किसान आंदोलन का छठा दिन, नतीजा भी रहा बे-नतीजा. न सरकार का दिल पसीजा और न किसानों का दिल पसीजा. किसान आंदोलन को मिल रहे समर्थन से केंद्र पर बढ़ता दबाव फतह सिंह उजाला केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए कृषि अध्यादेश में समाहित तीन बिल के साथ ही बिजली संशोधन बिल 2020 को लेकर किसान आंदोलन का छठा दिन भी बीत गया । लेकिन कृषि बिल को लेकर हुई बैठक का नतीजा भी बे-नतीजा ही सामने आया। केंद्र सरकार के द्वारा किसान संगठनों और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को बातचीत के लिए 3 दिसंबर का मौका दिया गया था। लेकिन जिस हिसाब से देश के विभिन्न राज्यों के किसान दिल्ली की तरफ बढ़ते हुए दिल्ली की सीमा पर ही लंगर डाल कर बैठ गए , उसे देखते हुए अंततः केंद्र सरकार ने एक दिसंबर को बातचीत के लिए किसान संगठनों को न्योता भेज दिया। इससे पहले केंद्र सहित भाजपा की राजनीति के चाणक्य गृहमंत्री अमित शाह और कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह के बीच भी रणनीति को लेकर चर्चा कर ली गई थी। एक दिसंबर मंगलवार को कई दौर की बात होने के बाद भी समस्या का समाधान नहीं निकला । केंद्र सरकार के द्वारा किसान संगठन और उनके प्रतिनिधियों से कहा गया कि बातचीत के लिए एक कमेटी का गठन कर लिया जाए, इस पर भी कोई सहमति नहीं बनी। किसान संगठन और संगठन के प्रतिनिधियों का दो टूक कहना है कि उनकी जो भी मांगे हैं उन मांगों को बार-बार कहते हुए अवगत कराया जा चुका है। मुख्य मांग एमएसपी को लेकर है , केंद्र सरकार नए कृषि बिल में केवल मात्र इतना लिख दे कि घोषित एनएसपी से कम दाम पर फसलों की खरीद नहीं होगी , इसके साथ ही पराली जलाने को लेकर बनाए गए कानून को भी किसान संगठन खुश नहीं है । इधर केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच होने वाली बातचीत से ऐसा महसूस होता है कि केंद्र केंद्र ने अपने पाले में आई गेंद वापिस किसानों के ही पाले में सरका दी है, जबकि आंदोलनरत किसान संगठन अपनी मांगों की गेंद केंद्र के पाले में सरका कर ही दिल्ली के पांच मुख्य प्रवेश मार्ग पर लंगर डालकर बैठे हैं । कड़ाके की ठंड के बाद भी हजारों की संख्या में किसान बिल्कुल भी विचलित दिखाई नहीं दे रहे। वही पूरे प्रकरण को छठे दिन में देखा जाए तो किसान आंदोलन के समर्थन में विभिन्न संगठन भी खुलकर सामने आने लगे हैं। वही केंद्र में सत्तासीन भाजपा की अन्य राज्यों में सरकारों के घटक दल के नेताओं के अलावा सरकार को समर्थन देने वाले जनप्रतिनिधि अब खुलकर किसानों के पक्ष में आ खड़े हुए हैं । वही अभी भी देशभर के विभिन्न राज्यों से किसान संगठनों और किसानों का दिल्ली की तरफ आना जारी है। एक दिसंबर मंगलवार को केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच बातचीत का नतीजा बे-नतीजा रहा , तो तय हुआ कि निर्णायक बैठक अब 3 दिसंबर गुरुवार को ही होगी। इस बीच सभी किसान संगठनों और संगठनों के पदाधिकारियों के द्वारा यह खुला ऐलान कर दिया गया कि उनका धरना अभी तक जिस भी जगह चल रहा है धरना उसी स्थान पर ही जारी रहेगा । इसके साथ ही एक दिसंबर मंगलवार को किसान और किसान आंदोलन के समर्थन में खासतौर से हरियाणा प्रदेश में सभी अनाज मंडियों में व्यापारी और आढ़तियों ने अपना समर्थन देते हुए हड़ताल भी रखी। वही सरकारी और गैर सरकारी विभिन्न संगठनों के द्वारा भी किसान आंदोलन के समर्थन में दिल्ली कूच का आह्वान किया जा चुका है। आंदोलनरत किसान संगठनों के प्रतिनिधियों का साफ-साफ कहना है कि आज का किसान पहले के मुकाबले अधिक समझदार पढ़ा-लिखा और लागू अथवा बनाए जाने वाले कानून की बारीकियों को भी अच्छी प्रकार से समझता है । किसान नासमझ होता या बिल की बारीकियों को नहीं समझ पाता, संभव है सरकार के झांसे में आ जाता ? लेकिन अब ऐसा संभव नहीं है। जिस दिन केंद्र सरकार के द्वारा नए कृषि बिल को लागू किया गया, उसके पहले दिन से ही इसका विरोध शुरू हो चुका था । इस बात का भेद और एहसास सरकार के पास तक बहुत पहले ही पहुंच चुका था । लेकिन सरकार किसानों की भावनाओं को समझने में भूल कर बैठी, लेकिन किसान अपने होने वाले नुकसान को नहीं भूल सके । यही कारण रहा कि देशभर के लाखों किसानों को अपने खेत, खलियान, घर, परिवार को छोड़कर दिल्ली से बाहर कड़ाके की ठंड में बैठने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। किसानों को कोई शौक अथवा चाव नहीं है कि वह सभी इस प्रकार से अपना घर बार, खेत, खलिहान छोड़कर सड़कों पर पड़े रहे ? बहरहाल बुधवार के बाद गुरुवार को फिर नए सिरे से केंद्र सरकार और आंदोलनरत किसान संगठनों के बीच कृषि बिल के पक्ष और उसकी खामियों को लेकर बातचीत होना तय रखा गया है । जब तक उम्मीद यही की जा सकती है कि कुछ तुम चलो , कुछ हम चलें तो मंजिल आसानी से हासिल की जा सके । अभी तक के प्रकरण को देखें तो अब इस बात से इंकार नहीं की कथित रूप से झुकना तो केंद्र सरकार और किसान संगठन, दोनों को ही पड़ेगा। झुकने से ही कुछ हासिल हो सकेगा । अकड़ कर खड़े रहने से न केंद्र को कोई फायदा होगा और नहीं किंसान संगठनों को लाभ मिल पाएगा । बाकी जो कुछ भी होना है वह भविष्य के गर्भ में ही छिपा हुआ है । Post navigation प्रधानमंत्री किसानों की मांग को विपक्ष की गलतफहमी बता रहे हैं : एआईकेएससीसी हे अन्नदाता बनोगे भाग्य-विधाता?