भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

किसान आंदोलन इस समय केंद्र सरकार के गले की फांस बना हुआ है। आंदोलनकारी दिल्ली के रास्ते रोकने में लगे हुए हैं और भौगोलिक स्थिति के अनुसार हरियाणा की तीन सीमाएं दिल्ली से लगती हैं। अत: प्रदर्शनकारियों को दिल्ली पहुंचने से रोकने का अधिकांश जिम्मा हरियाणा सरकार का ही बनता है।

हरियाणा सरकार इस कठिन दौर से तो गुजर ही रही है। कल हरियाणा सरकार ने पब्लिसिटी के इंचार्ज रॉकी मित्तल को पद से बर्खास्त किया है और आज रॉकी मित्तल ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल पर आरोपों का टोकरा ही उलट दिया। रॉकी मित्तल ने मनोहर लाल को हरियाणा में जातिवाद फैलाने का जिम्मेदार बताया, उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचारी भी बता दिया। उन्होंने कहा कि जब मैंने 15 सौ करोड़ रूपए  पब्लिसिटी के खर्चे का हिसाब मांगा तो वह हिसाब तो मिला नहीं, पद से जरूर हटा दिया। साथ ही उन्होंने कहा कि मनोहर लाल के इर्द-गिर्द जो लोग हैं, वही सरकार चला रहे हैं और वे उनके निजी लोग हैं।

मेरे से मुख्यमंत्री इसीलिए नाराज हैं कि मैं जय मोदी कहता हूं, मुख्यमंत्री जय मनोहर कहलवाना चाहते हैं। उनके साथ वालों का कहना है कि उन्हें जो पद दिए हैं वह तो मुख्यमंत्री ने दिए हैं, इसलिए जा मुख्यमंत्री बोलो लेकिन मैं मोदी का बंदा हूं तो मोदी की ही जय बोलूंगा

इतना ही नहीं, वह यह भी कहते नजर आए कि पिछले कार्यकाल में जब मैं गाने बनाता था तब मुझे उनके सख्त निर्देश थे कि चार मंत्रियों के चेहरे मेरे गानों में दिखने नहीं चाहिएं और वे चार मंत्री थे कैप्टन अभिमन्यु, अनिल विज, ओमप्रकाश धनखड़ और रामबिलास शर्मा। आगे वह यह कहने में नहीं चूके कि 75+ के नारे से 40 में पहुंचने का कारण यही रहा कि आपस में भाजपाई ही एक-दूसरे को हराने का प्रयास कर रहे थे।

दूसरी ओर हरियाणा में यह चर्चा किसान आंदोलन के बाद चलने लगी थी कि जजपा यानी दुष्यंत चौटाला समर्थन वापिस ले लेंगे तो सरकार बचानी मुश्किल हो जाएगी। निर्दलियों को चेयरमैन बनाना बताया जा रहा था कि मुख्यमंत्री की सरकार बचाने की कवायद ही है लेकिन आज पांच निर्दलीय विधायकों ने किसानों के समर्थन में गुप्त बैठक की और उनके से चार मुख्यमंत्री से मिलने भी गए। अभी यह ज्ञात नहीं हुआ कि क्या बात हुई किंतु यह तो तय ही लगता है कि वे किसानों के पक्ष की बात करने ही गए थे और खुद को किसानों के साथ बताने। इन चार के अतिरिक्त ओमबीर सांगवान, बलराज कुंडू पहले ही किसानों के समर्थन का ऐलान कर चुके हैं। बचे तीन में से रणधीर चौटाला को खट्टर साहब ने मंत्री बना रखा है, अभय चौटाला और गोपाल कांडा के वर्तमान स्थितियों में सरकार के साथ आने की आशा नहीं की जा सकती।

राजनैतिक चर्चाकारों का यह भी कहना है कि हरियाणा में जो किसान आंदोलन बढ़ रहा है, उसके पीछे हरियाणा सरकार की अपनी कमियां हैं। अगस्त से ही हरियाणा सरकार किसानों को समझाने में लगी थी। इतना समय पूरी सरकार और विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा के संगठन के लोग समझा क्या नहीं पाए? या तो सरकार की इच्छाशक्ति दृढ़ नहीं थी और आपसी खींचतान के चलते खानापूर्ति पूरा कर रहे थे और या कानूनों में जो किसान कह रहे हैं वे कमियां हैं। तो वजह कोई भी रही हो कमी तो सरकार की मानी ही जाएगी

इधर जो किसान आंदोलन बढ़ रहा है और उनके साथ कर्मचारी और जनता आ रहे हैं, उससे अब मंत्रियों का घेराव भी आरंभ हो गया है, जिसमें आज भी हरियाणा सरकार के मंत्री और सांसद लपेटे में आए। प्रश्न फिर वही है कि जब किसान सांसदों, मंत्रियों के घरों का घेराव कर रहे हैं तो वे सांसद और मंत्री उन किसानों को समझा क्यों नहीं पाते?

