सत्ता की मलाई ज़रूरी है जजपा के लिए या किसान की भलाई ? सुरजेवाला

हरियाणा और जजपा से सम्बंधित एक प्रश्न पर श्री सुरजेवाला ने कहा कि सत्ता की मलाई ज़रूरी है जजपा के लिए या किसान की भलाई? ये निर्णय तो दुष्यंत चौटाला जी औऱ उनकी पार्टी को करना पड़ेगा। वो सत्ता से चिपके क्यों बैठे हैं, कुर्सी से चिपके क्यों बैठे हैं? आज जब पूरे देश का किसान कराह रहा है, आज जब हरियाणा औऱ पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश, गुजरात से लेकर उड़ीसा तक का किसान आंदोलनरत है। आज जब लाखों किसान, अपने बीवी, बच्चों के साथ दिल्ली के चारों तरफ बैठे  हैं, तो सत्ता की मलाई खाने वाले दुष्यंत चौटाला को ये निर्णय करना पड़ेगा कि उनके लिए कुर्सी प्यारी है या किसान की भलाई और अगर किसान की भलाई प्यारी है तो आज ही उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दीजिए औऱ जजपा, भारतीय जनता पार्टी की खट्टर सरकार से समर्थन वापस लें, यही असली सच्चाई है औऱ यही असली इम्तिहान है।

एक अन्य प्रश्न पर कि जिस तरह से हरियाणा के दो निर्दलीय विधायकों ने भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया है तो सरकार पर कोई खतरा देखते हैं, श्री सुरजेवाला ने कहा कि सबसे पहले तो मैं दोनों निर्दलीय विधायक, जिन्होंने अंतरात्मा की आवाज सुनी, पीड़ित किसान की आह सुनी, धरती के बेटों की तकलीफ़ सुनी, खेत और खलिहान की आवाज सुनी और जुल्मी- ज़ाबर खट्टर सरकार से समर्थन वापस लिया, मैं उन दोनों विधायकों को मुबारकबाद भी देता हूँ और उनके इलाके की जनता को भी मुबारकबाद देता हूँ। उम्मीद है कि बाकी निर्दलीय विधायकों की भी आत्मा जागेगी औऱ वो भी आगे बढ़कर ये साहसी निर्णय लेंगे। जहाँ तक सरकार का सवाल है, खट्टर सरकार के पास न पहले बहुमत था, न आज बहुमत है। ये सरकार अल्पमत में जबरन, जोर जबरदस्ती के आधार पर जनमत के विरोध में पहले भी बनाई गई थी और आज भी ये जनमत के विरोध में चल रही है, इल्लीगल, अनकॉन्स्टीट्यूशनल सरकार है। जितना जल्दी खट्टर सरकार को चलता कर देंगे, हरियाणा के ढाई करोड़ लोग औऱ हरियाणा के अन्नदाता उतना ही सही है औऱ हरियाणा के जो विधायक साथी हैं, जो आज सरकार के पक्ष में खड़े हैं, चाहे वो भाजपा के अंदर भी हों, उनको भी अपनी अंतरात्मा के अंदर झांककर सोचना चाहिए वरना उनका राजनीतिक अस्तित्व भी मिट जाएगा।

एमएसपी गारंटी को लेकर पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री सुरजेवाला ने कहा कि काश, आप पंजाब का, राजस्थान का, पारित किया हुआ कानून पढ़ लेते तो आप ये पाते कि इस कानून की जो सारी खामियाँ हैं, उन्हें खारिज करने का किस प्रकार से हमने प्रावधान बनाया है। मैं आपको याद दिलाऊँगा किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली कांग्रेस पार्टी ने शुरु की थी और उस न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटीशुदा प्रणाली से किसान खुश है। आज तक किसान ने विरोध नहीं किया क्योंकि किसान को मालूम है अनाजमंडी में जब फसल लेकर जाएगा तो जो दिल्ली की सरकार ने मूल्य निर्धारित किया है, फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया हो, हैफेड हो हरियाणा में, पंजाब में पनफेड हो, फूड एंड सिविल सप्लाईज विभाग हों, वो सब किसान की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल खरीदेंगे। अगर कोई व्यापारी भी मंडी में आएगा तो वो भी किसान की फसल खरीदेगा। आढ़ती को अपना कमीशन मिलेगा। मंडी मजदूर को, छानने वाले को, मुनीम को, कर्मचारी को, अपनी तनख्वाह और पैसा मिलेगा मजदूरी का और थोड़ा सा पैसा ग्रामीण विकास के अंदर रूरल डेवलपमेंट फंड के माध्यम से जाएगा और ये पैसा किसान नहीं देता, ये पैसा खरीद एजेंसियाँ देती हैं तो ग्रामीण विकास भी होता है और किसान को गारंटीशुदा कीमत भी मिलती है।

