केंद्र का 20 पेज का प्रस्ताव किसान संगठनों को नहीं आया रास. किसान अब शनीवार को दिल्ली-जयपुर नेशनल हाईवे करेंगे जाम. किसान आंदोलन की एक ही मांग कि रद्द हो नया कृषि कानून फतह सिंह उजाला नए कृषि बिल के विरोध को लेकर घर, गांव, खेत, खलिहान छोड़ सड़क पर लंगर डाले किसान और किसान संगठनों की तरफ से केंद्र सरकार के प्रस्ताव को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया। नए कृषि बिल में शामिल तीन कानून का विरोध कर रहे अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा और किसानों का एक ही सवाल है कि जब किसानों ने अपने हित के लिए कोई कानून मांगा ही नहीं तो फिर केंद्र सरकार बिल को थोपने पर क्यों आमादा है ? नए कृषि बिल को संसद का विशेष अधिवेशन बुलाकर, किसान हित में रद्द किया जाए । किसान आंदोलन को 14 दिन बीत चुके और पांच दौर की वार्ता के बाद भी कोई समाधान नहीं निकल पाया है । नए कृषि बिल को लेकर एक तरफ मतदान से बनी सरकार तो सामने अन्नदाता , अभी भी एक दूसरे पक्ष पर कथित तौर से दवाब बनाते ही महसूस हो रहे हैं । हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा और निर्णायक बैठक में फैसले के लिए अधिकृत किसान नेताओं के द्वारा दो टूक कह दिया गया है कि किसान आंदोलन का एक ही समाधान है , केंद्र सरकार कृषि बिल को रद्द करें या फिर इसे वापस ले । बुधवार को वादे के मुताबिक केंद्र सरकार के द्वारा अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के घटक किसान संगठनों के नाम भेजे गए संशोधन प्रस्ताव को किसान नेताओं की बैठक में चर्चा के बाद पूरी तरह से नकार दिया गया। दूसरी तरफ किसानों का यह आंदोलन सीधे-सीधे किसान और केंद्र सरकार के बीच आमने सामने की हक हकूक की लड़ाई है । वही विभिन्न राजनीतिक दल भी कथित रूप से सुर्खियों में बने रहने के लिए और पीएम मोदी सहित केंद्र सरकार को घेरने के वास्ते बयान बाजी करते हुए सामने आने से स्वयं को चाह कर भी नहीं रोक पा रहे । जबकि किसान इस पूरे मामले में किसी भी राजनीतिक दल के समर्थन को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने से इनकार करते आ रहे हैं । ऐसा लगता है कि नए कृषि बिल को लेकर आमने-सामने अपने अपने तर्क के साथ डटे केंद्र सरकार के लिए प्रतिष्ठा तो किसान संगठनों के लिए स्वाभिमान सहित कृषि बिल को जबरन थोपने को लेकर गुस्सा बना हुआ है । आरंभ में तो किसान आंदोलन तल्ख और उग्र होता हुआ दिखाई दिया, लेकिन समय बीतने के साथ आंदोलनरत किसानों का धरना अब धरना नहीं किसान मेला महसूस होने लगा है । बुधवार को केंद्र सरकार के प्रस्ताव को एक ही झटके में खारिज करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा किसान आंदोलन को अब जन आंदोलन बनाने का बिगुल फूंक दिया गया । यह बात अलग है कि मंगलवार को किसानों के द्वारा घोषित भारत बंद के दौरान सभी राजनीतिक दल और उनके नेता खुले तौर से किसानों और किसानों की मांगों के समर्थन में सड़कों पर दिखाई दिए । इस पूरे प्रकरण में किसान हितैषी और समर्थक होने के दावेदार विभिन्न पार्टियों के चुने हुए एमएलए और और एमपी किसानों के साथ होने का दंभ भरते हुए इस्तीफा देने का स्वयं और दूसरों के लिए नसीहत देते दिखाई दे रहे हैं, लेकिन किसी भी विधायक और सांसद के द्वारा इस्तीफा दिए जाने का अभी तक न तो साहस दिखाया गया और ना ही इस्तीफा दिया गया। ऐसे नेताओं के द्वारा दिया गया तो केवल किसानों और आंदोलन को समर्थन ही दिया गया है । किसानों के इन 14 दिनों के आंदोलन के दौरान एक बात बिल्कुल साफ और स्पष्ट हो चुकी है कि अभी भी किसानों का भरोसा प्रधानमंत्री मोदी पर बना हुआ है । संभवत यही कारण है कि किसान संगठन सीधे पीएम मोदी से ही बात करने की इच्छा को बार-बार जाहिर कर रहे हैं । उम्मीद के विपरीत बुधवार को भी कोई समाधान नहीं निकलने के बाद किसान संगठनों के द्वारा किसान आंदोलन को जन आंदोलन बनाने का ऐलान कर दिया गया । केंद्र सरकार पर कृषि बिल को वापस लेने अथवा रद्द करने का दबाव बनाने के लिए अब किसान नेताओं के द्वारा ऐलान किया गया है कि 12 दिसंबर को दिल्ली-जयपुर नेशनल हाईवे को अवरुद्ध कर के देशभर के सभी टोल बैरियर को भी फ्री रखा जाएगा । इसी कड़ी में घोषणा की गई है 14 दिसंबर सोमवार को देशभर में हर गांव , कस्बा , शहर, महानगर जहां भी हो धरना प्रदर्शन किया जाएगा । यह सब इसलिए किया जाएगा कि केंद्र सरकार के द्वारा एमएसपी पर गारंटी का कानून बनाया जाए । वही अन्य जो भी मांगे हैं किसानों की , उन्हें बिना शर्त पूरा किया जाए। 14 दिसंबर सोमवार तक चलाए जाने वाले किसान आंदोलन के दौरान ही सत्ताधारी पार्टी भाजपा के नेताओं सहित मंत्रियों का घेराव भी किया जाएगा। किसान संगठनों के द्वारा केंद्र सरकार के खारिज किए गए प्रस्ताव के बाद भी समाधान के लिए केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रियों के बीच चर्चा सहित चिंतन और मंथन का दौर चलता ही रहा । जिससे कि बढ़ती सर्दी के बीच में गिरते तापमान को देखते हुए घमासान का कोई समाधान ही निकल आए । बहरहाल किसान संगठनों के द्वारा किसान आंदोलन को जारी रखने के लिए 14 दिसंबर सोमवार तक का अपने पूरे कार्यक्रम सहित रणनीति का खुलासा करते हुए एक बार फिर से गेंद केंद्र सरकार के पाले में सरका कर छोड़ दी गई है। Post navigation सोनिया गांधी और कांग्रेस की स्थिति हर साल 10 दिसंबर को मनाया जाता है मानवाधिकार दिवस