अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा की मांग रद्द हो काले कानून.
किसान संगठन के प्रतिनिधियों ने बोला केंद्र पर हमला.
अपनी मांगे पहले ही केंद्र सरकार को सौंपी जा चुकी

फतह सिंह उजाला

किसान   आंदोलन का चौथा दिन, परिणाम अब गेंद पूरी तरह से केंद्र के पाले में और किसान भी सड़कों पर पाले में अर्थात सर्दी में ।

केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए और लागू किए गए नए कृषि अध्यादेश के विरोध में देशभर के किसानों के द्वारा दिल्ली में प्रवेश करने के विपरीत दिल्ली बॉर्डर पर ही अपना डेरा डाला हुआ है । अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के पदाधिकारियों के द्वारा मजबूती से अपनी बात को रखा गया । किसानों की एक ही पहली और अंतिम मांग है की केंद्र सरकार जो तीन नए कृषि कानून लेकर आई है उन कानूनों को रद्द किया जाए । नए कृषि अध्यादेश से केवल और केवल कारपोरेट घरानो को ही फायदा पहुंचाना चाहती है केंद्र की सरकार । ऐसा आरोप भी किसान नेताओं के द्वारा लगाया गया ।

इधर रविवार को ही पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ साथ केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के द्वारा कृषि अध्यादेश अथवा बिल को किसानों के हित में ठहराते  हुए बिना नाम लिए कहा गया कि किसान किसी के बहकावे में आकर इस प्रकार से आंदोलन नहीं करें । केंद्र बातचीत के लिए तैयार है । इन्हीं सब बातों के जवाब में अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के पदाधिकारियों के द्वारा कहा गया कि जब देश के पीएम एक देश एक कानून एक विधान की बात कर रहे हैं तो फिर एक किसान एक उपज और दो मंडियों की वकालत क्यों की जा रही है ? किसानों ने यह मांग भी जोरदार तरीके से उठाई की केंद्र सरकार एमएसपी की गारंटी देने में क्यों आनाकानी कर रही है ? किसानों के द्वारा कहा गया की किसानों को बहकाने के लिए और कारपोरेट घरानों को खुश करने के लिए ही सरकार किसानों की मांगों की अनदेखी कर रही है । किसान पहले भी अपनी उपज अपनी मर्जी से किसी भी राज्य में  बेचता रहा है और आज भी बेच रहा है । किसान की उपज कहीं भी बेचने पर कभी भी पाबंदी नहीं रही ।

रविवार के पूरे वार्तालाप के घटनाक्रम में किसान संगठन के पदाधिकारियों के निशाने पर हरियाणा सरकार और सरकार के मुखिया मनोहर लाल खट्टर ही रहे । किसान नेताओं ने सवाल उठाया की दिल्ली आते समय हरियाणा में विभिन्न स्थानों पर किसानों को रोकने के लिए खट्टर सरकार के द्वारा जो कुछ भी किया गया , वह पूरी तरह से किसान विरोधी ही काम है। एक दिन पहले ही सीएम खट्टर के द्वारा किसान आंदोलन का हवाला देते हुए कहा गया था कि पंजाब के किसानों ने धमकी दी कि जो हाल इंदिरा गांधी का हुआ था वैसा ही मोदी का होगा ? राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक ऐसे कथन में इस प्रकार की ऐसी कोई भी बात नहीं जिसे लेकर सीएम खट्टर के द्वारा किसानों को खालिस्तान समर्थक बोल दिया गया । किसानों का कहने का सीधा सा अर्थ और तर्क यही था की आपातकाल के विरोध को लेकर जिस प्रकार से इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था, किसानों की मांगे नहीं मानी गई तो मोदी को भी किसान सत्ता से बेदखल करने में नहीं पीछे रहेंगे । संभवत सीएम खट्टर का इस कड़वी हकीकत और सच्चाई की तरफ ध्यान ही नहीं गया । हां जो भी पाकिस्तान समर्थक नारे लगे, उसकी जितनी भतर्सना की जाये उतना ही कम है।

किसानों के द्वारा दो टूक कहा गया कि एमएसपी के अलावा पराली जलाने पर जो सजा किसान के लिए तय की गई है और बिजली बिल 2020 किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किए जाएंगे । केंद्र सरकार के द्वारा अब सशर्त बातचीत का न्योता दिया गया, किसान बात करेंगे तो बिना किसी शर्त के करेंगे । अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा कहा गया कि आढ़ती अथवा व्यापारी किसान के लिए भी बिचैलिया नहीं है , आढ़ती और व्यापारी किसान के लिए सर्विस प्रोवाइडर है । बिचैलियों की जरूरत सरकारों को पड़ती है , क्योंकि अरबों-खरबों रुपए के सोदे और खरीद प्रक्रिया बिचैलियों के बिना संभव ही नहीं । शायद यही कारण है सरकार और उसके मंत्रियों की जुबान पर बिचोलिया शब्द इसीलिए ही रहता है। अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा यह भी साफ कर दिया गया है कि देश के विभिन्न राज्यों से आ रहे किसान बुराड़ी मैदान में नहीं जाएंगे। किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के द्वारा खुलासा किया गया कि वास्तव में बुराड़ी मैदान एक खुली जेल है । इस बात का खुलासा किसान नेताओं के द्वारा ही किया जा चुका है।

किसान आंदोलन के चैथे दिन जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात कही गई वह यह थी कि किसान आंदोलन का मंच किसी भी राजनीतिक दल और उसके नेता को इस्तेमाल नहीं करने दिया जाएगा । इसके अलावा जो भी बात किसानों को लेकर कहीं जाएगी वह अधिकारिक तौर से अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा सभी के सामने रखी जाएगी। अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के के ही पदाधिकारियों ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार किसान संगठनों के बीच फूट डालने का नाकाम प्रयास कर रही है । अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा देशभर के विभिन्न 500 किसान संगठनों का किसान मोर्चा है । यह सत्ता के लिए कोई राजनीतिक मजबूरी या फिर राजनीतिक गठबंधन नहीं है । किसानों में और किसान संगठनों में केंद्र के कृषि बिल को लेकर थोड़ा बहुत भी मतभेद होता तो आज दिल्ली के पांचों मुख्य प्रवेश करने वाले मार्गों पर सड़कों पर पाले में बैठे दिखाई नहीं देते । केंद्र सरकार को किसानों के बीच आने से परहेज है तो तीनों काले कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा कर दे, जितने भी किसान दिल्ली को घेर कर बैठे हैं वापस लौट जाएंगे । यह बात कहते हुए किसानों ने गेम केंद्र के पाले में सरका दी  है । वही किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने यह भी साफ कर दिया है कि जब तक केंद्र सरकार उनकी मांगे नहीं मानेगी, किसान जहां बैठे हैं वहीं पर ही डेरा डाले रखेंगे। 

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