गुरुवार को ही होनी है निर्णायक बैठक.
बैठक में सकारात्मक परिणाम पर बनी आशंका.
गुरुवार-शनिवार को देशभर में प्रदर्शन का ऐलान

फतह सिंह उजाला

सरकार के दावे और वादे के बीच किसानों की आशंका का समाधान नहीं निकलने से किसानों का आंदोलन सातवें दिन भी जारी रहा । किसानों का यह आंदोलन कई मायनों में आंदोलन के इतिहास में एक ऐतिहासिक आंदोलन ही माना जाएगा । इसका मुख्य कारण किसानों के द्वारा अपनी मांगों की गेंद सरकार के पाले में सरकाने के बाद स्वयं का पाले में अर्थात ठंड में खुली सड़क पर जारी रखा गया धरना ।

देशभर में विभिन्न संगठनों के द्वारा अपनी मांगों को लेकर आंदोलन तो होते रहे हैं और होते भी रहेंगे । वर्ष 2020 समाप्त होने से पहले किसानों का यह आंदोलन इस लिहाज से भी एक यादगार और उदाहरण साबित हो रहा है कि देश के विभिन्न प्रांतों से दिल्ली को घेर कर बैठने वाले किसानों और सुरक्षाबलों के बीच किसी भी प्रकार की अभी तक कोई भी बड़ी झड़प अथवा हिंसात्मक घटना नहीं घटी है । यही इस आंदोलन की खूबसूरत किसानों का संयम सुरक्षा बलों सहित सरकार का सब्र, सभी कुछ बयान कर रहा है ।

हां इतना अवश्य हुआ है कि बीते 2 दिनों से खेत, खलियान, घर, गांव छोड़कर दिल्ली के चारों तरफ धरने पर बैठे किसानों के बीच अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने के लिए राजनीतिक दलों के नेता भी स्वयं को पहुंचने से चाह कर भी नहीं रोक सके । जबकि अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के साथ-साथ विभिन्न किसान संगठन और उनके पदाधिकारी पहले ही एलान कर चुके हैं कि यह केवल और केवल किसानों का आंदोलन है । आंदोलन में और आंदोलन के मंच पर किसी भी राजनीतिक दल और नेता को नहीं पहुंचने दिया जाएगा।

अब बात करते हैं मुद्दे की। गुरुवार को होने वाली निर्णायक बैठक से पहले अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के मंच से पुनः और ठोस शब्दों में फिर से दोहराया गया कि किसानों की एक ही मांग है और वह है एम एस पी । केंद्र सरकार केवल मात्र नए कृषि बिल में एक लाइन ही लिखित में शामिल कर दे की एमएसपी से नीचे फसल की खरीद नहीं होगी, इसके बाद संभवत किसानों का आंदोलन भी समाप्त हो सकता है । हालांकि एमएसपी के अलावा किसान संगठनों और पदाधिकारियों की और भी कई प्रकार की विभिन्न मांगे हैं । लेकिन सबसे महत्वपूर्ण मांग केवल और केवल एनएसपी ही है ।

बुधवार देर रात तक के हालात पर गौर किया जाए तो इस बात की संभावना से इंकार नहीं की गुरुवार को भी केंद्र सरकार के मंत्रियों और आंदोलनरत किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत का कोई सकारात्मक नतीजा सामने आ सकेगा ? कहीं ना कहीं ऐसा आभास हो रहा है कि किसान आंदोलन के बड़े नेता और पदाधिकारी केंद्र सरकार के नए कृषि बिल पर अपने मन की बात अब सीधे पीएम मोदी से ही करने की कथित रणनीति पर काम कर रहे हैं । क्योंकि अभी तक कम से कम चार से पांच दौर की वार्ता केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पीयूष गोयल अन्य मंत्रियों की कमेटी के साथ हो चुकी है । जिसका नतीजा बे-नतीजा ही सामने आ रहा है ।