इधर आज किसान आंदोलन में कुछ भारी तत्व जो अराजकता फैलाने के लिए आंदोलन में डटे थे, उन्हें किसानों ने पकड़ा है। अब वे कौन थे, कहां के थे, क्यों आए थे, यह तो जांच का विषय है परंतु किसानों में यह भावना अवश्य है कि हमारे आंदोलन को कमजोर करने के लिए वे सरकार  के ही भेजे हुए नुमाइंदे थे।

किसानों के ऐसा सोचने के पीछे कारण यह भी हो सकता है कि आरंभ से ही हरियाणा सरकार के मंत्री यह कहते रहे हैं कि यह हरियाणा के किसानों का नहीं खालिस्तानियों व कांग्रेसियों का किया हुआ खेल है। साथ ही ऐसी बातें भी आईं कि प्रदर्शन करने वाले आतंकवादी, देशद्रोही हैं। और ऐसे समय में कुछ सच कुछ झूठ चलता ही रहता है। लेकिन कुछ का असर सारी व्यवस्था संभालने वाली पार्टी पर ही पड़ता है। इतना ही नहीं, किसान आंदोलन जो आरंभ हुआ था, वह एमएसपी की मांग से ही हुआ था और वर्तमान में  एमएसपी को हरियाणा सरकार के मंत्री और केंद्र सरकार के मंत्री मान रहे हैं। ऐसे में भाजपा के एक विधायक का ब्यान आता है कि एमएसपी आवश्यक नहीं है। तो इस तरह की सब बातों से किसानों में सरकार के प्रति विश्वसनीयता में कमी आनी लाजिमी है।

वर्तमान में राजनैतिक चर्चाकारों में यह चर्चा चली हुई है कि सरकार की ओर से इस आंदोलन को किसानों में विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से कुछ जनहितैषी योजनाएं घोषित की जा सकती हैं और कर्मचारियों को किसी प्रकार की राहत देकर और कोई ऐसे कार्य कराकर जिससे जनता का ध्यान उन कार्यों की ओर लग जाए और जनता के जहन से किसान आंदोलन कुछ कम हो सके।

नगर निगम चुनाव भी इसी कड़ी का हिस्सा बताए जाते हैं। चर्चाकारों का कहना है कि निगम चुनावों के चलते जनता और युवाओं का ध्यान चुनाव जीतने की ओर अधिक चला जाएगा और किसान आंदोलन से ध्यान कुछ कम होगा। कुछ चर्चाकारों का यह भी कहना है कि वर्तमान समय में कराए गए यह चुनाव भाजपा के लिए घातक भी हो सकता हैं, क्योंकि जनता और किसान इस समय भाजपा सरकार से रूष्ट नजर आते हैं। ऐसे में कोई विपक्ष न होते हुए भी बरौदा उपचुनाव जैसे परिणाम आने की संभावना बनी हुई है। वैसे भाजपा ने अपने बड़े-बड़े दिग्गज चुनाव जीतने के लिए लगा दिए हैं लेकिन यदि रॉकी मित्तल की मानें तो रामबिलास शर्मा, कैप्टन अभिमन्यु तो प्रभारी बनाए ही गए हैं और प्रदेश अध्यक्ष संगठन के मालिक हैं। अत: यदि हार होती है तो उसकी जिम्मेदारी से प्रदेश अध्यक्ष भी बच नहीं पाएंगे सो एक तरह से मुख्यमंत्री ने अपने नापसंद लोगों को बड़ी परीक्षा में डाल दिया है।

उपरोक्त स्थितियों को देखते हुए सरकार के स्थायित्व पर घनघोर बादल छाए हुए हैं और यदि भाजपा को निकाय चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा तो वह बादल और गहरा जाएंगे। अब इंतजार करते हैं और यह कामना करते हैं कि किसी प्रकार जल्द से जल्द किसान आंदोलन का समाधान हो जाए।