हसन खां मेवाती, राव तुला राम, रानी लक्ष्मीबाई के साथ लड़ी जंग

16 दिसंबर को बगावत के जुर्म में दी गई थी सरेआम फांसी

फतह सिंह उजाला

शहीदों का सम्मान , यह दावा, वादा अब तो यह जुमला भी लगने लगा है । इस बात को सुनते-सुनते कान भी पक गए हैं । लाख टके का सवाल यह है कि अहीरवाल के पटौदी क्षेत्र में स्थित सबसे बड़े राजपूत बहुल गांव बोहड़ाकला , जो कि पूर्व सेनाध्यक्ष और केंद्र में मंत्री वीके सिंह की ननीहाल भी है, में शहीद ठाकुर अब्बू सिंह का शहीद स्मारक कब बनेगा, कैसे बनेगा और कौन बनाएगा ?

यह खुली चुनौती पूर्व की सरकारों ,पूर्व के चुने हुए जनप्रतिनिधियों के बाद अब शहीदों का सर्वाधिक सम्मान करने की दावेदार सरकार के पाले में आ चुकी है । केंद्र में भी बीजेपी की सरकार है और हरियाणा में भी बीजेपी की सरकार है । सरकार, सरकार के मंत्री , सरकार के प्रतिनिधि सभी जब भी कोई कार्यक्रम हो एक बात दावे के साथ और डंके की चोट पर कहते हैं कि जो कोम अथवा समाज शहीदों का सम्मान नहीं करता , याद नहीं करता वह कौम अधिक समय तक जिंदा नहीं रहती है । सवाल यह है क्या सरकार और सरकार के प्रतिनिधि मंत्री अपनी इन्हीं कई हुई बातों पर अमल भी कर रहे हैं ?

इस पूरे प्रकरण में यदि बोहड़ाकला के रहने वाले शहीद ठाकुर अब्बू सिंह और उनके स्मारक को देखें आज के हालात में जुमला ही साबित हो रहा है । 16 दिसंबर वह तिथि है जिस दिन पूरा देश, सरकार और तमाम नेता विजय दिवस के रूप में भी मनाते आ रहे हैं , मनाना चाहिए यह युवा पीढ़ी के लिए बहुत जरूरी है । क्योंकि ऐसे आयोजन से युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिलती है । लगता है यह प्रेरणा देने वालों का विवेक का कोटा शायद खाली हो जाता है और उन्हें याद ही नहीं रहता या फिर याद रखने का प्रयास ही नहीं करते कि 18 57 के गदर में शहादत देने वाले शहीदों का सम्मान भी किया जाना जरूरी है । बोहड़ाकला गांव के रहने वाले और अपने समय के सबसे बड़े बिस्वेदार, देशभक्त ठाकुर अब्बू सिंह को महज 27 वर्ष की आयु में अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा सोहना पहाड़ के रस्ते आम की पहली बुर्जी पर बगावत के जुर्म में सरेआम फांसी पर लटका दिया गया था। इतना ही नहीं जानकार बताते हैं की फांसी दिए जाने के बाद भी करीब 1 सप्ताह तक अंग्रेजी हुकूमत ने शहीद अब्बू सिंह का पार्थिव शरीर परिजनों को नहीं सौंपा था। ठाकुर अब्बू सिंह जिन्होंने महारानी लक्ष्मी बाई , हसन मेवाती खां और राव तुलाराम सरीखे जैसे जांबाज योद्धाओं के साथ देश की आजादी के लिए अलग-अलग मोर्चों पर अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेते हुए और दांत खट्टे करते हुए देश की आजादी के लिए अपने आप को कुर्बान कर दिया । उसे भूल कर भी नहीं बुलाया जा सकता ।

ठाकुर अब्बू सिंह को अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बगावत के जुर्म में मजिस्ट्रेट लॉर्ड क्रैनिंग की अदालत के निर्देश पर विलियम फोर्ट मजिस्ट्रेट के सामने सोहना के पहाड़ पर सरेआम 16 दिसंबर 1857 को फांसी पर लटका दिया गया था । ठाकुर अब्बू सिंह का विवाह पास के ही गांव राठीवास ठेठर की झिम्माबाई के साथ हुआ था । बचपन से ही आजादी का जज्बा और अंग्रेजी हुकूमत से टकराने का जोश अब्बू सिंह में कूट-कूट कर भरा हुआ था । यह बात भी रिकार्ड में भी दर्ज है कि ठाकुर अब्बू सिंह करीब 300 बिस्वा जमीन के बिस्वेदार थे । उन्हें फांसी पर लटकाया जाने के 8 वर्ष के बाद उनकी यह 300 बिस्वा जमीन कुछ रुपए में ही अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा कुर्क करके नीलाम कर दी गई थी ।