बुधवार को अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के मंच से पीएम मोदी का बिना नाम लिए केंद्र सरकार और केंद्र में सत्ताधारी पार्टी के सामने यह खुला प्रस्ताव रखा गया कि संसद का विशेष अधिवेशन बुलाकर किसान विरोधी नए कृषि बिल को बिना किसी लाग लपेट के निरस्त किया जाए । ऐसा आभास होता है की किसान आंदोलन और अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा की यही मांग केंद्र सरकार पर दवाब बनाने के लिए किसान आंदोलन का पुरप का पत्ता है । इधर यह बात भी सामने आई है कि गुरुवार को जिस दिन निर्णायक बैठक होनी है, उसी दिन और शनिवार को देशभर में विभिन्न स्थानों पर किसानों के समर्थन में किसान संगठनों के स्थानीय सदस्यों और पदाधिकारियों के द्वारा विरोध प्रदर्शन भी किया जाना है । वही विशेष रुप से पंजाब प्रांत के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ-साथ वहां के सैनिकों के द्वारा अपने-अपने अवार्ड और मेडल केंद्र सरकार को लौटाने की भी घोषणा कर दी गई है ।

बुधवार को ही अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के मंच से यह बात कही गई  की देशभर के करीब 450 विभिन्न किसान संगठनों का अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा किसानों की मांगों का नेतृत्व करते हुए पैरवी भी कर रहा है। केंद्र सरकार से बातचीत के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के 7 सदस्यों की कमेटी नए कृषि बिल के प्रत्येक पहलू पर कम्रानुसार सवाल जवाब के लिए पूरी तरह तैयार है और इस संदर्भ में केंद्र सरकार की अधिकृत कमेटी को भी जवाब दिया जा चुका है । अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा का साफ-साफ कहना है कि बातचीत का रास्ता खुला हुआ है । समाधान बातचीत से ही निकलेगा, ऐसे में यदि गुरुवार 3 दिसंबर को भी विरोधाभास बना रहा तो फिर और भी उच्च स्तरीय स्तर पर बातचीत का ही विकल्प किसानों के सामने बचा रह जाता है ।

किसान आंदोलन के इन 7 दिनों के दौरान कड़ाके की सर्दी के कारण घर, गांव, खेत, खलियान छोड़कर आंदोलन में शामिल रहे कुछ किसानों की  असामयिक और दुखद मौत का दुख भी आंदोलनरत किसानों के लिए एक बड़ी पीड़ा का कारण बना हुआ है कि उनके साथी अपने हक हकूक के संघर्ष में क्यों हमेशा के लिए साथ छोड़ कर चले गए ?  अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा का यही कहना है कि जो भी निर्णायक बातचीत होगी वह बिना किसी शर्त  के ही की जाएगी । सबसे अहम और महत्वपूर्ण मांग एम एस पी के साथ-साथ अनाज मंडियों की चली आ रही परंपरा , नए बिजली बिल 2020 , पराली जलाने पर बनाए गए कानून को निरस्त किया जाना भी अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा की मांगों में शामिल है। इसी बीच किसान आंदोलन को लेकर विदेशी नेताओं के द्वारा कहीं जा रही बातों पर भी संयुक्त किसान मोर्चा के पदाधिकारियों का दो टूक कहना है कि किसान आंदोलन भारत देश का अपना अंदरूनी मामला है, इसमें किसी भी विदेशी को दखल देने की कोई जरूरत नहीं। इससे यही साबित हो रहा है कि भारत का अन्नदाता , मतदाता किसान सच्चा राष्ट्रभक्त और स्वाभिमानी भी है । अब देश भर की नजरें , आंदोलनरत किसानों के परिजनों की नजरें, देशभर के आढ़तियो और व्यापारियों के साथ साथ कृषि मजदूरों और कामगारों की नजरें भी गुरुवार 3 दिसंबर को होने वाली निर्णायक बैठक पर टिकी हुई है।

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