से आकर किसान आंदोलन का हिस्सा बन समर्थन करना और लगातार बढ़ते किसानों के जमावड़े से उनकी नींदें उड़ गई हैं – सत्ता से हाथ धो बैठने और सिंघासन के छीन जाने का डर सताने लगा है – इसी वजह से राजस्थान पंजाब से लगती सीमाओं पर उन्होंने अतिरिक्त सुरक्षाकर्मियों को तैनात कर दिया है  तथा इमरजेंसी के समय इस्तेमाल करने वाली धारा 144 को लागू कर किसानों के दिल्ली कूच को रोकने के लिए , कोरोना संक्रमण की आड़ व बहाना लगाया जा रहा है ताकि किसान दिल्ली को जाम ना कर दें , इसलिए सभी सख्तियां अमानवीय व्यवहार किसानों के ऊपर बर्ताव में लाकर उन्हें डराने का काम कर व्यवस्थाएं उनके नियंत्रण में है यह दर्शाने का काम उनके द्वारा किया जा रहा है ताकि केंद्र की कृपा उनपर बनी रहे ।

साफ प्रतीत होता है कि योजना उनकी तो है नहीं  , इशारा तो केंद्र सरकार का है कि रैली के माध्यम से साबित करो कि किसानों का भारी समर्थन उन्हें ही प्राप्त है , और शायद उसी रणनीति के तहत ही ईस किसान रैली का आयोजन भी किया जा रहा है  मगर जहां यह किसान रैली प्रस्तावित है वहां पर तो धारा 144 लागू है – अब बड़ा सवाल यह उठता है कि सत्ताधारी दल के मुखिया यदि वहाँ रैली करते हैं तो सभी नियम कायदे ताक पर रख दिये जाते हैं क्या और यह धाराए उनके लिए प्रभावी नहीं होती है ?

रैली में भी किसान हैं और बॉर्डर पर भी किसान हैं तो बॉर्डर वाले किसानों से संक्रमण के फैलने का खतरा है और भाजपा की रैली में शिरकत करने वालों से नहीं क्यों ?  क्या भाजपा के किसान और देश के किसानों में कोई भिन्नता है ? और क्या यह किसानों में फूट डालने का षड्यंत्र नहीं  ?

मुख्यमंत्री जी की रैली नारनोल में ही क्यों ,करनाल, हिसार,सिरसा ,पानीपत ,कुरुक्षेत्र ,रोहतक , में क्यों नहीं ? क्योंकि वहां इनके तंबुओं को उखाड़ फेकेंगे किसान जिसका इन्हें ज्ञान बहुत अच्छे से है और इसलिए दक्षिण हरियाणा को चुना है जहां के किसानों ने अभी तक सॉफ्ट रुख रखा है ईस किसान आंदोलन के प्रति ।यह बात सरकार भी जानती है और प्रदेश की जनता भी के अन्य किसी क्षेत्र में रैली तो क्या कोई बैठक करने योग्य भी हालात शेष नहीं रह गए हैं भाजपा के लिए और यही प्रमुख कारण है ईस शांतिप्रिय क्षेत्र का चयन करना ।

एक बात बताएँ भाजपा के नेतागण कि ईस रैली में ऐसी कौनसी जड़ी बूटी भाजपा अपने किसानों को पिला-खिलाकर लाएगी जिससे संक्रमण नहीं फैलेगा  और ऐसी कौनसी छतरी पहनाकर उन्हें लाया जा रहा है जिससे उनके ऊपर से ही निकल जायेगा धारा 144 का असर – फिर वही तमाम सुविधाएँ बॉर्डर पर डटे किसानों के लिए क्यों नहीं  और क्या उन्हें ईस देश का नागरिक नहीं समझते हैं खट्टर साहब ?

सवाल बहुत सारे हैं मगर किसानों के पिंजरे में फंस गया है तोता और मुश्किल में है ..

खैर नियम कायदे कानून तो सभी के लिए समान रूप से लागू किए जाने चाहिए । बकौल तरविंदर सैनी ( माईकल ) भाजपा के किसान शांतिप्रिय माहौल का निर्माण करते हैं और भाजपा की कोटिंग से उनपर कोरोना का असर बेअसर हो जाता है जब्कि समूचे देश के किसानों में यह विशेषता नहीं ।

दरअसल किसानों तथा आम नागरिकों को गुमराह कर रही हैं भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार जिसके प्रमुख सूत्रधार खट्टर साहब हैं जिनकी अनीतियों के चलते यह आंदोलन इतना लंबा हो गया,  सभी नेशनल हाइवे ठप पड़े हैं दूसरे राज्यों में आवाजाही रुक गई है, यातायात प्रभावित व अवरुद्ध होने से खाद्य सामग्रीयों के भाव आसमान छू रहे हैं , लोकडाउन काल में पहले से परेशान लोगों का जीवन और भी दूभर हो गया है ,कारखाने बंद हो रहे हैं मजदूर बेरोजगार , किसान सड़कों पर शहादतें दे रहा हैं , जनतंत्र पस्त है और सत्ताभोगी खट्टर साहब कुर्सी के नशे में मस्त है ।

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