16 दिसंबर 2020 बुधवार को शहीद ठाकुर अब्बू सिंह का 163 वां बलिदान दिवस बेहद सादगी पूर्ण तरीके से मनाया गया । शहीद अब्बू सिंह की शहादत को जिंदा रखने और स्मारक को बनाया जाने के लिए उनकी पांचवीं पीढ़ी के वंशज देश्ज्ञराज के द्वारा स्थानीय अधिकारियों से लेकर देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति राज्यपाल तक फरियाद करते हुए कई जोड़ी जूतियां भी तोड़ने ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी गई। अंततः केंद्र में जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने और यह मामला वीपी सिंह के संज्ञान में लाया गया तो प्रधानमंत्री वीपी सिंह के दखल से ही बोहड़ाकला में शहीद ठाकुर अब्बू सिंह के स्मारक के लिए कुछ जमीन प्रदान कर दी गई । वास्तव में शहीद ठाकुर अब्बू सिंह का 18 57 के गदर में किए गए योगदान का सारा रिकॉर्ड आगरा के रिकॉर्ड रूम में ही दिन रात मेहनत करके सामने लाया जा सका ।

इस बीच वर्ष 2003, नवंबर में पटौदी के खंड एवं विकास पंचायत कार्यालय के द्वारा करीब डेढ़ लाख रुपए एस्टीमेट का शहीद अब्बू सिंह का स्मारक बनाने का प्रस्ताव शासन प्रशासन के पास भेजा गया। लेकिन यह फाइल शायद ही उपलब्ध हो सकेगी । शहीद ठाकुर अब्बू सिंह का जिस जमीन अथवा रकबे पर आज बेहद उपेक्षित शहीद स्मारक है , वहां पर सरकार के नकारा पन को देखते हुए समाज के ही लोगों के कुछ संगठनों के द्वारा पहल करते हुए करीब 6 वर्ष पहले स्मारक का निर्माण आरंभ कर उनकी प्रतिमा भी स्थापित की गई । आजादी के आंदोलन से लेकर वर्तमान के समय में देश की रक्षा के लिए बेझिझक अपनी जान देने वालों की हिम्मत और साहस को देखा जाए तो देश के प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा के लिए जान देने में बिल्कुल भी नहीं झिझकते।  ऐसे में बहुत बड़ा और गंभीर सवाल है की सरकार , क्षेत्र के जनप्रतिनिधि, विधायक, सांसद, मंत्री 1857 के शहीद ठाकुर अब्बू सिंह के शहीद स्मारक को बनाने में क्यों और किन कारणों से झिझकते आ रहे हैं ?

अभी तक के बीत चुके 163 वर्ष को देखा जाए तो, किसी को बुरा लगे तो लगे, ऐसा महसूस होने लगा है कि 1857 के शहीद और उनकी शहादत को भी कथित रूप से अलग-अलग चश्मे से देखा जा रहा है ? कहने वाले कहने से नहीं झिझकते ऐसे लोगों का मानना है कि यदि किसी व्यक्तिगत युद्ध अथवा लड़ाई में अपनी कुर्बानी देते तो उनके स्मारक को बनाने की गेंद संभवत परिवार के पाले में ही डालकर छोड़ दी जाती । आखिर 27 वर्षीय जांबाज, दिलेर , राष्ट्रभक्त ठाकुर अब्बू सिंह के मन में टक्कर लेने का फौलादी हौसला , सीने में कैद था । जानकारों के मुताबिक बोहड़ाकला गांव में आज भी उन हवेलियों पर अंग्रेजी हुकूमत की तोप के गोलों के निशान हैं , जहां ठाकुर अब्बू सिंह के ठहरने की आशंका को लेकर अंग्रेज सेना के द्वारा तोप के गोले दागे गए थे ।

अब हम शब्दों में बहुत बड़ी बात यह है कि दिल्ली-जयपुर नेशनल हाईवे से के बिलासपुर चैक से केवल मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर बिलासपुर-कुलाना मुख्य सड़क मार्ग के किनारे 1857 के शहीद ठाकुर अब्बू सिंह का उपेक्षित शहीद स्मारक अपने भव्य स्वरूप को प्राप्त करने के लिए राज्य और केंद्र सरकार को खुली चुनौती दे रहा है।  बोहड़ाकला से 6 किलोमीटर ही और आगे आने वाले समय में जल्द ही गुरुग्राम, पटोदी ,  रेवाड़ी सड़क मार्ग को नेशनल हाईवे बनाया जा सकता है । पटोदी से करीब 16 किलोमीटर और आगे रेवाड़ी-झज्जर-रोहतक हाईवे है । कुल मिलाकर राज्य सरकार , जिला प्रशासन, एमएलए, इलाके के सांसद और केंद्र के मंत्री शहीद अब्बू सिंह के शहीद स्मारक को केंद्र में रखकर ऐसी योजना और परियोजनाएं क्यों नहीं बनाते की महानगर गांव बनाने की ओर अग्रसर बोहड़ाकला 18 57 के शहीद ठाकुर अब्बू सिंह की याद में एक विशाल, सुंदर, भव्य स्वरूप प्राप्त कर पर्यटन स्थल के रूप में अपनी पहचान  को हमेशा के लिए प्राप्त कर ले। इससे केवल मात्र बोहड़ाकला ही नहीं, पटौदी क्षेत्र के साथ-साथ पूरे दक्षिणी हरियाणा का गौरव बढ़ेगा । जरूरत है केवल इच्छाशक्ति की, यह दृढ़ इच्छाशक्ति वैसी ही होनी चाहिए जैसे कि देश को आजाद करवाने के लिए और अंग्रेजी हुकूमत को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए 27 साल के युवा जांबाज शहीद ठाकुर अब्बू सिंह ने हमारी आजादी के लिए फांसी के फंदे पर झूलते समय दिखाई थी।

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