मोदी जी अनाज मंडियाँ खत्म कर रहे हैं, उनका जो नया कानून है। जिस दिन अनाज मंडियाँ खत्म हो जाएंगी आप बताइए देश में कृषि सेंसस के मुताबक 2018-19 के 15 करोड़ किसान हैं। जब अनाज मंडी ही नहीं होंगी तो किसान को दिल्ली दरबार का न्यूनतम समर्थन मूल्य देगा कौन? क्या 15 करोड़ खेतों के अंदर जाकर फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी दे सकती है, जवाब नहीं में हैं। वो तो 42 हजार देश की मंडियों से नहीं खरीदते, वो भी प्रांतीय सरकारें मदद कर खरीदती हैं। तो ऐसे में एमएसपी की प्रणाली खत्म हो जाएगी और 5 बड़े इस देश के जो धन्ना सेठ हैं, वो 25 लाख करोड़ का खेती की उपज का कारोबार पर कब्जा कर लेगें। उसका सीधा नुकसान दो और वर्गों को होगा। ये किसानों की लड़ाई नहीं, जो राशन की दुकान पर चावल, गेहूं, दाल चीनी इत्यादि दिए जाते हैं गरीबों को, अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्गों को अपने आप वो भी खत्म हो जाएगा। जब सरकार कुछ खरीदेगी ही नहीं, तो उनको राशन की दुकान पर सस्ता अनाज देगा कौन।

जो आम उपभोक्ता है इस देश का, जो किसान नहीं है, जो नौकरीपेशा है, जो छोटा-मोटा व्यवसाय करता है, उसको वो 5 कंपनियाँ अपने मनमाने तरीके से, अपनी कीमत के ऊपर सामान बेचेंगी। जैसा असेंशियल कमोडिटी एक्ट को खत्म कर प्रावधान कर दिया गया है। जब तक सौ प्रतिशत अगर कीमत न बढ़ जाए तो सरकार दखलअंदाजी नहीं करेगी। यानि 70 रुपए की दाल 140 रुपए किलो से ऊपर जाएगी तो ही सरकार दखलअंदाजी कर सकती है। ये सरकार जमाखोरों और कालाबाजारों की भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। ये सरकार धन्ना सेठों के खजाने और तिजोरी की चौकीदार सरकार है और यही किसान का विरोध है।

उत्तर प्रदेश से सम्बन्धित एक अन्य प्रश्न पर कि श्री सुरजेवाला ने कहा कि उत्तर प्रदेश की सरकार वहाँ के गन्ना किसान का जो बकाया है, जो 9 हजार करोड़ रुपए के करीब हो गया, वो क्यों नहीं देते आदित्यनाथ जी? आदित्यनाथ जी, वहाँ के किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य क्यों नहीं देते? क्या आप जानते हैं कि यूपी में केवल एक प्रतिशत फसल सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदी जाती है। 99 प्रतिशत उत्तर प्रदेश की फसल आज भी किसान प्राईवेट व्य़ापारी को बेचने को मजबूर है और यही कारण है कि जब धान की फसल आएगी तो पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश की किसान हरियाणा आकर उसे बेचने की कोशिश करता है। गेहूं की भी लगभग यही परिस्थिति है। यही दूसरी फसलों की परिस्थिति है। बजाय आप लोगों को इस प्रकार के ऊल जलूल कानूनों से भटकाएँ और नीतियों से, आप वहाँ के अन्नदाता की पुकार क्यों नहीं सुनते, ढोंगी आदित्यनाथ से ये हमारा सवाल है।

एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री सुरजेवाला ने कहा कि अगर कोई अंधा हो जाए, शिक्षित होकर अशिक्षित हो जाए, अगर कोई सूरज की रोशनी को अंधकार कहना शुरु कर दे तो मैं यही कहूँगा कि ईश्वर उन्हें सदबुद्धि दे। कानून बनाएं मोदी जी, कानून पारित करें मोदी जी, अध्यादेश लाएं मोदी जी, संसद में बगैर चर्चा करवाएं कानून पारित करवाएँ मोदी जी। राज्यसभा में बहुमत न होते हुए भी ध्वनिमत से जबरन कानून पास करवाएं मोदी जी और जिम्मेवार कांग्रेस! भगवान उनको सदबुद्धि दे, मैं केवल हाथ जोड़कर यही प्रार्थना करूँगा।  

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