भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

आज के भारत बंद में संपूर्ण हरियाणा में कोई विशेष अप्रिय समाचार समाचार लिखने तक प्राप्त नहीं हुआ। इसके लिए हरियाणा सरकार की सराहना करना बनता ही है। जहां-जहां समाचार मिले, वहां ऐसे मिले कि पुलिस अधिकारियों ने आंदोलनकारियों पर लाठी भांजने या पानी की बौछार करने की बजाय समझाना बेहतर समझा। और जैसे कि समाचार मिले हैं संपूर्ण हरियाणा में पुलिस अधिकारियों ने या एचसीएस/आइएएस अधिकारियों ने आंदोलनकारियों को समझाया और अप्रिय घटना रोकने से बचाया।

अब असर अैर बेअसर की बात करते हैं। बात करें बंद कितना सफल रहा या असफल तो यह पैमाना हमारे पास नहीं है। सरकार और सत्तारूढ़ दल के नेताओं के दावे हैं कि बंद सफल नहीं हुआ, जबकि अधिकांश जनता इस बंद से जुड़ी हुई लगी। जिन दुकानदारों ने दुकानें खोल रखी थीं, उनका भी कहना था कि हम किसानों के साथ हैं। इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि यह बंद सफल रहा और जिस प्रकार शांतिपूर्ण ढंग से दिन निकल गया, उससे सरकार की बात कि बंद सफल नहीं हुआ, पर भी विचार किया जा सकता है।

अब बात करते हैं इसके असर की तो असर तो यह है कि जजपा के लगभग आधे विधायक बंद के समर्थन में खुलकर आए, इसी प्रकार भाजपा संगठन के अधिकारियों ने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इससे यह अवश्य कहा जा सकता है कि विपक्ष ही नहीं भाजपा सरकार के लोग भी इस बंद के समर्थन में हैं या यूं कहें कि किसानों की मांग के समर्थन में हैं और कृषि कानूनों को गलत मान रहे हैं।

 अब इसमें हम बात करते हैं हरियाणा सरकार की भूमिका की तो कहें कि मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष समेत सभी वरिष्ठ भाजपाई यह कह रहे थे कि हरियाणा में तो किसान इन कानूनों के समर्थन में है और यहां तो पंजाब के किसानों की वजह से माहौल ऐसा बना है और उनका यह कथन कि हरियाणा में किसानों को और आज जनता को लामबंद होने में सहायक बने, क्योंकि किसानों को लगा कि हम जब तक बाहर नहीं निकलेंगे, आवाज नहीं उठाएंगे तब तक सरकार यह मानने को तैयार नहीं होगी कि हम इन कानूनों को पसंद नहीं करते।

इसी बात को नुकसान शायद हरियाणा सरकार को हो रहा है और आने वाले समय में और अधिक हो सकता है, क्योंकि भाजपा के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के ब्यानों में अब भी कोई विशेष परिवर्तमान आता दिख नहीं रहा है। कुछ भाजपाइयों ने ही नाम न लेने की शर्त पर बताया कि आप पुराने पत्रकार हो, यह बात आपके समझ में क्यों नहीं आ रही कि हरियाणा सरकार प्रधानमंत्री मोदी के आशीर्वाद से बनी है। मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष उन्हीं के पुराने साथी हैं। ऐसे में कोई भी प्रधानमंत्री के कार्यों को गलत बताने की गुस्ताखी कर ही नहीं सकता। चाहे जनता कितना ही रोती रहे और इसी का नुकसान प्रदेश सरकार को उठाना पड़ रहा है और आने वाले समय में संभव है बहुत अधिक भी उठाना पड़ जाए।

जैसा कि हमने आंदोलन आरंभ हुआ था तभी लिखा था कि इस आंदोलन की सफलता के साथ-साथ सभी राजनैतिक दल अपने आप इससे जुड़ जाएंगे और वही हो रहा है। प्रदेश के छोटे-बड़े सभी राजनैतिक दलों का इन्हें समर्थन प्राप्त है। इसके अतिरिक्त कर्मचारियों, व्यापारियों और आमजन का समर्थन भी इन्हें मिल रहा है। इसका प्रमाण यह है कि आज सरकार ने कर्मचारी नेताओं को भी गिरफ्तार किया।

आज तक हमने जितने भी आंदोलन देखे, उनमें आंदोलनकारी एक होता है, परेशान होने वाले सभी आंदोलनकारियों को कोसते नजर आ जाते हैं लेकिन इस आंदोलन में ऐसा कहीं दिखाई नहीं दिया, हर तरफ से यहीं आवाजें आ रही थीं कि हम किसानों की मांगों के साथ हैं ऐसी अवस्था में यह कहा जा सकता है कि प्रदेश की अधिकांश जनता इस समय तीनों कृषि कानूनों के विरूद्ध है और विधायक भी प्रदेश की जनता में ही आते हैं। 

इसी बात को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने विधानसभा सत्र बुलाने की राज्यपाल से की है, क्योंकि वह जानते हैं कि इस समय कृषि बिल पर जब वोटिंग होगी तो जो विधायक किसानों के साथ होने का दावा कर रहे हैं, वे या तो सरकार के विरोध में मत करेंगे और या फिर जनता के सामने यह नकाब उतर जाएगा कि वे किसान हितैषी हैं। अत: इसी का लाभ उठाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री ने यह दांव खेला है।

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